नौजवान ज्यादा ख़ुदकुशी क्यों कर रहे हैं ? आध्यात्मिक जीवन है, इसका क्या प्रभावी समाधान है..


स्टोरी हाइलाइट्स

Now a days, there is a lot of news of suicide in newspapers. The saddest aspect of it is that there are more youngsters among those who commit suicide.

नौजवान ज्यादा ख़ुदकुशी क्यों कर रहे हैं ? आध्यात्मिक जीवन है, इसका प्रभावी समाधान है.. आजकल अखबारों में ख़ुदकुशी की ख़बरें बहुत आ रही हैं. इसका सबसे दुखद पहलू यह है कि ख़ुदकुशी करने वालों में नौजवान ज्यादा होते हैं. दुनिया में हर साल करीब आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं. इनमें एक-तिहाई संख्या भारतीय महिलाओं की और एक-चौथाई संख्या पुरुषों की होती है. यह हमारे देश में बहुत गंभीर समस्या का रूप ले रही है. इस विषय पर विचार करने वाले इसके अनेक कारण बताते हैं. ज्यादातर लोग इसके प्रमुख कारणों में आर्थिक परेशानी, बेरोजगारी, व्यापार-व्यवसाय में नुकसान, प्यार में नाकामी, जीवनसाथी की वेवफाई, शादी सफल न होना आदि बताते हैं. काफी हद तक यह सही भी है. लेकिन इसकी गहराई में जाकर देखा जाए, तो ये सभी सही कारण हैं. मुख्य कारण अवसाद यानी डिप्रेशन है. जो लोग अपने इमोशन्स या भावनाओं को कंट्रोल नहीं कर पाते वे डिप्रेशन में चले जाते हैं. किसी भी तरह की असफलता या किसी विपरीत परिस्थिति के कारण बहुतलोग डिप्रेशन में चले जाते हैं. अनेक मामलों में इसकी परिणति खुदकुशी में ही होती है. इससे पीड़ित व्यक्ति को जीवन ब्यर्थ (मीनिंगलेस) और निरुद्देश्य (यूजलेस) लगने लगता है. उसे अपनी समस्याओं का समाधान सिर्फ मौत में नज़र आता है. भारत जैसे आध्यात्मिक रूप से समृद्ध और उन्नत देश में इतने लोगों द्वारा ख़ुदकुशी बहुत आश्चर्य की बात है. हमारे देश ने दुनिया को अध्यात्म, ध्यान और योग जैसी बहुमूल्य सौगातें दी हैं. इसी देश में भगवतगीता और उपनिषद जैसे अनमोल ग्रंथों का जन्म हुआ, जिन्हें पढ़कर उन्हें जीवन में उतारने वाला व्यक्ति वाला कभी डिप्रेशन का शिकार हो ही नहीं सकता. इस तरह देखा जाए तो आध्यात्मिक जीवनशैली का छूटना डिप्रेशन और उसके कारण की जाने वाली खुदकुशियों का बहुत बड़ा कारण है. हालाकि ऐसे मामले भी देखने में आये है कि कुछ लोग जो दूसरों को जीवन की कला और आध्यात्मिक जीवन जीने की शिक्षा देते हैं, वे ही डिप्रेशन में चले जाते हैं या ख़ुदकुशी कर लेते हैं. इंदौर के कथित आध्यात्मिक गुरु भय्यूजी महाराज इसका ताजा उदाहरण हैं. इससे यह सिद्ध होता है कि वह जो बाते दूसरों को सिखा रहे थे, उनको उन्होंने जीवन में खुद आत्मसात नहीं किया था. पढ़ना-सुनना और दूसरों को समझाना बहुत सरल होता है, लेकिन उसे जीवन मे उतारना बहुत कठिन रहता है. इसीलिए हमारे देश में आचरण को ही परम धर्म माना गया है. आध्यात्मिक जीवनशैली की कमी के अलावा वर्तमान में तेजी से विकसित हुयी एकल परिवार व्यवस्था भी आत्महत्याओं के लिए बहुत जिम्मेदार है. पहले संयुक्त परिवार होते थे. किसी भी संकट के समय परिवार के हर सदस्य को पूरे परिवार का संबल मिलता था. उसे इतना इमोशनल सपोर्ट मिलता था कि ख़ुदकुशी जैसी बात उसके मन में आती ही नहीं थी. आर्थिक नुकसान हो या किसी कारण से दिल टूटने की स्थिति हो, उसे अपने परिवार में बुजुर्गों तथा अन्य लोगों का पूरा सहयोग मिलता था. सामाजिक सम्बन्ध भी आज की तरह स्वार्थ-आधारित नहीं होते थे.लिहाजा मित्र और रिश्तेदार भी पीड़ित व्यक्ति को बहुत भावनात्मक सहयोग करते थे. आज भी जिन परिवारों में एकता और परस्पर सहयोग है, उनके सदस्य हर मुसीबत का बहुत साहस के साथ सामना करके उसे हरा देते हैं. ख़ुदकुशी की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने के लिए डिप्रेस्ड या अवसादग्रस्त व्यक्ति के लक्षणों को पहचानना बहुत मददगार हो सकता है. यदि कोई व्यक्ति अक्सर मरने या आत्महत्या करने या निराशा भरी बात करता हो, तो उसके करीबी लोगों को सजग होकर उसे अवसाद से बाहर लाने की कोशिश करनी चाहिए. परिवार का कोई सदस्य या करीबी व्यक्ति बहुत ज्यादा शराब पीने लगे या दूसरी नशीली चीजों का सेवन करने लगे तो यह भी उसके गहरे अवसाद का लक्षण हो सकता है. अगर कोई व्यक्ति बहुत तुनकमिजाज हो जाए और बात-बात पर आपा खोने लगे तो यह भी अवसाद का लक्षण है. यदि कोई व्यक्ति यह महसूस करने लगा हो कि उसका दुनिया में कोई नहीं है या  उसका मूड बहुत जल्दी-जल्दी बदलता हो, तो वह अवसाद से पीड़ित हो सकता है. जीवन में कभी-कभी ऐसे हालात बन जाते हैं, जब व्यक्ति को मौत ही एकमात्र रास्ता दिखाई देती है. लेकिन यह उसकी सिर्फ धारणा होती है. वास्तव में देखा-समझा जाए तो ऐसी कोई समस्या नहीं होती, जिसका समाधान नहीं हो. आध्यात्मिक दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति किसी भी हालत में इतना नहीं टूटता कि ख़ुदकुशी कर ले. विशेषज्ञों का मानना है कि आज के समय में अवसाद या डिप्रेशन ही सबसे घातक रोग है. हाल ही में कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन के कारण बहुत अधिक लोग अवसाद के शिकार हो गये. जिन लोगों के परिवार में परस्पर स्नेह और सहयोग रहा, वे इससे बच गये. एकल परिवार वाले लोग इसके ज्यादा शिकार हुए. ख़ुदकुशी की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुआ हमें अपने परिवार के हर सदस्य और करीबी लोगों के व्यवहार और आचरण पर गहरी नज़र रखनी चाहिए. किसीके आचरण में यदि उपरोक्त में से कोई भी लक्षण दिखाई दे तो बिना देर किये उसे इमोशनल सपोर्ट देकर अवसाद से निकालने की कोशिश करनी चाहिए. यदि ज़रूरत हो तो किसी मनोचिकित्सक की मदद भी ली जा सकती है.