जमीन की दरों पर विचार के लिए नियामक आयोग क्यों नही बनता: सरयूसुत मिश्र


स्टोरी हाइलाइट्स

जमीन की दरों पर विचार के लिए नियामक आयोग क्यों नही बनता: तेजी से हो रहा शहरीकरण और अनियंत्रित शहरी विकास आज एक बड़ी त्रासदी के रूप में उभर रहा है ।....

जमीन की दरों पर विचार के लिए नियामक आयोग क्यों नही बनता सरयूसुत मिश्र   तेजी से हो रहा शहरीकरण और अनियंत्रित शहरी विकास आज एक बड़ी त्रासदी के रूप में उभर रहा है । मास्टर प्लान वर्षों से नहीं बने हैं और बेतरतीब ढंग से शहर बढ़ रहे हैं। बिना किसी नियोजन के झुग्गी झोपड़ी और अवैध कालोनियां विकसित होती जा रही हैं। यह सब कुछ सरकारी तंत्र और सरकार की नीतियों के अंतर्गत हो रही हैं। राजधानी भोपाल में जमीनों के दाम बढ़ाने का मामला काफी चर्चा में है। लोग इसका विशलेषण कर रहे है। पंजीयन विभाग शहर की जमीनों की गाइडलाइन और दरें तय करता है और इन्हीं दरों पर जमीनों की खरीदी विक्री होती है। राजधानी भोपाल में अभी 12.5% की दर से जमीनों पर रजिस्ट्री शुल्क लगता है जो देश में सर्वाधिक है। अब फिर से जमीनों की दरें प्रस्तावित की गई है। जमीनों के रेट्स में प्रस्तावित वृद्धि का विरोध हो रहा है। रियल स्टेट और आम नागरिकों का भी यह कहना है जब जब रजिस्ट्री की दरें राजधानी में सबसे ज्यादा है और दरें भी काफी अधिक हैं तो वृद्धि नहीं होना चाहिए। सरकारी तंत्र अपने वित्तीय टारगेट पूरा करने के लिए दरों में वृद्धि ही एकमात्र रास्ता दिखाई देता है। इस बार प्रस्तावित वृद्धि में पंजीयन विभाग द्वारा कमर्शियल एवं आवासीय आधार पर कुछ नए क्षेत्रों को कमर्शियल घोषित किया जा रहा है और इसके कारण इन क्षेत्रों में जमीनों की प्रस्तावित दरें वर्तमान दरों से लगभग दोगुनी हो रही है। इस वृद्धि का आधार राजधानी के 2005 और 2021 के मास्टर प्लान को बनाया गया है। यह कितना हास्यास्पद है कि जो मास्टर प्लान लागू ही नहीं हुआ उस को आधार बनाकर जमीनों की दरें बढ़ाई जा रही है। कोरोना मैं अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब हुई है। लोगों की इनकम और परचेसिंग पावर कम हुई है। राज्य सरकार की आर्थिक स्थिति भी चरमराई है। सरकार कर्ज लेकर व्यवस्था चला रही है, ऐसी स्थिति में जमीनों का दाम बढ़ाकर लोगों पर भार डालना कहां तक उचित है? इस तथ्य पर भी विचार होना समय की आवश्यकता है कि जमीनों की दरें बहाने का काम उसी तंत्र के पास क्यों रहे जो इससे जुड़ा हुआ है। ऐसा क्यों नहीं सोचा जाता इसके लिए स्वतंत्र एजेंसी हो। जब बिजली की दरें मैं वृद्धि पर विचार के लिए नियामक आयोग है जब शिक्षा संस्थानों में फीस निर्धारण के लिए नियामक आयोग है तो फिर जमीनों की दरों मैं वृद्धि के लिए कोई आयोग क्यों नहीं बनाया जा सकता। रियल स्टेट के लिए रेरा का गठन किया गया है। रेरा को ही स्वतंत्र रूप से यह दायित्व क्यों नहीं दिया जा सकता। दरों में वृद्धि प्रस्तावित करते समय यह क्यों नहीं देखा जाता की जिन क्षेत्रों में दरें बढ़ाई जा रही हैं वहां पर बुनियादी सुविधाएं क्या क्या है और किन सुविधाओं की कमी है दरों में वृद्धि को बुनियादी सुविधाओं के साथ जोड़कर क्यों नहीं देखा जा सकता है। दरों में वृद्धि से कई चीजें जुड़ी हुई है । चाहे रियल स्टेट पर इसका प्रभाव हो और इसके कारण प्रभावित हो रहा रोजगार हो इन सब चीजों को समग्र रूप से देख कर दरें तय होगी तो ज्यादा बेहतर है भोपाल, देश का खूबसूरत शहर है । इस शहर की खूबसूरती और बढ़े इसलिए जरूरी है की बहुत ही सोच समझकर शहरी विकास की गतिविधियों पर आगे बढ़ा जाए|