हम ईश्वर की पूजा क्यों करते हैं? क्या दूसरी दुनिया के लोग भी भगवान को मानते हैं? -अतुल विनोद
हम ईश्वर की पूजा क्यों करते हैं? क्या दूसरी दुनिया के लोग भी भगवान को मानते हैं?
-अतुल विनोद
दुनिया के कई देशों की स्वीकारोक्ति के बाद यह बात तो अब तय होगी कि धरती के अलावा भी ऐसे कई ग्रह है जहां पर जीवन मौजूद है| हम सब किसी न किसी रूप में ईश्वर की अवधारणा को मानते हैं| दुनिया में मानव कहीं भी रहता हो AASTIK HO YA NAASTIK कहीं ना कहीं उसके मन में खुद से ज्यादा बड़ी शक्ति के प्रति विश्वास होता है| जो ईश्वर को नहीं मानते वो भी अपने अंदर किसी खास शक्ति की मौजूदगी महसूस करते हैं| सदियों से हम आसमान की तरफ देखते हैं और सोचते हैं कि आसमान में ऐसा कोई स्थान होगा जहां पर भगवान रहता होगा| मानव सभ्यता का मानना रहा है कि हम सब परमात्मा के बनाए हुए हैं| उस परमात्मा को जब भी हम याद करते हैं तो हमारी निगाहें ऊपर की तरफ जाती है, क्योंकि आसमान का विलक्षण नजारा हम इस बात का सबूत देता है, कि कोई ना कोई और है, जो इतने बड़े ब्रह्मांड का संचालक है| निश्चित ही सिर्फ मनुष्य अकेला नहीं, उससे भी शक्तिशाली सत्ता इस दुनिया में मौजूद हो सकती है| न सिर्फ मनुष्य बल्कि दुनिया में जिस भी ग्रह पर जीवन है उस ग्रह के निवासी किसी न किसी रूप में अपने से उच्च सत्ता का अस्तित्व स्वीकार करते होंगे|यदि किसी ग्रह पर एलियन रहते हैं तो वो भी किसी ना किसी भगवान को मानते होंगे| यह इंसानी प्रवृत्ति है और इंसान के अंदर थोड़ी समझ तो है ही| वो अपने आपको सर्वशक्तिमान मानने के अहंकार के बावजूद अपने से बड़े किसी अस्तित्व को नकार नहीं सकता| जब मनुष्य पैदा होता है तब उसमें उसकी कोई भूमिका नहीं होती जब वो अपना जीवन जीता है तो उसके जीवन जीने के लिए जरूरी अधिकांश चीज है उसे मुफ्त में ही मिल जाया करती है| अपने जीवन के लिए जिस ऑक्सीजन कि उसे सबसे ज्यादा जरूरत होती है वो उसे अनवरत, अंतिम दम तक मुफ्त मिल जाती है| इसी तरह से उसे भोजन, पानी, प्रकाश और छत भी मिल ही जाती है भले ही वो कुछ करे या ना करें| सीधी सी बात है इस दुनिया में कोई ना कोई ऐसी सत्ता है, जिसने मानव जाति या अन्य ग्रहों पर निवास करने वाले एलियंस के लिए जीवन की संभावनाओं को जन्म दिया| विज्ञान के विकास के साथ मानव में यह अहंकार आया कि वो सर्व शक्तिशाली है वो एकमात्र ऐसा जीव है जिसके अंदर समझ है और इस ब्रह्मांड में मनुष्य से बड़ा कोई भी नहीं है? विज्ञान ने अपने आपको सबकुछ मान लिया और वो सृष्टि का नीति निर्धारक बनने की प्रक्रिया में जुट गया| लेकिन जैसे-जैसे विज्ञान ब्रह्मांड में घुसता चला गया, उसकी आंखें फटने लगी, जैसे जैसे वो आगे बढ़ता वैसे उसे समझ में आता है, कि वो जो कुछ भी जानता है, वो कुछ भी नहीं है| इस संसार में ऐसा बहुत कुछ है जिसे जानना विज्ञान के लिए कभी संभव नहीं होगा| ईश्वर का कांसेप्ट यूनिवर्सल होता है| हर धर्म में ईश्वर को मनुष्य से शक्तिशाली बताया गया है| और यह मानव की सहज प्रवृत्ति है कि वो अपने आप से शक्तिशाली व्यक्ति को किसी न किसी रूप में सम्मान दें | हालांकि बच्चे ईश्वर के कांसेप्ट के साथ पैदा नहीं होते लेकिन जैसे-जैसे वो बड़े होते हैं तो उन्हें कई सवालों के जवाब चाहिए होते हैं| जब मां-बाप उन सवालों के जवाब नहीं दे पाते तो वो उसे ईश्वर पर छोड़ देते हैं| बच्चों के अंदर सहज सवाल पैदा होता है| मैं क्यों पैदा हुआ? मुझे किसने बनाया? यह पेड़ किसने बनाया? यह धरती किसने बनाई? जब इन सवालों के जवाब हमें नहीं मालूम होते तो हम कहते हैं सब कुछ ईश्वर ने बनाया| ईश्वर की इच्छा| ईश्वर ही जाने| मनुष्य को हर चीज का कोई ना कोई कारण चाहिए| जब उसे कारण नहीं मिलता तो वो व्याकुल हो जाता है| इसका एकमात्र समाधान उसे ईश्वर में नजर आता है| ईश्वर में विश्वास करने से किसी भी घटना बात या स्थिति का कारण जानने की जरूरत नहीं रह जाती| क्योंकि यह सारे विषय ईश्वर पर छोड़े जा सकते हैं| मनुष्य की चेतना का विकास अन्य जीवो से बहुत ज्यादा है| जिसका भी चेतना का विकास हो जाता है उसके अंदर अपने आपको जानने की इच्छा पैदा हो ही जाती है| अपने आप को जानना है तो फिर उस शक्ति को भी जानना है जिसने हमें बनाया| क्योंकि बनाने वाले को जाने बिना हम खुद को नहीं जान सकते| खुद के होने का अर्थ यह है कि बनाने वाले का भी अस्तित्व है| इसलिए न सिर्फ इस धरती पर उनकी पूरी दुनिया में जहां जहां भी इंसानी सभ्यताएं हैं वो ईश्वर को मानती है| यह बात अलग है ईश्वर को मानने के तौर तरीके और अवधारणा अलग-अलग हो सकती हैं|