योग क्या है? योग का धर्म क्या है?


स्टोरी हाइलाइट्स

अतुल विनोद:- योग क्या है? योग का धर्म क्या है? योग कोई धर्म नहीं,  योग तो एक विज्ञान है| ना तो इसकी कोई जाती है ना पाति, योग विलक्षण  विज्ञान है जो ना तो पढ़ने की बात कहता है ना ही मानने की बात|  योग कहता है कि सिर्फ अनुभव करो| अनुभव कब होगा जब चित्त की वृत्तियों का निरोध होगा| चित्त की वृत्तियों का निरोध के लिए इन व्रतियों के बहिर्गमन को रोकना पड़ेगा| योग न किसी मान्यता से बना है ना ही सिद्धांत से|  जैसे मैथ्स, फिजिक्स, केमेस्ट्री, बायोलॉजी में अनेक फार्मूले और थ्योरम्स होती हैं, वैसे ही योग में सत्य तक पहुंचने के लिए अनेक सूत्र, विधियां और अभ्यास हैं|  किसी धर्म विशेष की राह पर चलने वाला व्यक्ति शायद सत्य तक न पहुंचे, लेकिन योग के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति एक न एक दिन सत्य को प्राप्त कर लेता है| योग अपनी शक्तियों को समेट कर परमात्मा पर केंद्रित करने की बात करता है| परमात्मा ज्ञान की बातों से नहीं जाना जा सकता| आत्मा परमात्मा की बातें सिद्धांत रूप से किताबों में वर्णित हैं| सैद्धांतिक बातों से लोगों का पेट नहीं भरता| अपने अपने धर्म के प्रति समर्पित लोग भी अनुभव हीनता की वजह से धार्मिक मतान्धता में जिंदगी बिता देते हैं| तथाकथित धर्म लोगों को लड़ाने का काम करते हैं लेकिन योग जोड़ने का काम करता है| धर्म कहते हैं कि विश्वास करो, लेकिन योग कहता है अभ्यास करो| योगा का अर्थ है  यूज, उन सभी विधियों को जोड़ो जो मन को आत्मा से और आत्मा को परमात्मा से मिला दे|  उन सभी विधियों को साधो जो जीवन को सार्थक बना दे| पहले विधियों से साधना करो| आत्मशक्ति जागृत करो |  जागृत आत्मशक्ति साधना को साधन बना देगी| सब कुछ अपने आप होगा , आप केवल दृष्टा रह जाओगे| आप देखते रहोगे और आपका जीवन उच्चतम सत्ता के हाथ में योग को फलित करने लगेगा| जैसे-जैसे योग में आगे बढ़ोगे,  साधन भी छुटने लगेंगे| अभ्यास, क्रियाएं, मंत्र, जप, ध्यान उपासना आराधना साधना सीढ़ियां है|  जैसे-जैसे लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ेंगे सीढ़ियां छोड़ते चले जाएंगे| सभी धर्मों की प्रचलित पद्धतियां सीढ़ियां है योग तक पहुंचने की|  जब प्राण और मन का आत्मा से, आत्मा का परमात्मा से योग हो जाता है, तो समझो व्यक्ति शिखर पर पहुंच गया|  शिखर पर पहुंचने के बाद वापस लौटने की जरूरत नहीं होती | और जब वापस लौटना ही नहीं है तो मार्ग की आवश्यकता ही नहीं रह जाती|   योग जात पात नहीं देखता, धर्म संप्रदाय भी नहीं देखता आप किसी धर्म को मानते हो, किसी भी देश में बैठे हो आप योगी बन सकते हैं|