मौत क्या है? एक अलग दृष्टिकोण....


स्टोरी हाइलाइट्स

मौत एक ऐसा कटु सत्य है, जो प्रत्येक प्राणी के साथ होना अनिवार्य  है अर्थात जो पैदा हुआ है उसकी मौत निश्चित है. मनुष्य समेत कोई भी जीव क्यों इस संसार ...

मौत क्या है? एक अलग दृष्टिकोण....  ‘”मौत एक ऐसा कटु सत्य है, जो प्रत्येक प्राणी के साथ होना अनिवार्य  है अर्थात जो पैदा हुआ है उसकी मौत निश्चित है. मनुष्य समेत कोई भी जीव क्यों इस संसार में आता है और क्यों चला जाता है, यह एक ऐसी पहेली है जिसे कोई भी आज तक नहीं समझ सका जो समझने का दावा करता है, वह उसकी कल्पना मात्र ही है, जिसे तर्क के आधार पर कभी भी  सिद्ध नहीं किया जा सका. यह भी एक कटु सत्य है की मौत का कोई नियत समय नहीं होता.पता नहीं कब कौन इसका शिकार बन जाय.अतः  मौत को अनेक आयामों से देखा जा सकता है.जैसे मौत कभी एक आवश्यकता लगती है, जब कोई व्यक्ति मृत्यु शैय्या पर कष्ट झेल रहा होता है,उसके लिए मौत एक सुखद अहसास है,कष्टों से मुक्ति है, मौत बेहद दर्दनाक लगती है, जब कोई व्यक्ति अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूर्ण किया बिना अचानक मौत की आगोश में चला जाता है,या बहुत ही कम उम्र में मृत्यु को प्राप्त होता है जिसे असमय मृत्यु कहा जाता है. वृद्धावस्था में किसी मृत्यु होना, नयी पीढ़ी को जीने के लिए अवसर प्रदान करती है,उसके जीवन को आसान बनाती है अर्थात दुनिया के लिए लाभकारी है और यही मृत्यु सांसारिक चक्र का नियम भी है.” अनेक कहावतें है की मानव बार बार जन्म लेता है,आत्मा अजर अमर है,आखिर आत्मा भी एक कल्पना मात्र ही है, जिसे सिद्ध नहीं किया जा सकता. स्वर्ग नरक की कल्पना भी बे बुनियाद है जब  शरीर ही नहीं रहा तो उसे सुख और दुःख का क्या अहसास हो सकता है.सुख और दुःख का अहसास शरीर द्वारा ही संभव होता है. क्या हवा रुपी किसी वस्तु को कोई काट या मार सकता है ? जब तक शरीर है तब तक ही उसे सुख या दुःख का अहसास हो सकता है,मरने के पश्चात् तो चाहे उसके हजार टुकड़े कर दो कुछ भी कष्ट नहीं होता.पोस्ट मार्टम में भी यही सब कुछ होता है. अतः स्वर्ग नरक की धारणा मानव मात्र को भयभीत करने  के लिए की गयी कल्पना मात्र है,पाप पुन्य भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है.विभिन्न धर्मों का उदय मानव समाज को व्यवस्थित करने के लिए हुआ.जो मात्र विश्वास पर आधारित होता है जिसके लिए कोई तर्क काम नहीं करता. मौत की परिभाषा भी करना कोई आसान नहीं है.एक इन्सान जो अपने जीते जी किसी को फूटी कौड़ी भी देने को तैयार न हो परन्तु मरने के पश्चात् उसे सभी प्रिय वस्तुओं  को छोड़ कर जाना पड़ता है,जीवन भर एकत्र की गयी संपत्ति ऐसे छोड़ कर जाना पड़ता है. उसे पता ही नहीं रहता की वह इस दुनिया में कभी आया था, वह शून्य में विलीन हो जाता है.उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है. जिसे हम जीवन भर अपने सामने देखते हैं मृत्यु के पश्चात् वह राख के ढेर में बदल जाता है उसकी हड्डियों को गिन सकते हैं, चुन सकते हैं. कितना अजीब मंजर है यह सब, परन्तु यह भी कडवा सत्य है, की हम  सबको इसी दौर से गुजरना होगा.परन्तु जीते जी हम अनेक प्रकार के राग द्वेष,लोभ, मोह पाले रहते है. यह भी सच्चाई है कोई भी जीव मरना नहीं चाहता.वह अनेक कष्टों को झेलते हुए भी अपने जीवन को बनाये रखने के लिए  हर संभव प्रयास करता है. वह अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिए दिन रात कड़ी मेहनत करता है,और अपनी  भूख, प्यास, नींद, आराम सब कुछ छोड़ कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास करता है. अंतिम क्षणों तक जीने के प्रयास के इसी मानवीय गुण के कारण एक बस में यात्रा कर रहे पचास या उससे भी अधिक यात्री चिंता मुक्त होकर सफ़र करते हैं, या एक विमान में हजारो की संख्या में यात्री विमान के पायलट सहित चंद अन्य स्टाफ पर निर्भर रहते हुए निर्भीक होकर सफ़र करते हैं.क्योंकि सब जानते हैं की पायलट या बस ड्राईवर अपनी जान बचाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे और हमारा जीवन भी यथा संभव सुरक्षित करने का प्रयास करेंगे. हम अपने  जीवन  में अनेक बार अपने सगे सम्बन्धियों,मित्रों की मौत को देखते हैं उनके दुःख में शामिल होते हैं परन्तु जब कोई ख़ास अपना व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होता है तो यह अनुभव कुछ अधिक संवेदन शील होता है.जब उसका कोई निकटतम व्यक्ति उससे जुदा होता है उसके साथ जुडी जीवन भर की यादें उसे अनेक बार सोचने को मजबूर करती हैं, आखिर आपका वह खास व्यक्ति कहाँ चला गया. अब वह कभी वापस नहीं आ सकता. उसकी रिक्तता आपको हमेशा व्यथित तो करती  ही है भले ही आपके विचार उससे कभी न मिले हों. आपका उससे कभी सामंजस्य न बना हो.परन्तु उससे जुडी कडवी मीठी यादें तो आपको हिलाती रहती है.और मौत की सत्यता का अहसास दिलाती हैं सत्य शील अग्रवाल लेखक व विचारक(ये लेखक के अपने विचार हैं)