तेल में लगी आग कब बुझाएंगे मोदी जी ? -राजेश सिरोठिया


स्टोरी हाइलाइट्स

तेल में लगी आग कब बुझाएंगे मोदी जी ? -राजेश सिरोठिया बंगाल के चुनाव के दौरान गैस सिलेंडर और ब डीजल पेट्रोल की कीमतों को बेतहाशा बढ़ाने से यदि मोदी.....

तेल में लगी आग कब बुझाएंगे मोदी जी ? राजेश सिरोठिया बंगाल के चुनाव के दौरान गैस सिलेंडर और ब डीजल पेट्रोल की कीमतों को बेतहाशा बढ़ाने से यदि मोदी सरकार रोक लेती तो चुनावी नतीजों में भाजपा 77 पर नहीं रूकती। वह विस सीटों का शतक पूरा कर सकती थी। मोदी जी चुनावों में ममता को भले ही लताड़ते रहे लेकिन वे यह अंदाजा नहीं लगा सके कि ममता बनर्जी ने किस खूबसूरती से घरेलू गैस और डीजल पेट्रोल की की कीमतों को लेकर जनता के गुस्से को अपने पक्ष में भुनाने जा रही हैं। लेकिन बंगाल के चुनावी नतीजों के बाद लगता है कि मोदी अब भी नहीं चेते हैं।" सरकार बड़ी मासूम सी दलील दे रही है कि अंर्तराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं तो हम क्या कर सकते हैं? यह बात तो सबको पता है कि कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही हैं और कौन आपसे कह रहा है कि कच्चे तेल की कीमतें आप घटा सकते हैं। आपको तो वह एक्साइज ड्यूटी घटाना है जो पिछले लॉक डाऊन के दौरान 20-30 डालर प्रति बैरल कच्चा तेल होने पर आपने बढ़ाई थी। तब 60 डालर प्रति बैरल से रेट नीचे गिरा था। है और जब तक अमेरिकी दवाब में बंद इरान से खरीदी के विकल्प को नहीं खोला जाता तब तक की ज्यादा है तो कीमतें घटने की उमीद कम बढ़ने की है। क्या सरकार कच्चे तेल में लगी आग पर मुनाफाखोरी की रोटियां सेंकना जारी रखेगी? अब जबकि तेल की कीमतें ऊंची हो रही हैं तो नैतिकता का तकाजा तो यही कहता हैं कि 13 रूपए प्रति लिटर की जो बढ़ोत्तरी की गई थी, उसे वापस लिया जाए। इससे सरकार की कमाई पूर्ववत होती रहेगी। क्या सरकार को यह अंदाजा है कि 40 रूपए प्रति लिटर की कीमत वाले तेल की बिक्री पर केंद्र और राज्य सरकारें लोगों की जेब से हर लिटर 65 से 75 रूपए तक टैक्स के रूप में झटक रही है। इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना जैसे आपदाकाल में सरकार के खर्च बढे है लेकिन अमीर, गरीब के पाकेट से मूल कीमत के दो गुना टेक्स वसूलने वाली सरकार को यह अंदाजा नहीं है कि उसकी कमाई के क्या क्या हालात हैं ? उसके रोजगार के क्या हालात हैं? गांवों से लेकर शहरों में ऐसे लोगों की तादाद करोड़ों में हैं जो अपनी मोटरसाइकिल में में हैं एक लिटर पेट्रोल भी नहीं डलवा पाते? वो पचास रूपए का पेट्रोल खरीदते लोगों को गांवों की छोटी- छोटी दुकानों पर देखा जा सकता है? क्या केंद्र को इस बात का अंदाजा भी नहीं है कि डीजल की कीमत बढ़ने से परिवहन से लेकर हर रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों के दाम बढ़ रहे हैं? सरकार यदि कोरोना के चलते बढ़ी हुई ड्यूटी वापस लेने तैयार नहीं हैं तो कम होती क्रय शक्ति के बीच आम से लेकर खास आदमी की हालत की सुध लेने की भी जरूरत नहीं है? मोदी जी अगले साल होने वाले यूपी, उत्तराखंड सहित कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल करने जा रहे हैं। इसके जरिए वे राज्यों के चुनावी समीकरणों को साधने की कोशिश करेंगे, लेकिन याद रखिए कि यदि पेंट्रोल, डीजल और घरेलु गैस की कीमतों और उससे बढ़ती मंहगाई को थामने की कोशिश नहीं की तो आने वाले चुनावों जीत की सारी कवायद धरी की धरी रह जाएगी। लेखक दोपहर मेट्रो के चीफ एडिटर है