चीन में उइगर मुसलामानों पर ज़ुल्मों की इम्तेहां पर दुनिया चुप -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

चीन में उइगर मुसलामानों पर ज़ुल्मों की इम्तेहां पर दुनिया चुप -मानवता के इतिहास का हर अध्याय खून से रंगा है. बहुत प्राचीन समय से ही ताकतवर लोगों ने किसी....

चीन में उइगर मुसलामानों पर ज़ुल्मों की इम्तेहां पर दुनिया चुप -दिनेश मालवीय   मानवता के इतिहास का हर अध्याय खून से रंगा है. बहुत प्राचीन समय से ही ताकतवर लोगों ने किसी न किसी नाम पर कमज़ोरों पर अनेक तरह के अत्याचार किये. नादिरशाह हो या तैमूर लंग या नादिर शाह, इन्होने लाखों नहीं करोड़ों लोगों का नरसंहार किया. आधुनिक समय को सभी लोगों का समय भले ही कहा जाता हो, लेकिन इसमें भी ऐसे बड़े क्रूर और ज़ालिम लोगों की कमी नहीं है, जिन्होंने लाखों निर्दोष और कमज़ोर लोगों को मौत के घात उतार दिया. जर्मनी के नाज़ी तानाशाह हिटलर के हाथ भी करीब 60 लाख लोगों का खून से रंगे रहे थे. उसने यहूदियों को मारने के लिए गैस चैम्बर बनाए थे. इन चैम्बर्स में कीड़े-मकोड़ों की तरह ठूंसकर उनका सामूहिक नरसंहार किया गया. मानवता के इस क्रूरतम नरसंहार के बाद कथित सभ्य दुनिया के देशों ने क़सम खाई थी कि अब हम भविष्य में ऐसा नहीं होने देंगे. इस तरह के नरसंहार और अत्याचार कहाँ रुक पा रहे हैं. चीन की ही मिसाल लें. वहाँ के झिन्झियांग प्रान्त में उइगर मुस्लिमों पर जो क्रूर अत्याचार किये जा रहे हैं, वे मध्यकाल के जुल्मों की याद दिलाते हैं. लेकिन इन मासूम लोगों पर होने वाले जुल्मों पर दुनिया की चुप्पी बहुत हैरान करने वाली है. चीन के अनुसार उइगर मुसलमान देश विरोधी हैं. लेकिन यदि ऐसा हो भी तो क्या मानव का मानव के प्रति ऐसा क्रूर व्यवहार  सभ्य समाज में स्वीकार्य होना चाहिए? चीन के इस उत्तर-पश्चिमी प्रान्त में मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के हैं. ये लोग तुर्की नस्ल के सुन्नी मुसलमान हैं. इन्होने दसवीं शाताब्दी के इस्लाम कबूल कर लिया था. इसे पहले वे बौद्ध थे. उन्होंने अपनी अलग पहचान कायाम्राखी. उनकी अपनी ख़ास भाषा है, संस्कृति है और उनका खानपान भी अलग है. वे चीनी नहीं दीखते और न दिखना चाहते. लेकिन उन्हें चीनी पहचान अपनाने और पूरी तरह चीन की संस्कृति को अपनाने के लिए मजबूर किया जा रहा है. झिन्झेंग चीन का सबसे बड़ा प्रान्त है. इसकी सीमाएं आठ देशों की सीमाओं से लगी हैं,जिनमें से ज्यादादर इस्लामी देश हैं. लेकिन झिन्झेंग नास्तिक चीन का हिस्सा बना हुआ है. चीनी गणराज्य ने इस प्रान्त को 1949 में हथियाया. माओ झेडोंग ने रूस को इसे हस्तगत करने से रोकने के लिए इसे अपने नियंत्रण में ले लिया. उस वक्त झिन्झियांग में 76 प्रतिशत आबादी उइगर मुस्लिमों की थी. चीन के लिए इस प्रान्त का रणनीतिक महत्त्व बहुत अधिक है. यह झिन्पिंग बेल्ट का ह्रदय स्थल है. ऐसा कहा जा सकता है कि यह बीजिंग के लिए मध्य एशिया और यूरोप का द्वार है. कुदरत ने इस क्षेत्र को अपनी दौलत से खूब नवाज़ा है. चीन के एक-तिहाई प्राकृतिक गैस और आयल रिज़र्व झिन्झियांग में ही स्थित हैं. चीन का करीब 60 प्रतिशत कपास उत्पादन इसी प्रान्त में होता है. इसके 38 प्रतिशत कोल रिज़र्व भी यही हैं. इस तरह चीन के अरबों डॉलर की दौलत यह दांव पर लगी हैं. इन्हीं कारणों से यह चीन का यहाँ सबसे बड़ा फ़ौजी जमावड़ा है. कहा जाता है कि झिन्झियांग में रहने वाला हर तीसरा चीनी नागरिक सुरक्षा बालों में है. दस में से एक उइगर मुसलमान जेल में पड़ा है. करीब एक करोड़ मुस्लिम यहाँ रहते हैं. करीब 20 लाख मुस्लिम जेल में हैं. बाक़ी लोगों पर आधुनिक तकनीक से पूरे समय कड़ी नज़र रखी जा रही है. इसके लिए जगह-जगह कैमरे लगे हैं. यह सब आतंकवाद रोकने के नाम पर किया जा रहा है. दुनिया इसे प्रताड़ना कहती है. चीन इन मुस्लिमों को concentration camp में भेज देते हैं. चीन ने बहुत चालाकी से इन्हें re-education camp नाम दिया है. चीनी प्रशासन का कहना है कि उनके उग्रवादी व्यवहार को सुधार जा रहा है. लेकिन इसकी आड़ में कम्युनिस्ट सिद्धांत उनके गले उतारे जा रहे हैं. इसका विरोध करने वालों पर ज़ुल्म किये जाते हैं. उन्हें अकेला पटक दिया जाता है, काना और पानी नहीं दिया जाते. उन्हें सोने भी नहीं दिया जाता. communism के सिद्धांतों और नियमों को मान लेने पर ही उन्हें छोड़ा जाता है. लेकिन छूटने का मतलब यह नहीं है कि वे मुक्त हो गये. वे खुली जेल में रहते हैं और अपने त्यौहार नहीं मना सकते. उन्हें अपने पारंपरिक कपड़े पहनने की मनाही है. औरतें बुरका नहीं पहन सकतीं और नौजवानों को दाढ़ी रखें की इज़ाजत नहीं है. कुरआन का चीनी संस्करण किया ज्ञा है. यहाँ तक कि जो लोग इन नियमों का पालन नहीं करते उन्हें सार्वजनिक रूप से शर्मिन्दा किया जाता है और कभी-कभी उन्हें सरे मौत की सज़ा दी जाती है. इतना ही नहीं, चीन उइगर मुस्लिमों की आबादी कम करने के रास्ते तलाश रहा है. लिहाजा, उइगर औरतों की नसबंदी की जाती है और उनका गर्भपात करवा दिया जाता है. चीनी मर्दों को मुस्लिम घरों की निग्रानीका कम सौन्पजाता है. वे उइगर मुस्लिम औरतों के साथ काम करते हैं, वहीँ खाना खाते हैं और कभी-कभी उनके ही बिस्तर पर सोते भी हैं. उनके साथ बलात्कार करने की उन्हें राज्य से इज़ाजत है. संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे पहले विश्व युद्ध के बाद मानव अधिकारों का सबसे घोर उल्लंघन करार दिया है. लेकिन संघ ने इसे रोकने के लिए क्या किया? उसने दूसरे पश्चिमी देशों की तरह इस पर सिर्फ चिन्ता जताई है. वर्ष 1920-22 में 22 पश्चिमी देशों ने झिन्झियांग में इन घोर अत्याचारों पर बहुत फ़िक्र जताई. लेकिन इसके बाद क्या हुआ, इसके बारे में सोचा भी नहीं ज्ञा होगा. दुनिया के 37 देशों ने एक पत्र लिखकर चीन के इन अपराधों को आतंकविरोधी कार्यवाही कह कर उन्हें सही ठहरा दिया. इसके बाद इनमें से 14 देशों में मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है. ये सभी 14 देश Organisation of Islaamic Cooperation के सदस्य हैं. लुआ विडंबना है कि यह संगठन दुनिया में मुस्लिमों की आवाज़ होने का दावा करता है,लेकिन जब चीन में उइगर मुसलामानों पर अत्याचारों के विरोध में काम करने की बात आती है, तो ये सभी मिलकर चीन का बचाव करते हैं. इस संगठन के पांचप्रथम देश इस्लाम का संरक्षक होने का दावा करते हैं, इसलिए उन्हें इसके विरोध में सबसे अधिक मुखर होना चाहिए, परंतु वे सिर झुकाकर चपचाप खड़े रहते हैं. इनमें मुस्लिम एकता की सबसे ज्यादा दुहाई देने वाले देशों में सऊदी अरब, तुर्की, मलेशिया, ईरान और पाकिस्तान हैं. अपने मजहब या अपने मजहब के लोगों का ज़रा-सा भी अपमान होने पर वे बहुत ऊंची आवाज उठाते हैं, लेकिन चीन में उइगर मुसल्मानों पर घनघोर अत्याचार के बारे में मुंह में दही जमाये रहते हैं. ये देश किसी यथार्थवादी उपन्यास को सहन नहीं कर सकते, लेकिन चीन में मुस्लिम औरतों की नसबंदी पर चुप्पी साधे रहते हैं. उनकी चुप्पी की वजह यह है पैसा. मुस्लिम देशों में से 30 देश चाइना बेल्ट और रोड प्रोजेक्ट्स में भागीदार बनने पर सहमत हैं. उनके लिए चीन एक प्रमुख ट्रेड पार्टनर है और लगभग सभी मुस्लिम बहुसंख्यक देस, विशेष रूप से उपरोक्त तीन देश, मुस्लिम दुनिया के कथित लीडर हैं. वे चीन में मुस्लिम नरसंहार पर चुप हैं. सऊदी अरब इस्लामी दुनिया का मुख्य केंद्र है. वहाँ मुस्लिमों के सबसे पवित्र स्थल हैं. लेकिन उसे उनका रक्षक कहलाने का हक नहीं है, क्योंकि उसने चीन के मुस्लिमों की जगह चीन के पैसे को तरजीह दी है. सऊदी अरबा से जो तेल निर्यात होता है, उसमें से दसवां हिस्सा चीन जाता है. सूदी अरब इसके तेल उद्यूगों के निजीकरण के लिए चीनी पूँजी का मोहताज है. वर्ष 2017 में बीजिंग और रियाद के बीच 70 बिलियन डॉलर का सौदा हुआ. फर्फारी 2019 में सऊदी शहजादे ने चीन की यात्रा कि. यह उनकी पहली बड़ी यात्रा थी. उनसे उइगर मुसलमानों के मुद्दे पर पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि चीन को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आतंकवाद रोकने के लिए कदम उठाने का पूरा अधिकार है. अब ईरान को लीजिये. ईरान की सरकार ने 1989 में इस्लाम के सिद्धांतों की आलोचना करने वाली पुस्तक “The Satanic Verses लिखने पर सलमान रुश्दी के खिलाफ मौत का फतवा जारी किया था. ईरान ने चीन के मुलिमों पर अत्याचारों पर कुछ नहीं किया. अयातुल्ला खोमेनी हर जगह मुस्लिमों के अधिकारों की आवाज़ उठाने का दावा करते हैं. उन्होंने अपने हम-मजहब लोगों तक पहुँचने के लिए कई भाषाओं में ट्विटर एकाउंट लांच किया है. उनका एक ट्विटर एकाउंट हिन्दी में है, लेकिन चीनी भाषा मंदारिन में नहीं. वह चीन के मुस्लिमों से बात क्यों नहीं करते. वह ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि बीजिंग के साथ उनका आयल एक्सपोर्ट का बहुत बड़ा व्यापार है. उन्होंने व्यापार को मजहब पर तरजीह दी. और देखिये कि वह नया सुलतान बनना चाहते हैं. वह आधुनिक दुनिया में मुस्लिम देशों के खलीफा बनने की ख्वाहिश रखते हैं. वह संग्रहालयों को मस्जिदों में बदल रहे हैं. उनका दावा है कि पहले जो गलत हुआ है, वह उसे ठीक कर रहे हैं. लेकिन वह चीन में मुस्लिमों पर अत्याचार के खिलाफ कुछ नहीं कहते. उन्हें भी चीन से पैसा चाहिए. अब मलेशिया पर आते हैं. यह पाने देश में टेलीविज़न पर कट्टरपंथी लोगों को तकरीर करने की तो इजाजत देता है. उसने ज़ाकिर नाइक को लेकर भारत तक से सम्बन्ध बिगाड़ लिए. मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री इस्लामी दुनिया के नेता बनना चाहते थे. चीन में उइगर मुसलमानों के बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि उनके बारे में मुझे बहुत जानकारी नहीं है. अगर कोई पश्चिमी देश चीन में मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचारों की तुलना में उनका सौवां हिस्सा भी कर देता तो यही मुस्लिम देश गुस्से से लाल-पीले हो जाते. सऊदी अरब अपनी गेस आपूर्ति बंद कर देता. ईरान मौत का फतवा जारी कर देता. मलेशिया मुस्लिम देशों का सम्मलेन बुला लेता. टर्की एक कदम आग जाकर एक नयी विश्व व्यवस्था की वकालत करता. पाकिस्तान इसका बदला लेने के लिए आतंकियों को ट्रेनिंग देता. इस तरह देखा जाए, तो चीन में उइगर मुसलामानों का कोई हिमायत या संरक्षक नहीं है. सभ्य दुनिया ने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया है.