UN रिपोर्ट: बच्चों के विकास सूचकांक में 180 देशों में 131वें स्थान पर भारत


स्टोरी हाइलाइट्स

बच्चों के विकास सूचकांक के लिए संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी की गई रैंकिंग में भारत को 131वां स्थान मिला है।खास बात यह है कि विश्व के बड़े देशों में.....

बच्चों के विकास सूचकांक के लिए संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी की गई रैंकिंग में भारत को 131वां स्थान मिला है। खास बात यह है कि विश्व के बड़े देशों में शामिल होने के बाद भी भारत अपने पड़ोसी देश भूटान और श्रीलंका से इस मामले में काफी पीछे है। संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी विभिन्न वैश्विक संस्थाओं की इस अवधि में जारी रिपोर्टों का सूक्षम्ता से अध्य्यन करें तो पाएंगे सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद अर्थव्यवस्था, गरीबी से मुक्ति, कुपोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा, जनसँख्या विस्फोट, रोजगार, पर्यावरण आदि किसी भी क्षेत्र में हम खुशहाली के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएं। देशी और विदेशी संस्थाओं की विभिन्न विषयों पर जारी होने वाली रैंकिंग में भारत पिछड़ता ही जा रहा है। मोदी सरकार के लिए यह किसी चिंतन या चुनौती से कम नहीं है। बच्चों के विकास सूचकांक के लिए संयुक्त राष्ट्र की ओर से हालिया जारी रिपोर्ट भी चिंता में डालने वाली है। इस रिपोर्ट की रैंकिंग में भारत को 131वां स्थान मिला है। हमारे देश में बच्चों के विकास और भविष्य को लेकर हम आये दिन चर्चा करते है। रैंकिंग में श्रीलंका को 68वां और भूटान को 113वां स्थान मिला है। ऐसे में यह रिपोर्ट भारत के लिए चिंता का विषय हो सकती है। हर कोई बच्चों पर अपना अधिकार जमाना चाहता है। बच्चों के खेलने कूदने, शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन से लेकर उसके भरण-पोषण तक हर जगह बच्चों के अधिकारों को अनदेखा किया जाता है। भारत में गरीबी कुपोषण, अशिक्षा, अंधविश्वास, सामाजिक कुरीति,बाल विवाह और बॉल मजदूरी बचपन के सबसे बड़े दुश्मन है। महानगरों में रहने वाले परिवारों की तैयार भोजन, फास्ट फूड, जंक फूड, और शुगर ड्रिंक आदि पर निर्भरता ज्यादा ही बढ़ गई है। यह बच्चों के प्रिय नाश्ते में शुमार हो गया है। आहार विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं फास्ट फूड कभी-कभार तो ठीक है लेकिन इनका ज्यादा इस्तेमाल सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। इन उत्पादों के सेवन से बच्चे जल्दी बीमार हो जाते हैं। बचपन को खतरे से बचाने के लिए इन पदार्थों से दूर रहना ही हितकर है। क्या है बच्चों का विकास सूचकांक? बच्चो के विकास सूचकांक में माता और पांच साल से कम आयु के बच्चों की उत्तर जीविता, आत्महत्या दर, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सुविधा, बुनियादी साफ-सफाई, भीषण गरीबी से मुक्ति और बच्चे का विकास आदि बिंदुओं को शामिल किया जाता है। इसके आधार पर विशेषज्ञों ने विश्वभर के 180 देशों में सर्वे कर रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कोई भी देश बच्चों को टिकाऊ भविष्य देने के पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी रिपोर्ट में खास बात यह है कि विश्व के बड़े देशों में शामिल होने के बाद भी भारत अपने पड़ोसी देश भूटान और श्रीलंका से इस मामले में काफी पीछे है। बच्चों के विकास सूचकांक में माता और पांच साल से कम आयु के बच्चों की उत्तर जीविता, आत्महत्या दर, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सुविधा, बुनियादी साफ-सफाई, भीषण गरीबी से मुक्ति और बच्चे का विकास आदि बिंदुओं को शामिल किया जाता है। इसके आधार पर विशेषज्ञों ने विश्वभर के 180 देशों में सर्वे कर रिपोर्ट तैयार की है। यह रिपोर्ट विश्व के 40 से अधिक बाल एवं किशोर स्वास्थ्य विशेषज्ञों की ओर से तैयार की गई है। इसे तैयार करने के लिए विशेषज्ञों ने दुनिया के 180 देशों में बच्चों के स्वास्थ्य, विकास और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों का विश्लेषण किया था। रिपोर्ट में भारत को मध्यम दर्जे से नीचे की अर्थव्यवस्था वाला देश करार दिया गया है। यह स्थिति दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कहलाने वाले भारत के लिए चिंताजनक है। इन विशेषज्ञों की ओर से निरंतरता सूचकांक भी जारी किया गया है। इसमें भारत को 77वां स्थान मिला है। निरंतरता या संवहनीयता सूचकांक का मतलब है कि देशों में बच्चों के बेहतर विकास के लिए किस तरह के साधन या माहौल मुहैया कराया जा रहा है। रिपोर्ट 40 विशेषज्ञों ने तैयार की है रिपोर्ट यह रिपोर्ट विश्व के 40 से अधिक बाल एवं किशोर स्वास्थ्य विशेषज्ञों की ओर से तैयार की गई है। इन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) और द लैंसेट मेडिकल जर्नल द्वारा नियुक्त किया गया था। ऐसे में यह रिपोर्ट विश्व के देशों के विकास के हिसाब से बहुत मायने रखती है। इसे तैयार करने के लिए विशेषज्ञों ने दुनिया के 180 देशों में बच्चों के स्वास्थ्य, विकास और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों का विश्लेषण किया था। बच्चों में अपराध और बाल मजदूरी के मामले में भी हमारा देश आगे है। हालांकि सरकार दावा कर रही है कि बाल मजदूरी में अपेक्षाकृत काफी कमी आई है। सरकार ने बाल श्रम रोकने के लिए अनेक कानून बनाये हैं और कड़ी सजा का प्रावधान भी किया है मगर असल में आज भी लाखों बच्चे कल-कारखानों से लेकर विभिन्न स्थानों पर मजदूरी कर रहे हैं। चाय की दुकानों पर, फल-सब्जी से लेकर मोटर गाड़ियों में हवा भरने, होटल, रेस्टोरेंटों में और छोटे-मोटे उद्योग धंधों में बाल मजदूर सामान्य तौर पर देखने को मिल जाते हैं। ये बच्चे गरीबी के कारण स्कूलों का मुंह नहीं देखते और परिवार पोषण के नाम पर मजदूरी में धकेल दिये जाते हैं। शीर्ष देश बच्चों के विकास में ये हैं शीर्ष 10 देश बच्चों के विकास सूचकांक में नॉर्वे को पहला स्थान मिला है। इसी तरह दक्षिण कोरिया को दूसरा, नीदरलैंड को तीसरा, यूरोपीय देश फ्रांस को चौथा, आयरलैड को पांचवां और डेनमार्क को छठा स्थान मिला है। इसी प्रकार जापान सातवां, बेल्जियम को आठवां, आइसलैंड को नौवां और यूनाइटेड किंगडम को 10वां स्थान मिला है। इसी सूची में ईराक को 121वां, पाकिस्तान को 140वां तथा बांग्लादेश को 143 वां स्थान मिला है। हालत खराब इन देशों की हालत सबसे ज्यादा खराब। रिपोर्ट में बुरुंडी 156वें, सिएरा लियॉन 172वें, साउथ सूडान 173वें, नाइजीरिया 174वें, गिनी 175वें, माली 176वें, नाइजर 177वें, सोमालिया 178वें, अफ्रीका का चाड 179वें और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक को 180वें स्थान पर है। ये इस मामले में सबसे पिछड़े देश हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन देशों के बच्चे संघर्ष और खाद्य सुरक्षा जैसे अन्य मानवीय संकटों से घिरे हुए हैं। जिसका मूल कारण जलवायु में हो रहा परिवर्तन ही है। लोअर मिडिल इनकम भारत को बताया लोअर मिडिल इनकम वाला देश। रिपोर्ट में भारत को मध्यम दर्जे से नीचे की अर्थव्यवस्था वाला देश करार दिया गया है। यह स्थिति दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कहलाने वाले भारत के लिए चिंताजनक है। इस सूची में चीन को 43वां स्थान मिला है। इनकम के मामले में भी चीन को अपर मिडिल इनकम देश बताया गया है। रिपोर्ट में बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि धरती लगातार बच्चों के जीने के लिए मुश्किल जगह बनती जा रही है। निरंतरता सूचकांक भारत को निरंतरता सूचकांक में मिला 77वां स्थान । इन विशेषज्ञों की ओर से निरंतरता सूचकांक भी जारी किया गया है। इसमें भारत को 77वां स्थान मिला है। निरंतरता या संवहनीयता सूचकांक का मतलब है कि देशों में बच्चों के बेहतर विकास के लिए किस तरह के साधन या माहौल मुहैया कराया जा रहा है। शोधकर्ताओं में से एक विश्व स्वास्थ्य एवं संवहनीयता के प्रोफेसर एंथनी कोटेलो ने कहा दुनिया का कोई भी देश बच्चों के विकास और स्वस्थ्य भविष्य के लिए आवश्यक परिस्थितियां उपलब्ध नहीं करा रहा है। बच्चों का भविष्य संवारने के लिए वह हर जतन करना चाहिये जिससे बच्चे अपने अधिकारों को प्राप्त कर सके। सरकार के साथ साथ समाज का भी यह दायित्व है कि वह बचपन को सुरक्षित रखने का हर प्रयास करे जिससे हमारा देश प्रगति और विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ सके। बच्चों का बचपन सुधरेगा तो देश का भविष्य भी सुरक्षित होगा। बच्चों के कल्याण की बहुमुखी योजनाओं को धरातली स्तर पर अमलीजामा पहनाकर हम देश के नौनिहालों को सुरक्षित जीवन प्रदान कर सकते हैं। आवश्यकता इस बात की है की हम कागजी कारवाही और भाषणबाजी से ऊपर उठकर धरातल पर आकर यथार्त में बच्चों के विकास की योजनाओं को अमली जमा पहनाएं ताकि उनके चेहरे पर मुस्कान आ सके।