नवीन भवन निर्माण के समय नींव में नाग-नागिन का जोड़ा क्यों? नाग-सर्प भूमि में गड़े धन के रक्षक होते हैं।
इस स्थिति में हम इनका अपने पूर्वजों के रूप में भी सम्मान करते हैं। भवन निर्माण के समय चाँदी या ताँबे से बनाए गए नाग नागिन की पूजा करके नींव में उनकी स्थापना करते हैं। किन्हीं प्राचीन ग्रन्थों में यह देखने में नहीं आया कि ऐसा क्यों करते हैं?
सम्भवतः हमारे पूर्व-पुरखों की यह मान्यता रही हो कि नाग हमारी सम्पत्ति और सन्तति की रक्षा करें। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि नाग को राहु का प्रतीक माना गया है। राहु का स्थान पृथ्वी के नीचे तल में होता है। ज्योतिष में राहु को मूल रूप से अनिष्ट कारक ग्रह बताया गया है।
इस विषय में यह भी कहा गया है कि राहु से प्रभावित जातक अनियंत्रित स्वभाव वाले होते हैं, परंतु यदि वे अपने माता-पिता आदि गुरुजनों का अनुशासन मान लेते हैं तो जीवन में बहुत विकास करते हैं। शायद इसीलिए यह प्रथा चल पड़ी हो कि राहु को नाग रूप में नींव में दबा कर उसे नियंत्रित किया जाय| जिससे वह घर अपना बहुमुखी विकास कर सके।
भारतीय मान्यताओं के अनुसार शेषनाग के फन पर पृथ्वी टिकी हुई है। नींव में नाग-नागिन का जोड़ा रखने पर हम उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे हमारे भवन का भार भी पृथ्वी की तरह सहन करें और हम पर प्रसन्न रहें। चिरायु चिन्तन- ताँबा सूर्य की एवं चाँदी चन्द्रमा की धातु है। राहु की सूर्य और चन्द्रमा से गहरी शत्रुता है, इसलिए दोनों धातु राहु की प्रसन्नता हेतु उचित नहीं हैं।
स्वर्ण के रूप में पृथ्वी में गढ़े धन की रक्षा राहु (नाग) करते हैं। स्वर्ण गुरु की धातु है, इससे ऐसा प्रतीत होता है कि राहु गुरु की रक्षा करने वाला ग्रह है तथा स्वर्ण, जवाहरात आदि से रा का गहरा लगाव है। इसलिए स्वर्ण (सोना) के नाग नागिन नींव में रखने से राहु, नाग देवता, शेषनाग, दिव्य नागों की विशेष कृपा प्राप्त होती है। ऐसे नवीन भवन विशेष समृद्धिकारक होते हैं।
विशेष- राहु के रतन गोमेद और केतु का लहसुनिया भी नींव में रखना हितकारी होता है।
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