क्यों इदम को ही अहम मानता है इंसान?  गीता ज्ञान : P अतुल विनोद : Understanding the connection of the Soul and Body


स्टोरी हाइलाइट्स

क्यों इदम को ही अहम मानता है इंसान?  गीता ज्ञान : P अतुल विनोद    Understanding the connection of the Soul and Body   योग दर्शन मनुष्य के शरीरों तीन स्तर(लेयर) से बना मानता है|  इन तीन स्तर को मुख्य रूप से स्थूल, सूक्ष्म, कारण नाम दिया गया है|  आत्मा इन तीनो शरीरों से अलग है|  स्थूल शरीर अन्न से बना है जो दीखता है| सूक्ष्म शरीर प्राण से बना है और कारण शरीर मन से बना है|  गीता में कृष्ण कहते हैं कि तीनो ही शरीर अस्थाई हैं| तीनो ही साथ छोड़ देंगे लेकिन हम तीनो को ही मैं मान लेते हैं|  इन तीनो शरीरों को कृष्ण इदम कहते हैं|  इदम शरीर है और अहम् आत्मा है|  लेकिन भ्रम के कारण हम इन शरीर को ही अहम मान लेते हैं|  इदम को अहम बना लेना ही माया है|  क्या आत्मा इन शरीरों की पहचान को हमेशा साथ लेकर चल सकती है?  इसीलिए ईश्वर की व्यवस्था में एक जीवन छोड़ने के बाद आत्मा को शरीर के साथ उस पहचान को भी भूलना पड़ता है|  यही वजह है कि हमे सामान्य रूप से पूर्व जन्म याद नहीं रहते|  मैं साधू हूँ, मैं नेता हूँ, मैं कारोबारी हूँ, मैं पत्रकार हूँ,  मैं चित्रकार हूँ हम इसी में भ्रमित रहते हैं|  आत्मा के महाजीवन में इस जीवन की पहचान एक बड़ी किताब के चेप्टर की तरह है|  अब हम इस चैप्टर को ही सब मान लें तो गलत होगा न|  इसलिए श्री कृष्ण कहते हैं कि सच्चाई को समझो जो नष्ट हो जाने वाला है| उसे मैं और मेरा कहना छोडो और उसमे रहते हुए भी निर्लिप्त रहो|  जीवन के सभी भोगों को भोगते रहो लेकिन उसमे डूब ना जाना|    नाचो गाओ जश्न मनाओ, दुःख मिले तो उसे भी स्वीकार करो, लेकिन दोनों को सतह पर ही रखो आत्मा तक मत जाने दो|  जैसे फिल्म में  एक्टिंग करने वाला उस भूमिका को अच्छी तरह निभाते हुए भी अंदर ये जानता है कि मैं सिर्फ एक पात्र हूँ वैसे ही तुम भी जीवन के सभी भूमिकाओं को निभाते हुए भी ये यादा रखो कि मैं तो भगवान का हूँ, उसी का अंश हूँ, ये शरीर प्राण और मन से बना शरीर मैं नहीं| मैं आत्मा हूँ|  जीव हमेशा से ही भगवान का है|  जो बदलते ही रहना है, जो छूट ही जाना है, उससे बहुत ज्यादा लगाव मत रखना … उसका ख्याल रखो, लेकिन एक माली की तरह| हमारी भूल क्या होती है?  जिसका मिलना तय नहीं, मिल भी जाए तो बरकरार रहना तय नहीं, उसे हासिल में में हम अपना सब कुछ दाव पर लगा देते हैं|  लेकिन उसे हासिल करने में दिखावे की (हल्की फुल्की कोशिश) करते हैं जो निश्चित है, अविनाशी है, परम है|  जो नाशवान है| जो कभी ना कभी मिट ही जाना है| बदल ही जाएगा| छूट ही जाएगा उसी में २४ घंटे लगा देना हमारी सबसे बड़ी मुर्खता है|  जो टिकेगा उसी पर टिको|  शरीर है संसार का हिस्सा,  आत्मा है परमात्मा का हिस्सा|  शरीर को संसार से जोड़ देना, संसार(प्रकृति) और आत्मा को पुरुष (परमात्मा) से जोड़ देना है| शरीर को प्रकृति को सौप देना है और आत्मा को परमात्मा को सौंप देना है|  प्रक्टिकली ये मुश्किल नज़र आता है| फिर कैसे करें?  बस ज्यादा चिंता न करें| शरीर को प्राकृतिक जीवन शैली और खान पान दें| आत्मा यानी खुद को भगवान को सौंपने का मतलब है तेरी मर्जी … तू जो दे उसी में खुश .. अब तू ही मेरा ख्याल रख, अपना काम कर रहा हूँ, बेहतर ढंग से कर रहा हूँ, करवाने वाला भी तू ही है,परिणाम तेरे जिम्मे है|  एक सवाल उठ सकता है इश्वर का आत्मा कैसे अंश हो सकती है? निश्चित ही आत्मा खुद भगवान ही है लेकिन शरीर से जुडकर अंश हो गयी है|  भोग "शरीर" की इच्छा है "आत्मा" की नही, तत्व और प्रेम की इच्छा की अपनी है|  शरीर की इच्छा को सीमित करते जाना, तत्व व प्रेम की इच्छा बढ़ाते जाना ही मानव का लक्ष्य है|  How to connect with my atman (soul), The Search for Self-fulfillment, Exploring Soul Nature and God. A Triad in Bhagavad gita, The Hidden Truths in the Bhagavad Gita, Descriptions of Soul or Atman In The Bhagavadgita