मृत्यु और पुनर्जन्म क्या कहते हैं वेद-पुराण?


स्टोरी हाइलाइट्स

पुनर्जन्म एक ऐसी पहेली है जिसे विज्ञान आज भी नहीं सुलझा पाया, पुनर्जन्म को लेकर वेद पुराणों की  जिन मान्यताओं को विज्ञान ने कोरी कल्पना बताया था वह आज सच साबित होती जा रही हैं| आज आपको बताएँगे मृत्यु और पुनर्जन्म को लेकर क्या कहते हैं हमारे पुराण |  इस सृष्टि का एक ही सत्य अटल है और वो है मौत  मौत के अलावा ऐसा कुछ भी नहीं है जिसका होना तय है। धरती पर जन्म लेने वाले हर जीव को एक ना एक दिन अपने शरीर को छोड़ना ही पड़ता है। लेकिन मौत ही आखिरी सच्चाई नहीं है| यदि पुराणों की माने तो मरने के बाद फिर पैदा होना भी अटल नियम है| मरने के बाद इस धरती पर वापस कौन लौटता है सबसे पहले ये जान लें-  पुराणों के मुताबिक़ साधारण प्रकार के लोग अपनी मृत्यु होने के बाद तुरंत किसी न किसी गर्भ में चले जाते हैं, किसी न किसी शरीर को हासिल कर लेते हैं। आज ऐसे की उदाहरण मौजूद हैं जो ये बताते हैं कि मरने के बाद ही सब कुछ खत्म नहीं होता| विश्व के सब से प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद से लेकर वेद, दर्शनशास्त्र, पुराण , गीता, योग ग्रंथों में पूर्वजन्म की मान्यता दी गयी है। सनातन धर्म में ८४ लाख योनियों की बात कही गयी है जिसमे आत्मा जन्म लेती है| आत्मज्ञान होने के बाद मरने जीने की कड़ी  रुकती है, जिसे मोक्ष के नाम से जाना जाता है। गरुड़ पुराण एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें जीवन और मृत्यु की हर सच्चाई का ब्यौरा तो है ही साथ ही इस बात का भी उल्लेख है कि मृत्यु के बाद आत्मा किस तरह और किन-किन हालातों से गुजरते हुए यमलोक तक पहुंचती है।यमलोक पहुंचने के बाद उसके जीवित अवस्था में किए गए पाप और पुण्य का हिसाब-किताब होता है, जिनके अनुसार उसे आगे के हालातों को पार करना पड़ता है। गरुड़ पुराण के मुताबिक़ मृत्यु के पश्चात 47 दिनों की यात्रा कर आत्मा यमलोक पहुंचती है। गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक 99 योजन दूर है, एक योजन चार कोस के बराबर और चार कोस 13 किलोमीटर के बराबर होता है। लेकिन यमराज के दूत कुछ ही देर में उस आत्मा को अपने साथ यमलोक पहुंचा देते हैं। यहां पहुंचने के बाद यमदूत उसे यमराज के सामने प्रस्तुत करते हैं। यमराज उस आत्मा को उसके द्वारा किए गए पापों के अनुसार सजा देते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक तक पहुंचने के बीच 16 पुरियों को पार करना होता है| इसके बाद वह आत्मा यमराज की आज्ञा पाकर अपने घर वापस लौटती है। घर आकर वह आत्मा अपने शरीर को वापस पाने का आग्रह करती है लेकिन यमदूत उसे अपने बंधन में रखते हैं। मृत्यु के पश्चात परिवारवाले पिंड-दान और ब्राह्मणों को भोजन तो करवाते हैं लेकिन पापी आत्मा को उस दान-पुण्य से तृप्ति नहीं मिलती। भूख और प्यास से बिलखती हुई वह दोबारा यमलोक पहुंचती है। अगर मृत व्यक्ति के परिवारवाले पिंडदान और पूरे विधान के साथ अंतिम संस्कार नहीं करते तो वह आत्मा सुनसान जंगल में प्रेत बनकर घूमने लगती है। गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान किया जाना चाहिए। हररोज़ किया जाना वाला पिंडदान चार भागों में विभाजित होता है। दो भाग पंचमहाभूत, देह को पुष्टि देने वाले होते हैं, तीसरा भाग यमदूत और चौथा भाग आत्मा का होता है। नौवें दिन पिंडदान करने से आत्मा का शरीर बनने लगता है और दसवें दिन पिंडदान करने के बाद आत्मा को चलने की शक्ति मिलती है। और अब आपको बताते हैं आत्माओं को पुनर्जन्म कब और कैसे मिलता है|  अक्‍सर लोगों के दिलों दिमाग में पहला सवाल आता होगा कि मुत्‍यु के बाद क्‍या होता होगा? इसे भी तीन अवस्‍था में विभक्‍त किया गया है। प्रथम अवस्था में मानव को समस्त अच्छे-बुरे कर्मों का फल इसी जीवन में प्राप्त होता है। दूसरी अवस्था में मृत्यु के उपरान्त मनुष्य विभिन्न चौरासी लाख योनियों में से किसी एक में अपने कर्मानुसार जन्म लेता है।  तीसरी अवस्था में वह अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक में जाता है। गरुड़ पुराण के दूसरे अध्‍याय में प्रेतकाल या नरक में पहुंचने पर जीवन में किए गए पापों के अनुसार कैसे यम के दास सजा या यातानाएं देते है इस बारे में बताया गया है। इनमें से कुछ सजाओं के बारे में यहां बताया जा रहा है।  तामिस्र अपराध- जो लोग दूसरों की संपत्ति पर कब्ज़ा करने का प्रयास करते हैं, जैसे कि चोरी करना या लूटना। उन्हें तामिस्र में यमराज द्वारा सजा मिलती है।  अन्धामित्रम अपराध- जो पति पत्नी अपने रिश्ते को ईमानदारी से नहीं निभाते हैं और एक दूसरे को धोखा देते हैं उन्हें अन्धामित्रम की सजा दी जाती है।  महाररूरवं अपराध- किसी अन्य की संपत्ति को नष्ट करना, किसी की संपत्ति पर अवैध कब्जा करना, दूसरों के अधिकार छीना और संपत्ति पर अवैद कब्ज़जा करके उस उसकी संपत्ति और परिवार को ख़त्म करना।  कुंभीपाकम अपराध- मज़ा लेने के लिए जानवरों की हत्या। दंड -  असितपात्र अपराध- अपने कर्तव्यों का परित्याग करना, भगवान के आदेश को ना मानना और धर्म प्रथाओं उल्लंघन करना।  अंधकूपम अपराध- संसाधन होने के बावजूद ज़रूरतमंदों की सहायता न करना और अच्छे लोगों पर अत्याचार करना।  अग्निकुण्डम अपराध- बलपूर्वक अन्य संपत्ति को चोरी करना, सोने और जवाहरात की चोरी करना, और अनुचित फायदा उठाना।  कृमिभोजनम अपराध- मेहमानों को अपमानित करना और अपने फायदे के लिए दूसरों का इस्तेमाल करना।  गुराण पुरुण में ऐसे 28 अपराधों और सजाओं के बारे में बताया गया है।  यमलोक में इस तरह दुष्‍ट आत्‍माओं को यातनाएं मिलती है।  कुछ लोगों में ये धारणा बनी है कि गरुडपुराण को घर में नहीं रखना चाहिये। केवल श्राद्ध, प्रेतकार्यों में ही इसकी कथा सुनते हैं। यह धारणा भ्रामक और अन्धविश्वास से भरी है, कारण इस ग्रन्थ की महिमा में ही यह बात लिखी है कि ‘जो मनुष्य इस गरुडपुराण-सारोद्धार को सुनता है, चाहे जैसे भी इसका पाठ करता है, वह यमराज की भयंकर यातनाओं को तोड़कर निष्पाप होकर स्वर्ग प्राप्त करता है। पुराणों में कई कथाएं भी ‌म‌िलती हैं जो यह बताती हैं क‌ि मृत्यु के समय व्यक्त‌ि की जैसे चाहत और भावना होती है उसी मुताबिक उसे नया जन्म म‌िलता है। पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त भर नहीं है। इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों और परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस काम हुआ है।