प्रेम वास्तव में क्या है ?  क्या हम प्रेम के बारे में सब कुछ जानते हैं ?  अतुल विनोद 


स्टोरी हाइलाइट्स

प्रेम जिसे अंग्रेजी में लव कहा जाता है एक कठिन वर्ड है|  हां हम इतना जानते हैं की प्रेम एक बहुत इंपॉर्टेंट इमोशनल इंसिडेंट है| प्रेम वास्तव में क्या है..

प्रेम वास्तव में क्या है ?  क्या हम प्रेम के बारे में सब कुछ जानते हैं ?  अतुल विनोद  क्या हम प्रेम के बारे में सब कुछ जानते हैं ? अगर नहीं तो जानिए .. प्रेम जिसे अंग्रेजी में लव कहा जाता है, यह एक कठिन वर्ड है| हां हम इतना जानते हैं की प्रेम एक बहुत इंपॉर्टेंट इमोशनल इंसिडेंट है| जब भी घटता है तो हम हैरत में पड़ जाते हैं कि आखिरी ऐसा क्यों है ? हालांकि लव अब साइंस की रडार पर है और उसे लेकर तमाम तरह के रिसर्च चल रहे हैं| लेकिन भारत में लव और प्रेम को एक दूसरे का पर्यायवाची नहीं माना जाता| भारत में प्रेम को लव से ऊपर का दर्जा दिया गया है| और इससे ईश्वरीय घटना माना गया है| प्रेम शब्द का प्रयोग इंसान ने जितनी बार किया है शायद ही किसी और दूसरे वर्ड का इतना उपयोग किया गया होगा| सदियों से प्रेम सबसे रहस्यमई विषयों में से एक रहा है| प्रेम हमें सबसे करीब से छूता है लेकिन उसी के बारे में हम सबसे कम जानते हैं| इंसान ने चांद तारों को छूना सीख लिया लेकिन प्रेम कैसे किया जाता है यह वह आज तक नहीं सीख पाया| लव मनुष्य के जीवन की सबसे रहस्यमई पहेलियों में से हैं| आखिर ऐसा क्यों है कि प्रेम हमारी समझ से परे है ? साइंस शायद ही कभी प्रेम को गहराई से समझ पाए |दरअसल प्रेम साइंस का विषय है भी नहीं| हालांकि प्यार यानी लव के साथ कुछ केमिकल लोचे जुड़े हो सकते हैं जिन तक साइंस पहुंच पाए| लेकिन वास्तविक प्रेम विज्ञान की सीमा से परे था है और रहेगा| प्रेम को लेकर बहुत कुछ लिखा जा चुका है देश दुनिया के लाखों कवि कलाकार कथाकारों ने इतना लिखा है जिसकी कोई सीमा नहीं है| हालांकि इन किताबों में ज्यादातर फोकस कैसे किया जाए, क्योंकि इसमें प्रेम के साथ सेक्स रिलेशन को भी जोड़ दिया गया है| लेकिन इस पर बहुत गहराई से बहुत कम ही लिखा और कहा गया है| आमतौर पर विदेशी व्याख्याकारों ने यही कहने की कोशिश की है कि प्रेम काम की इच्छा के दमन से पैदा होने वाली मानसिक भावना है| हालांकि प्रेम को अध्यात्म से जोंड़ने वाले भी कम नहीं है| प्रेम को परोपकार से और सामाजिकता से जोड़कर भी बताया जाता रहा है और ऐसा भी कहा गया कि जहां प्रेम के साथ “काम” जुड़ गया वहां प्रेम दूषित हो गया| काम केंद्रों से जुड़े प्रेम को निकृष्ट स्तर का और इनसे परे प्रेम को उत्कृष्ट स्तर का कहा गया| हालांकि प्रेम ना तो  काम केंद्रों का विरोधी है ना ही समर्थक| काम तो हर जीव में मौजूद होती है और जब से जीवन की शुरुआत हुई तब से यह प्रवृत्ति है| लेकिन प्रेम धीरे-धीरे विकसित हुआ| जीव जंतुओं में भी काम संबंध स्थापित होते हैं लेकिन कार्य पूरा होते ही वह अलग अलग हो जाते हैं| मानव ने प्रेम को धीरे-धीरे विकसित किया है| मानव ने यह महसूस किया कि शारीरिक संतुष्टि तक सीमित रहना यानी जानवरों की तरह जीना| उसे पता चला कि शारीरिक संतुष्टि से परे भी कोई न कोई ऐसा भाव होना चाहिए जो इसके साथ भी हो और इसके परे भी हो| वह जानवरों की तरह अपने स्वार्थ की पूर्ति हो जाने के बाद अलग-अलग दिशा में ना भागे| मानव जाति के विकास के साथ-साथ प्रेम का विकास भी होता चला गया| दरअसल प्रेम का विकास नहीं हुआ प्रेम तो मौजूद था लेकिन मानव की समझ और चेतना जैसे - जैसे विकसित होती गई उसे प्रेम का शाश्वत स्वरूप दिखाई देने लगा| जैसे-जैसे मानव विकसित होने लगा उसके अंदर प्रेम की संवेदनाएं बढ़ने लगी| प्रेम के विकास के साथ-साथ एक धारणा यह भी बनी की प्रेम को विवाह और वासना से अलग रखा जाए| जब तक प्रेम का इनके साथ संबंध रहेगा वह स्थाई नहीं हो सकेगा| इतिहास में प्रेम कई बार वासना के बहुत करीब और कई बार वासना से पूर्व मुक्त होकर अपने सही स्वरूप में प्रतिस्थापित हुआ| प्रेम की परिभाषाएं समय के साथ बदलती रही प्रेम का अर्थ किसी व्यक्ति पर अधिकार नहीं बल्कि उस व्यक्ति को पूरी तरह स्वीकार करना होता है| यदि हम किसी से प्रेम करते हैं साथ ही उसे अपना गुलाम बनाने की कोशिश करते हैं या उसे अपने ऊपर निर्भर करते हैं तो यह साथ - साथ नहीं चल सकता| प्रेम अलग-अलग रूपों में अभिव्यक्त होता है| जहां सौंदर्य दिखाई देता है वहां प्रेम की भावना पैदा होती है, जहां स्नेह होता है वहां भी प्रेम होता है| जहां सम्मान होता है वहां भी प्रेम उदित होता है| जहां प्रतिष्ठा होती है वहां भी प्रेम उदित होता है और जहां स्वामित्व की भावना होती है वहां भी प्रेम उदित होता है| जहां सहानुभूति होती है वहां भी प्रेम का भाव प्रबल होता है| प्रेम कहीं भी उत्पन्न हो सकता है और किसी से भी हो सकता है| किसी व्यक्ति के साथ लंबे समय तक रहने से भी प्रेम हो जाता है और किसी व्यक्ति के प्रति शारीरिक आवेग बढ़ने पर भी प्रेम हो जाता है| यह इसलिए क्योंकि प्रेम सृष्टि के कण-कण में मौजूद है| जहां एक कण दूसरे कण से जुड़ा वहां प्रेम कारण बना| भारतीय दर्शन ने अस्थाई प्रेम की जगह स्थाई प्रेम की तरफ बढ़ने पर जोर दिया है| विवाह में भी कई स्तर के प्रेम होते| कोई व्यक्ति व्यवस्थाएं करने से संतुष्ट होकर प्रेम का अनुभव करता है कोई व्यक्ति दो शब्द सुनने से उसका अनुभव करता है| कोई व्यक्ति संतोष और शांति के कारण प्रेम का अनुभव करता है| कोई व्यक्ति बातें करने और सुनने से प्रेम का अनुभव करता है| एक ही समय में व्यक्ति प्रेम का पात्र हो सकता है और उसी समय वह सेक्स का पात्र भी हो सकता है| जब दोनों एक साथ घटित होते हैं तो व्यक्ति के अंदर संतोष और लगाव पैदा होता है और इससे जो भाव पैदा होता है वह एक पहेली की तरह होता है| रोमांस भी प्रेम की एक अवस्था है| इसमें मनमौजीपन है अनुभव है और संवेदनाएं हैं| यह प्रेम आगे चलकर उत्कृष्ट रूप भी ले सकता है लेकिन यदि दो व्यक्ति सिर्फ एक दूसरे को सुख हासिल करने का जरिया माने या उसे वस्तु की तरह उपयोग करें तो 1 दिन जाकर यह बुरी तरह नफरत में बदल सकता है| जब मन मस्तिष्क ह्रदय बुद्धि और विवेक मिलकर सहयोग सद्भावना शांति सौहार्द संभव प्रकट करते हैं तो वह प्रेम में कन्वर्ट हो जाता है| प्रेम शारीरिक सुख में दिखाई दे सकता है लेकिन वह उसके पार भी है| प्रेम दो व्यक्तियों के संबंध में दिखाई दे सकता है लेकिन वह उसके पार भी है| प्रेम किसी भी संबंध के अंदर होते हुए भी अपने आप में अनूठा और इतना विस्तृत है कि सारे रिश्ते उसके अंदर समा जाए और वह सब के ऊपर तब भी खड़ा रहे| शुद्ध प्रेम बदले में कुछ नहीं चाहता| शुद्ध प्रेम में प्रतिबंध और संकोच नहीं होता|शुद्ध प्रेम कभी थकता नहीं|शुद्ध प्रेम में कोई काम असंभव नहीं होता|शुद्ध प्रेम शाश्वत होता है|शुद्ध प्रेम को कोई सौदा कोई पुरस्कार नहीं चाहिए| शुद्ध प्रेम को सुख नहीं चाहिए शुद्ध प्रेम को शरीर भी नहीं चाहिए|यह बहुत सुंदर शब्द है| जिसे व्याख्या करने से ज्यादा अनुभव करना महत्वपूर्ण होता है| यह प्रेम मां के अंदर बच्चे के प्रति होता है| बच्चे के अंदर मां के प्रति होता है| दो मित्रों के बीच होता है, दो प्रेमियों के बीच होता है| यह भक्त और भगवान के बीच भी होता है यह इंसान में संपूर्ण जीव जगत के प्रति होता है| प्रेम मनुष्य की मूलभूत जरूरत है| यह उसे अपनी चेतना के विकास के साथ समझ में आने लगा| जैसे-जैसे समझ बढ़ेगी वैसे-वैसे प्रेम ही सब कुछ जान पड़ेगा| प्रेम बाहर से नहीं अंदर से ही प्रकट होता है| दुसरे व्यक्ति के अंदर भी अपने आप को पाना प्रेम है| वास्तव में संसार प्रेम के अतिरिक्त कुछ और नहीं है| प्रेम दुनिया की सबसे सार्थक चीज है|प्रेम जीवन का वरदान है| प्रेम हमें और अधिक उदार और अधिक श्रेष्ठ और अधिक विशिष्ट और अधिक परोपकारी बना देता है| प्रेम में कल्याण है , प्रेम में सहयोग है ,सद्भाव है| प्रेम शरीर की कोई रासायनिक क्रिया का नाम नहीं है| प्रेम रासायनिक क्रिया के जरिए अधिक मात्रा में दिखाई दे सकता है| लेकिन इसके बावजूद भी वह सर्वव्यापी है| जब प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर होता है तो व्यक्ति महानता की तरफ आगे बढ़ता है| स्त्री के प्रति पूर्ण प्रेम के अनेक उदाहरण हमने देखे| उस प्रेम से कालिदास, नेपोलियन, फैराडे जैसे महान लोगों को उदित होते हुए हमने देखे| प्रेम जीवन के मर्म की ज्वाला है, प्रेम सृजनात्मकता का स्वर है| प्रेम से शक्ति मिलती है, प्रेम से भक्ति भी मिलती है और प्रेम से ही मोक्ष मिलता है| प्रेम अनेक रूपों में दिखाई दे सकता है लेकिन वास्तव में यह सभी स्वरूप प्रेम की अभिव्यक्ति की शाखाएं मात्र है|