मन की मुराद पूरी करने के लिए क्या करें क्या ना करें?
:अतुल विनोद
हम जितना खुद को पीड़ित मानते हैं उतने ही पीड़ित होते चले जाते हैं| हम दूसरों से जितनी आशा करते हैं उतनी ही निराशा मिलती है|
खुद को शोषित,पीड़ित, उपेक्षित, कमतर, निराश, हताश मानते रहना ध्यान बन जाता है और वो घटित हो जाता है|
दूसरों से किसी भी तरह की उम्मीद का मतलब है खुदको उसे हासिल करने में नाकाबिल मानना, खुदको जैसा मानेंगे वैसा ही बन जायेंगे|
आपको जो नहीं चाहिए उस पर कभी ध्यान ना दें| आप जिस पर ध्यान देते हैं अनंत ब्रह्म उसे हां करता है|
आप चिंता पर ध्यान देते हैं अनंत मन आपको और चिंता देता है| आप परेशानी पर ध्यान करते हैं अनंत बुद्धि आपको परेशानी देती है| आप पीड़ा पर ध्यान करते हैं अनंत सत्ता आपको पीड़ा देती है| आप तंगी पर ध्यान करते हैं अनंत चेतना आपको तंगी देती है|
उसके पास किसी चीज की कमी नहीं, वह आपको वही देती है जो आपको चाहिए| आपका ध्यान जहां जाता है उसका ध्यान वही जाता है| आपके ध्यान को ब्रह्मांड आपकी मांग समझता है|
ब्रह्मांड के पास किसी चीज की कोई कमी नहीं है|
जो इतने सारे ग्रह नक्षत्र तारे सौरमंडल गैलेक्सी और यूनिवर्स का मालिक है| आप जितने पैसो की कल्पना नहीं कर सकते उससे अनंत गुना ज्यादा पृथ्वी जैसे ग्रहों का वो मालिक है|
उसके खजाने में कोई कमी नहीं, फिर उससे मांगने में हिचक क्यों? संकोच क्यों?
वह सब कुछ दे सकता है?
जिसने उससे विमान बनाने की विधि मांगी उसने दे दी| जिसने उससे परमाणु बम बनाने की विधि मांगी उसने दे दी| जिसने उससे ट्रेन बनाने की विधि मांगी उसने दे दी|
जिसने जो मांगा उसने वह दिया|
वह हमेशा हां करता है| इसलिए जो नहीं चाहिए उसके लिए एक क्षण भी बर्बाद ना करें और जो चाहिए उसे अपना ध्यान बना लें|