किस पाण्डव की पत्नी थी द्रौपदी और उसके पाँच पुत्र किसी एक के थे या उसके अलावा ?


स्टोरी हाइलाइट्स

भारतीय इतिहास को विदेशी वा देशी लोगों ने बहुत कुछ बिगाड़ा है। वर्तमान की संतति अपने इतिहास से प्रेरणा लिया करती है, अपने इतिहास पुरुषों को अपना आदर्श माना..

किस पाण्डव की पत्नी थी द्रौपदी और उसके पाँच पुत्र किसी एक के थे या उसके अलावा ? कहा जाता है कि महाभारत के कई तथ्य तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत किये गए हैं।कहा जा रहा हैै कि द्रौपदी को पाँचों की पत्नी बनाने वाला सारा प्रकरण महाभारत में पीछे से मिलाया गया है। द्रौपदी पाँचों पाण्डवों की पत्नी नहीं थी। यद्यपि स्वयंवर की शर्त अर्जुन ने पूर्ण की थी, परन्तु द्रौपदी का विवाह युधिष्ठिर के साथ हुआ था। वह युधिष्ठिर और केवल युधिष्ठिर की पत्नी थी।’’ महर्षि दयानन्द ने लिखा-‘‘यह बात राजा भोज के बनाये संजीवनी नामक इतिहास में लिखी है………. उसमें स्पष्ट लिखा है कि व्यासजी ने चार सहस्र चार सौ, और उनके शिष्यों ने पाँच सहस्र छः सौ श्लोकयुक्त अर्थात् मात्र दस सहस्र श्लोकों के प्रमाण का ‘भारत’ बनाया था। वह महाराजा विक्रमादित्य के समय में बीस सहस्र हो गए। महाराजा भोज कहते हैं कि मेरे पिताजी के समय में पच्चीस और अब मेरी आधी उमर में तीस सहस्र श्लोकयुक्त ‘महाभारत’ की पुस्तक मिलती है। जो ऐसे ही बढ़ता चला गया तो ‘महाभारत’ की पुस्तक एक ऊँट का बोझा हो जायेगा।’’ सं. प्र. 11 वर्तमान में महाभारत लगभग एक लाख श्लोक युक्त मिलता है अर्थात् लगभग नव्वे हजार श्लोकों की मिलावट। इतनी मिलावट होने पर वास्तविक तथ्यों को निकालना कठिन हो जाता है। विद्वानों का मत है कि महाभारत में द्रौपदी के पांच पति वाली बात गलत है।   तमब्रवीत् ततो राजा धर्मात्मा च युधिष्ठिर। ममापि दारसबन्धः कार्यस्तावद् विशापते।। – 1.32.49 तब धर्मात्मा राजा युधिष्ठिर ने उनसे कहा- राजन्! विवाह तो मेरा भी करना होगा। भवान् वा विधिवत् पाणिं गृह्णातु दुहितुर्मम। यस्य वा मन्यसे वार तस्य कृष्णामुपादिश।। – 1.32.50 अर्थात् द्रुपद बोले- हे वीर! तब आप ही विधि पूर्वक मेरी पुत्री का पाणिग्रहण करें अथवा आप अपने भाइयों में से जिसके साथ चाहे, उसी के साथ कृष्णा को विवाह की आज्ञा दे दें। ततः समाधाय स वेदपारगो जुहाव मन्त्रैर्ज्वलितं हुताशनम्। युधिष्ठिरं चाप्युषनीय मन्त्रविद्नियोजयामास सहैव कृष्णया।। – 1.32.51 वैशपायनजी कहते हैं- द्रुपद के ऐसा कहने पर वेद के पारंगत विद्वान् मन्त्रज्ञ पुरोहित धौय ने वेदी पर प्रज्वलित अग्नि की स्थापना करके उसमें मन्त्रों द्वारा आहुति दी और युधिष्ठिर को बुलाकर कृष्णा के साथ उनका गठबन्धन कर दिया। प्रदक्षिणं तौ प्रगृहीतपाणिकौ समातयामास स वेदपारगः। ततोऽयनुज्ञाय तमाजिशोभिनं पुरोहितो राजगृहाद् विनिर्ययौ।। – 1.32.52 वेदों के पारंगत विद्वान् पुरोहित ने उन दोनों का पाणिग्रहण कराकर उनसे अग्नि की प्रदक्षिणा करवाई, फिर (अन्य शास्त्रोक्त विधियों का अनुष्ठान कराके) उनका विवाह कार्य सपन्न कर दिया। तत्पश्चात् संग्राम में शोभा पाने वाले युधिष्ठिर को अवकाश देकर पुरोहित जी भी उस राजभवन से बाहर चले गये। महाभारत के इस पूरे प्रकरण से ज्ञात हो रहा है कि द्रौपदी का पाणिग्रहण अर्थात् विवाह संस्कार केवल युधिष्ठिर के साथ हुआ था। अर्थात् द्रौपदी का पति युधिष्ठिर ही थे न कि पाँचों पाँडव। स्वामी जगदीश्वरानन्द जी ने आदि पर्व के इक्कतीसवें अध्याय के श्लोक 34-35 के अर्थ करने पर टिप्पणी की है- ‘‘जो लोग द्रौपदी के पाँच पति मानते हैं वे इस स्थल को ध्यानपूर्वक पढ़ें। यहाँ माता चिन्तित हो रही है कि मेरे पुत्र अभी तक क्यों नहीं लौटे? उन्हें पहचान तो नहीं लिया गया है?’’ इसके अतिरिक्त एकचक्रा नगरी में ब्राह्मण से द्रौपदी के स्वयंवर की बात सुनकर जब पाँचों पाण्डव उद्विग्न से हो गये थे, तब माता ने स्वयं ही वहाँ जाने का प्रस्ताव रखा था। मार्ग में व्यास जी ने भी पांचाल नगर में जाने की सममति दी थी। स्वयं माता को यह पता है कि मेरे पुत्र स्वयंवर में गये हैं। स्वयंवर की शर्त पूर्ण होते ही युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव माता को सूचना देने के लिए तुरन्त घर आ गये हैं। (यह बात महा. 1.30.36 में स्पष्ट कही गई है) भीम और अर्जुन द्रौपदी को लेकर अनेक ब्राह्मणों के साथ घर पर आये हैं। इन सब प्रसङ्गों के ध्यानपूर्वक अवलोकन से यह स्पष्ट है कि न तो पाण्डवों ने यह कहा था कि हम भिक्षा लाये हैं और न कुन्ती ने यहा कहा कि पाँचों बाँट लो।