असुरों की पहली पसंद भोलेनाथ ही क्यूँ? विष्णु की तपस्या क्यों नहीं करते थे राक्षस?


स्टोरी हाइलाइट्स

असुरों(DEMONS) की पहली पसंद भोलेनाथ(LORD SHANKAR) ही क्यूँ? विष्णु(LORD VISHNU) की तपस्या क्यों नहीं करते थे राक्षस(DAITYA)   इस सम्बन्ध में अनेक मत हैं| पहला तो ये कि ये सब शिव की आराधना करते थे| शिव ब्रह्मा (LORD SHANKAR) या शंकर नहीं शिव निराकार ब्रम्ह हैं.. ब्रम्हा vishnu ब्रह्मा (LORD SHANKAR) उनकी त्रिगुणात्मक शक्ति| ये तीनो देव हैं जबकी शिव ईश्वर|देवताओं के प्रिय और पक्षधर तो भगवान(LORD) विष्णु(LORD VISHNU) थे ही। असुरों(DEMONS) द्वारा भगवान(LORD) विष्णु(LORD VISHNU) की तपस्या ना करने के कुछ कारण थे। इस सृष्टि में तीन गुण प्रधान हैं - सत, रज और तम। ब्रह्मा (LORD BRAMHA) रजोगुण, विष्णु(LORD VISHNU) सतोगुण एवं ब्रह्मा (LORD SHANKAR) में तमोगुण की प्रधानता है। असुर(Demon) मुख्यतः तमोगुण के ही वश में होते थे। जो दैत्य थोड़े अच्छी प्रकृति के थे उनमें रजोगुण प्रधान था। सतोगुण किसी असुर(Demon) में प्रधान होना दुर्लभ बात थी, फिर भी प्रह्लाद जैसे कुछ श्रीहरि के भक्त हुए जिन्होंने दैत्यकुल में जन्म लिया किन्तु इनमे सतोगुण प्रधान था। यही कारण था कि दैत्य भगवान(LORD) ब्रह्मा (LORD BRAMHA) अथवा महादेव (SHANKAR) को प्राथमिकता देते थे। भोलेनाथ(LORD SHIVA) के नाम मे ही भोले है। सब कुछ जानते बूझते भी उनके स्वभाव में भोलापन है। उन्हें आशुतोष कहा गया है अर्थात अतिशीघ्र प्रसन्न होने वाला। उन्हें प्रसन्न करने के लिए किसी अनुष्ठान की आवश्यकता नही, वे तो सच्चे मन से केवल जल चढ़ाने पर भी प्रसन्न हो जाते हैं।  दूसरी सबसे बड़ी बात ये कि महादेव (SHANKAR) भाव प्रधान हैं। उनके लिए पूजा की विधि कोई मायने नही रखती, केवल भक्ति भाव को ही वे देखते हैं। उनके लिए देव दैत्य सब समान हैं इसीलिए वही एक ऐसे हैं जिनकी पूजा दोनो करते हैं। जो तीनों लोकों में तिरस्कृत हैं, महादेव (SHANKAR) उन्हें अपने पास स्थान देते हैं। वे कभी पक्षपात नही करते, इसीलिए वे असुरों(DEMONS) को भी उतने ही प्रिय हैं जितने देवों को। वे भौतिक और अलौकिक दोनो सम्पदाओं के स्वामी हैं और दोनो प्रकार की इच्छित फल प्रदान करते हैं। असुर(Demon) सदैव भौतिक वस्तुएं ही वरदान में मांगते थे और व्व भी उन्हें अतिशीघ्र चाहिए होता था। फिर महादेव (SHANKAR) से अच्छा भला कौन हो? कुछ लोगों को लगता है कि महादेव (SHANKAR) शीघ्रता में बिना सोचे समझे वरदान दे देते थे, किन्तु ऐसा नही था। वे भगवान(LORD) हैं फिर भला उनसे कोई बात कैसे छिपी रह सकती है। इनके वरदान के बाद घटने वाली घटना ही तो श्रीहरि को अवतार लेने को विवश करती है। ब्रह्मदेव(BRAHMA) तो परमपिता ही हैं। सारी सृष्टि उन्ही से उत्पन्न हुई है। देव दैत्य दोनो उन्ही की संतानें है। महादेव (SHANKAR) की भांति वे भी दोनो ओर पूज्य हैं। महादेव (SHANKAR) की भांति ब्रह्मदेव(BRAHMA) भी भौतिक वरदान देने में संकोच नही करते। असुरों(DEMONS) को वैसे भी और क्या चाहिए? ऐसे कई उदाहरण हैं जब दैत्यों ने इनसे अमरता मांगी किन्तु इन्होंने मना कर दिया। फिर असुर(Demon) चतुराई दिखाते हुए कुछ ऐसे वरदान मांगते हैं जिससे उन्हें लगता है वे अमर हो गए। वरदान प्राप्त करने पर वे ब्रह्मदेव(BRAHMA) की नासमझी पर कदाचित हंसते भी होंगे। पर वे ब्रह्मदेव(BRAHMA) हैं। जिन्होंने सबको और सबकुछ रचा हो, उन्हें भी भला कोई मूर्ख बना सकता है? अपने दिए हरेक वरदान में ब्रह्मदेव(BRAHMA) ने कुछ सूक्ष्म स्थान छोड़े जहां से पापियों का नाश संभव हुआ। तो एक तरह से देखा जाए तो उन्होंने श्रीहरि और महादेव (SHANKAR) का कार्य आसान कर दिया। श्रीहरि को प्रसन्न करना सबसे कठिन है। कहते हैं कि श्रीहरि को प्रसन्न करने के लिए तो पूरा जीवन भी कम है। पहली बात तो असुर(Demon) कभी इतनी लंबी प्रतीक्षा नही कर सकते क्योंकि वे स्वभाव से ही आतुर होते थे। दूसरे ये कि महादेव (SHANKAR) की भांति नारायण(VISHNU) भाव प्रधान नही बल्कि भक्ति प्रधान हैं। कोई उनका कितना सच्चा भक्त है, ये उनके लिए महत्व रखता है। इसीलिए हमने देखा है कि श्रीहरि के सच्चे भक्त केवल उनकी भक्ति ही मांगते हैं। किंतु भक्ति एक ऐसी चीज है जो असुरों(DEMONS) में तो दुर्लभ ही है। सबसे बड़ी बात ये कि भगवान(LORD) विष्णु(LORD VISHNU) भौतिक वस्तुओं को प्रदान करने में संकोची हैं। यही कारण है कि उनके भक्त उनसे अटल भक्ति या मोक्ष का वरदान चाहते हैं। किंतु असुरों(DEMONS) को तो भौतिक वस्तुओं जैसे धन, राज्य, ऐश्वर्य, सुरा, सुंदरी इत्यादि के अतिरिक्त कुछ और सूझता नही जो उन्हें श्रीहरि के पास मिलने वाला नही, फिर भला वे उनकी तपस्या क्यों करेंगे? यही कारण है कि असुरों(DEMONS) में जो सात्विक होते हैं, वो श्रीहरि की आराधना करते हैं जैसे प्रह्लाद, बलि, विभीषण इत्यादि। इसके अतिरिक्त त्रिदेवों का अवतार लेना भी एक बड़ा कारण है। ब्रह्मा (LORD BRAMHA)जी अधिक अवतार नही लेते हैं। भगवान(LORD) शिव के अवतार देवों और असुरों(DEMONS) दोनो को सन्मार्ग पर लाने वाले होते हैं। किंतु नारायण(VISHNU) के अवतार मूलतः असुरों(DEMONS) के नाश हेतु ही लिए गए हैं। यही कारण है कि असुर(Demon) उन्हें अपना शत्रु मानते हैं और उनकी तपस्या नही करते। भगवान(LORD) शिव का एक नाम भोले बाबा भी है, अर्थात जो सरल हो जिसमें छल कपट न हो।अब वो इतने भोले है कि साधारण सी वस्तु से प्रसन्न हो जाते है यहां तक मान्यता है मात्र जल का अर्घ्य देने से वो प्रसन्न हो कर मनोकामना पूर्ण कर देते हैं जब हम साधारण मनुष्य को ये बात मालूम है तो दैत्य राक्षस(DAITYA) तो महाछली, कपटी व धूर्त है उन्हें मालूम है विष्णु(LORD VISHNU) जी तो अवतार लेकर बुराई का अंत करने आ जाएंगे तथा उन्हें प्रसन्न करना बहुत दुष्कर है सबसे बड़ी बात उनसे वरदान लेने के समय वो मर्यादा पूर्ण वरदान ही देंगे कोई भी उल्टा सीधा वरदान पूर्ण नही करेंगे इसलिए बेचारे दैत्य राक्षस(DAITYA) भगवान(LORD) विष्णु(LORD VISHNU) से दूरी बना कर रखते है एकाध दैत्य ने कोशिश की और भगवान(LORD) विष्णु(LORD VISHNU) ने उनकी रक्षा भी की मुझे भक्त प्रह्लाद और नरसिंह भगवान(LORD) की कहानी याद आयी भक्त प्रह्लाद एक भक्त थे और बालक थे उनकी कोई अमर्यादित इच्छा भी नही थी इस कारण उनकी रक्षा के लिए भगवान(LORD) आ गए। भगवान(LORD) ब्रह्मा (LORD BRAMHA) जी भी ये सोच कर जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं कि चलो कोई मुझसे कुछ मांगने आ गया है दे देता हूँ परन्तु वो भी बहुत सोच समझ कर वरदान देते है जैसे रावण पहले ब्रह्मा (LORD BRAMHA) जी से वरदान लेने गया था परन्तु उन्होंने स्पष्ट कह दिया मेरे वश की बात नही है तुम्हे ये वरदान देना!अब रावण ने तपस्या की हमारे सबके भोले बाबा जी की बस फिर क्या था मिला वरदान और रावण ने जो उपद्रव मचाये वो आप सभी को ज्ञात ही है भोले बाबा वरदान दे देते हैं उसके बाद विष्णु(LORD VISHNU) जी को अवतार लेना पड़ता है उस वरदान के फलस्वरूप हुए हानि नियंत्रण के लिये जैसे विष्णु(LORD VISHNU) जी ने राम जी का अवतार लिया रावण के अभिमान को नष्ट करने के लिए। इन सब बातों के अतिरिक्त ब्रह्मदेव(BRAHMA) अधिकतम एक हजार वर्षों में व महादेव (SHANKAR) 10,000 वर्षों में प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन विष्णु(LORD VISHNU) जी की तपस्या कम से कम तीन जन्मों तक करनी पड़ती है | उदाहरण - विष्णु(LORD VISHNU)पदी गंगा को वैकुंठ से धरती पर लाने के लिए क्रमश: राजा सगर ,अंशुमान, दिलीप व भगीरथ को तप करना पड़ा लेकिन गंगा के वेग को रोकने के लिए भगीरथ ने कुछ वर्ष तप करके शिव जी को प्रसन्न कर लिया |यह दोनों--शिव व ब्रह्मा (LORD BRAMHA)—शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और चाहे जो वरदान दे देते हैं.(११/८८/१२ भागवत).शिव ने वृकासुर को सिर पर हाथ रख भस्म करने का वरदान दिया और वह शिव के ही पीछे पड़ गया. बचाने विष्णु(LORD VISHNU) जी को आना पड़ा. ब्रह्मा (LORD BRAMHA) जी के वरदान के कारण भगवान(LORD) को नृसिंह अवतार लेना पड़ा| भगवान(LORD) विष्णु(LORD VISHNU) दूसरी तरह के हैं.वे यदि समझते हैं कि भक्त ऐश्वर्य मद में उन्हें भूल जाएगा तो वो उसका सारा धन छीन लेते हैं और बार बार प्रयत्न पर भी धन नहीं देते बल्कि अपनी प्राप्ति करा देते हैं.इस कारण से विष्णु(LORD VISHNU) की भक्ति कठिन होने से लोग विष्णु(LORD VISHNU) की भक्ति न कर उनके अन्य रूपों की आराधना करते हैं (११/८८/८-१० भागवत) | अधिकांश राक्षस(DAITYA) ब्रह्मा (LORD BRAMHA) के उपासक थे - रावण, हिरण्यकशिपु, हिरणयाक्ष, कुंभ कर्ण, महिषासुर आदि ।परंतु ऐसा नहीं हैं कि राक्षसों मे कोई विष्णु(LORD VISHNU) भक्त नहीं हुआ हो । कुछ राक्षस(DAITYA) जो विष्णु(LORD VISHNU) भक्त थे - प्रह्लाद, बाली (असुर(Demon) राज), गयासुर, दंभ (शंखचूड़ के पिता), विभीषण आदि ।