सीता जी को दूसरा वनवास क्यों दिया गया ? यह समझने के लिए निम्नलिखित बातों को समझना चाहिए ।


स्टोरी हाइलाइट्स

सीता जी को दूसरा वनवास क्यों दिया गया ? यह समझने के लिए निम्नलिखित बातों को समझना चाहिए । जो साधारण मनुष्य हैं जैसे हम लोग तो उन्हें कम से कम तीन मर्यादाओं का अवश्य पालन करना चाहिए । पहली कुल की मर्यादा होती है । इसका मतलब है कि हमारे कुल के पूर्वजों ने जो कीर्तिमान स्थापित किए हैं, जो आदर्श स्थापित किए हैं । उनका पालन करना । उसके अनुसार कार्य करना । उदाहरण के लिए रघुवंश में वचन पालन का आदर्श था- रघुकुल रीति सदा चलि आई । प्राण जाइ पर वचन न जाई । दूसरी है लोक की मर्यादा । लोक की मर्यादा का मतलब है जो आदर्श हमारे समाज का है उसके अनुरूप रहना । आज के समय में भी कई बार इससे लाभ होता है । लोग प्रायः कहते हैं कि ऐसा करोगे तो ‘चार लोग’ क्या कहेगें ? यहाँ चार लोग का मतलब समाज से होता है । इस प्रकार समाज के डर से कई चीजें अच्छी की जाती हैं । तीसरी है वेद की मर्यादा । जिसे आज के समय में लोग जानते ही नहीं । वेद का नाम जरूर सुना होगा । लेकिन वैदिक मर्यादा के बारे में जब पता नहीं है तो पालन का कोई सवाल ही नहीं है । आजकल लोग अपने माता-पिता को ही नहीं मानते, जानते पहचानते तो कुल की मर्यादा की किसे पड़ी है । वेद की मर्यादा से भी कुछ लेना देना नहीं है । समाज का डर भले ही कुछ लोगों को हो । वैसे आजकल कोई मर्यादा ही नहीं रह गयी है और ‘करता वह जिसको जो भाए’ का समय आ गया है । इसे ही कलियुग कहा गया है । उपरोक्त तीन मर्यादाएं मनुष्य मात्र के लिए हैं । चाहें वह स्त्री,पुरुष और नपुंसक कोई भी क्यों न हो । रामजी मनुष्य रूप में अवतरित तो हुए थे लेकिन मनुष्य नहीं थे। वे लोक में थे लेकिन अलौकिक थे। इसलिए उन्हें पारलौकिक मर्यादा का भी पालन करना था। यह मर्यादा हम लोगों के लिए नहीं है । रामजी के अवतार का एक कारण इसी मर्यादा को निभाने के लिए हुआ था । नारद जी के वचन को रखने के लिए राम जी मनुष्य बने और रावण द्वारा सीताजी का हरण किया जाना स्वीकार किया । इसी तरह भृगु जी के वचन को रखने के लिए सीताजी को वनवास दिया गया । सीताजी को अयोध्या से वनवास भेजा गया । भृगु जी का शाप था कि असमय आपको अपनी पत्नी का परित्याग करना पड़ेगा । रामजी ने भृगु जी के शाप को सत्य करके दिखाया और उनके वचन की रक्षा की । इस तरह साधारण मनुष्यों से इतर रामजी पारलौकिक मर्यादा से बंधे थे । और रामजी ने एक साथ कुल की यानी रघुवंश की, लोक की, वेद की और सूक्ष्म लोक की चारों मर्यादाओं का पालन किया । चूँकि सूक्ष्म लोक की मर्यादा अलौकिक है । पारलौकिक है । इसलिए कोई सोचे कि रामजी ने सीताजी का परित्याग कर दिया था इसलिए मुझे भी ऐसा करना चाहिए । तो यह गलत है । क्योंकि यह लोक की दृष्टि से सही नहीं है । और यदि कोई सोचे कि राम जी ने सीताजी का परित्याग करके गलत किया था तो यह नासमझी की बात है । मूर्खता है । रामजी ने सदा मर्यादाओं का पालन किया है । और इसलिए ही वे मर्यादा पुरषोत्तम हैं । पुराण पुरषोत्तम हैं । इतना ही नहीं । जो राम जी हैं । वे ही सीता जी हैं । रामजी और सीताजी में भेद नहीं है । अभेद है । लोक (लीला) की दृष्टि से राम जी और सीताजी अलग हो गए । लेकिन तत्वतः रामजी और सीताजी कभी अलग नहीं होते- उमा राम गुन गूढ़, पंडित मुनि पावहिं विरति । पावहिं मोह विमूढ़ जे हरि विमुख न धर्म रति ।। डॉ. एस. के. पाण्डेय Dr. S. K. PANDEY