क्या आप जानते हैं कि तुरिया अवस्था क्या है ?


स्टोरी हाइलाइट्स

जीव की कुल पांच अवस्थाएं होती हैं , इनमें से चार अवस्थाएं तो काल के अंतर्गत आती हैं तथा पांचवी अवस्था , जो तुर्यातीत है वह काल के बाहर है|..तुरिया अवस्था

क्या आप जानते हैं कि तुरिया अवस्था क्या है ? जीव की कुल पांच अवस्थाएं होती हैं , इनमें से चार अवस्थाएं तो काल के अंतर्गत आती हैं तथा पांचवी अवस्था , जो तुर्यातीत है वह काल के बाहर है । यह तुरीयातीत अवस्था अनादि है।   बजरंग लाल शर्मा " जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति तुरिया , इन चारों में काल का फिरिया । " (संत वाणी)   यह संसार सपने के सपने का सपना है । स्वप्न की रचना के लिए नींद तथा शरीर का होना आवश्यक है। नींद भी उसी शरीर को आती है जो माया के तीन गुणों के द्वारा निर्मित हो तथा काल के अंतर्गत हो।   शास्त्र एवं संत कहते हैं कि इस स्वप्न के संसार की रचना अक्षर पुरुष ने की है। परंतु अक्षर पुरुष का शरीर अखंड है , दिव्य है, माया के तीन गुणों के द्वारा निर्मित नहीं है, काल के अंतर्गत नहीं है तथा उन्हें नींद भी नहीं आती है।   अक्षर पुरुष सत्य है , प्रकाश स्वरूप है और स्वप्न असत है, अंधकार स्वरूप है । ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते हैं अतः उन्होंने अपने चित्त के अंदर स्वप्न की रचना किस प्रकार की?   स्वप्न असत्य है , भ्रम है और भ्रम की रचना अंधेरे में होती है । अक्षर पुरुष ने अपने चित्त में अंधेरा किया तथा इसी अंधेरे में स्वप्न के संसार की रचना की। नींद भी एक प्रकार का अंधेरा ही होता है।   अक्षर पुरुष ने अपने चित्त में अंधेरा किस प्रकार किया? इसका खुलासा करना अति आवश्यक है।   सर्वप्रथम अक्षर पुरुष ने अपने चित्त के अंदर से जो प्रकाश था उसको हटाया और उसके स्थान पर माया तथा काल का मिलन करवाया, जो अनादि रूप में अक्षर पुरुष में पहले से स्थित थे। जिससे उनके चित्त में अंधकार उत्पन्न हो गया। इसका उल्लेख शास्त्रों में तथा सन्तो की वाणी में है।   इस प्रकार अक्षर पुरुष अपने द्वारा रचित स्वप्न की सृष्टि को जागृत अवस्था में देखने लगे। गीता में स्वप्न के पहले पुरुष को ईश्वर कहा गया है, जिसे संत जन काल पुरुष कहते हैं। इस काल पुरुष को तुरिया कहा गया है, जिनके पास अपना शरीर है जो माया के तीन गुणों के द्वारा निर्मित है तथा काल के अंतर्गत है।   यही ईश्वर अथवा काल पुरुष अपनी नींद में अनेकों - अनेकों नारायण की रचना करते हैं।   प्रत्येक नारायण अपनी नींद में पुनः ब्रह्मांड सहित मदद सृष्टि, मानसी सृष्टि, एवं मैथुनी सृष्टि के जीवो की रचना करते हैं।   ब्रह्मांड के जीवो के लिए उनकी तुरिया अवस्था उनकी रचना करने वाले नारायण के अंदर है।   नारायण भी स्वप्न का जीव है और उनकी तुरिया अवस्था उनकी रचना करने वाले काल पुरुष के अंदर है।   काल पुरुष भी स्वप्न का जीव होने के कारण अक्षर पुरुष की नींद में उनके चित्त में है लेकिन यह तुरिया अवस्था नहीं है क्योंकि अक्षर पुरुष काल के अंतर्गत नहीं हैं क्योंकि उनका शरीर तो अखंड है। अक्षर पुरुष के अखंड शरीर में ही जीव की अनादि तुरियातीत अवस्था है।   यह तुरीयातीत अवस्था अक्षर पुरुष के अंदर रचना के पहले संकल्प विकल्प रूपी बीज के रूप में निराकार अवस्था में थी।   जाग्रत अवस्था - स्थूल शरीर(दिखने वाला) स्वप्न अवस्था - सूक्ष्म शरीर(निराकार) सुषुप्ति अवस्था - कारण शरीर(निराकार) तुरिया अवस्था - महाकारण शरीर(दिखनेवाला) तुरियातीत अवस्था - अनादि अवस्था अक्षर पुरुष के अंदर (निराकार)   " बेदनी जीव अमर कह्यो, प्रकृति पुरुष लो नाश । है अनादि सो यह सही, तुरियातीत प्रकाश।। " - (83) (वृतांत मुक्तावली पृष्ट - 528)   प्रकृति पुरुष तक महा प्रलय में सब का मिटना कहा गया है , लेकिन वेदों ने जीव को अमर कहा है । यही सबलिक पाद वाला जीवों का मूल समष्टि रूप अनादि अमर है । वह अक्षर ब्रह्म की सत (सत्स्वरूप ब्रह्म) तुरीयातीत अवस्था से प्रकाशित होता है।   Latest Hindi News के लिए जुड़े रहिये News Puran से.