ध्यान के बारे में ये बातें आपने अब तक नहीं पढ़ी होगी ध्यान का असली सच? मेडिटेशन कोई विधि या प्रक्रिया नही है|


स्टोरी हाइलाइट्स

मेडिटेशन कोई विधि या प्रक्रिया नही है ये योग का परिणाम है, उपलब्धी है , ध्यान किया नहीं जाता ध्यान होता है| ये सहज उपलब्धि है जो जागृत कुंडलिनी या कर्माशयों के नाश, पंचकोशों के अनावरण से आत्मा में स्थिति से प्राप्त होती है, दिन रात बैठे रहना, होशपूर्ण होने की जबरिया कोशिश, दिन रात श्वास पर एकाग्रता करते रहना, विचारों को देखते रहना आदि ध्यान नही धारणा के अभ्यास है।

मेडिटेशन कोई विधि या प्रक्रिया नही है ये योग का परिणाम है, उपलब्धी है , ध्यान किया नहीं जाता ध्यान होता है| ये सहज उपलब्धि है जो जागृत कुंडलिनी या कर्माशयों के नाश, पंचकोशों के अनावरण से आत्मा में स्थिति से प्राप्त होती है, दिन रात बैठे रहना, होशपूर्ण होने की जबरिया कोशिश, दिन रात श्वास पर एकाग्रता करते रहना, विचारों को देखते रहना आदि ध्यान नही धारणा के अभ्यास है। धारणा भी योग की छटवी स्थिति है इससे पहले यम,नियम,आसन, प्रत्याहार व प्राणायाम आते हैं हर एक पायदान के बाद दूसरा पायदान आता है । जब व्यक्ति शुरुआत के 5 क्रम पूरे कर लेता है तो धारणा, ध्यान व समाधि की क्रमशः उपलब्धि होती है । इससे पहले आप कृत्रिम ध्यान विधियों या एकाग्रता के कुछ अभ्यासों से थोड़ी शांति या आनंद महसूस कर सकते हैं। कृत्रिम ध्यान विधियों  का अभ्यास हानिकारक नहीं है यदि थोड़ी मात्रा में किया जाए|  कृत्रिम ध्यान विधियों से आत्म सम्मोहन की स्थिति बनती है जिससे आपको अनेक तरह के अनुभव हो सकते हैं। जो सिर्फ भ्रमज्ञान है ब्रह्मज्ञान नही । चक्रों पर बहुत लम्बे समय तक ध्यान से आपको उनकी सक्रियता के अनुभव हो सकते हैं,लेकिन ये जाग्रति नहीं है, एक्टिवेशन व अवेकनिंग  में अंतर है| इससे रीढ़ की हड्डी पर अपान वायु के चढ़ने का एहसास हो सकता है। माथे में प्रेशर हो सकता है। लेकिन यह सब वास्तविक ध्यान के अनुभव या कुंडलिनी जागृति नहीं है। बल्कि कृत्रिम रूप से शरीर के विशेष केंद्र को सक्रिय करने की कोशिश का परिणाम है जो कभी-कभी घातक भी हो जाता है। चक्रों का सक्रियकरण व उनका जागरण हमारे अंदर मौजूद सुप्त चेतना यानी कुंडलिनी, यानी मन+आत्मा+ प्राण के सुप्त भाग के अधीन होता है। बिना सोचे समझे किसी भी ध्यान प्रक्रिया में लंबे समय तक इंवॉल्व ना हो। अन्यथा अनेक तरह की शारीरिक व मानसिक व्याधि खड़ी हो सकती है। कुंडलिनी जागृति कभी हानिकारक नही है यदि वह क्रमशः हो| यानी आत्मा मन और प्राण के तीनों भाग एक साथ जागृत हों| क्योंकि आत्मा व मन ड्राइविंग फोर्स हैं जिनके सुप्त भाग (जो कुंडलिनी का ही हिस्सा हैं) के जागे बिना सिर्फ प्राण का सुप्त भाग जाग जाए, तो प्राण बिना किसी नियंत्रण के शरीर मे गति करने लगेगा, पंच प्राण जहां चाहेंगे मनचाहा व्यवहार करेंगे, कभी रीढ़ में तो कभी मेरीडियन (Meridians are channels in which Prana energy travels) में प्रवेश करेंगे, सुषुम्ना (Spiritual Pathway) बंद होगा तो इड़ा पिंगला के रास्ते ब्रह्मरंध में पहुचेंगे। किसी भी चक्र में प्रेशर बना देंगे। ध्यान के कृत्रिम अनुभवों से आपको कुंडलिनी जागरण का भ्रम हो सकता है, आप इल्यूजन व होलिसिनेशन में पहुंच सकते हैं। आपकी मेरिडियंस (Meridian lines:network of ‘energy channels’) में प्राण का अतिरिक्त बहाव या चक्रों में अतिरिक्त प्रेशर के कारण विकृति पैदा हो सकती है। अक्सर लोग बिना सोचे समझे घंटों अपने आज्ञा चक्र पर सांसों की गति पर, या किसी विशेष चक्र पर ध्यान करते रहते हैं इसका नतीजा यह होता है प्राण अपान आदि 5 वायु उस स्थान की तरफ बढ़ने लगती है। यदि आप आज्ञा चक्र पर लगातार ध्यान करेंगे, आपके शरीर में मौजूद प्राण ,अपान , व्यान, उदान व समान (5 प्रकार की वायु उर्जा )  आपकी रीढ़ की हड्डी व अन्य स्थानों से आपके आज्ञा चक्र तक पहुंचने की कोशिश करने लगती है। कई बार यह पंच वायु समूह इकठ्ठा होकर आज्ञा चक्र तक पहुंच जाती है, एक बार वायु आज्ञा चक्र या मस्तिष्क के किसी भाग में पहुँच जाती है, तो वहां पर तमाशा खड़ा कर देती है अनेक तरह के अनुभव होते हैं। विकृतियां होती है। कुछ अजीब से अनुभव या मनचाहे अनुभव होने लगेंगे, जिसकी कल्पना करेंगे वही दिखने लगेगा, आसपास कुछ महसूस करेंगे । कुछ अदृश्य देखेंगे, ऐसा लगेगा जैसे आप भूत भविष्य जानने लगे हैं। ये एक प्रकार का झुनझुना है,कोई सिद्धि नही। चक्र हमारे शरीर के टावर भी हैं ये बाहर के सिग्नल्स को अधिक मात्र में ग्रहण करने लगें तो मुश्किल भी होने लगती है, आत्मज्ञान प्राप्त व्यक्ति यदि भविष्य की जानकारियां हासिल करें तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन यदि एक सामान्य व्यक्ति भविष्य में होने वाले घटनाक्रम को देखने लगे तो डर जाएगा क्योंकि उसे वह सब पता चलने लगेगा, जिसे आम लोगों को नहीं जानना चाहिए ,सामान्य व्यक्ति को अपनी मृत्यु की जानकारी भी लग जाएगी कि वह फलां डेट को मरेगा, इससे उसका जीना मुश्किल हो जाएगा, आत्मज्ञानी को मृत्यु या अन्य किसी घटना की जानकारी से डर नहीं लगता है| क्योंकि वह मृत्यु को भी नवसृजन की शुरुआत मानता है| भविष्य के सिग्नल्स मिलना कोई सिद्धि नहीं है एक समस्या है| जो होना है होकर रहेगा| एक स्वान(DOG) आपसे 20 गुना अधिक सुनने की क्षमता रखता है ये स्वान की सिद्धि नही है। जब पटाखे फूटते हैं तो उससे पैदा आवाज आप सहन क्आर सकते हैं क्युकी आपके कान निश्चित सीमा तक ही ओपन हैं, मानव में सब कुछ परफेक्ट है| इंद्रियां या चक्र अति सक्रिय हो जाये तो कुछ भी अटपटा हो सकता है। जो चमत्कारी लगेगा। मस्तिष्क में मौजूद पीनियल, पिट्यूटरी व हाइपोथेलेमस ग्रंथियों में विकार पैदा होने से कई तरह के परामनोवैज्ञानिक अनुभव होने लगते हैं।मूलतः यह सभी ग्रंथियां कुंडलिनी शक्ति के अधीन होती है, लेकिन कुंडलिनी जागृति के बगैर ध्यान के कारण प्राण, अपान आदि वायु की गति किसी एक क्षेत्र में बढ़ने के कारण यह ग्रंथियां प्रेशर के कारण विकार ग्रस्त हो जाती है। उस स्थान पर प्राण की गति बढ़ जाती है। उस दबाव को हर व्यक्ति सहन नहीं कर पाता और मनुष्य परेशान हो जाता है।तथाकथित गुरु इसे कुंडलिनी जागरण का अनुभव बताते हैं लेकिन वह कुंडली जागरण का नहीं विकृति का अनुभव होता है।प्राचीन योग विद्या बेहद सटीक है इसमें प्रामाणिक रूप से क्रमशः योग के विभिन्न अंगों को समाहित करते हुए साधना करने का विधान है , कुछ गुरुओं ने अपनी सुविधा के लिए उनमें से बैठे बैठे करने वाले धयान धारणा के अभ्यास का महिमामंडन शुरू कर दिया। जिन्होंने हमे योग दिया क्या वे सिर्फ ध्यान नही दे सकते थे क्यों योग में यम नियम प्रत्याहार आसान प्राणायाम भी शामिल किया क्यों इसमे हठ योग, राज योग , सांख्य योग, भक्ति योग , लय योग व मन्त्र योग शामिल किए गए? ध्यान के साथ साथ प्राणायाम, प्रत्याहार , आसन, ज्ञान योग ,भक्ति योग, लय योग , हठ योग आदि भी उतने ही अहम हैं| साधना में सबको साथ लें सबका उचित मात्रा में युज{जोड़} करें यही योग है, सब ध्यान की अवस्था तक आसानी से नही पहुंच सकते , कुछ अपवाद हो सकते हैं उनका विश्लेषण किया जा सकता है। बाकी विधियों से ध्यान को अलग करने वाले योग नही "वियोग" करा रहे हैं । जैसे कोई आहार विशेषज्ञ भोजन में सिर्फ दाल खाने को कहे और बाकी की उपेक्षा कर दे। अति सर्वत्र वर्जयेत । तो ये दाल वाला भोजन लगतार करते रहने से अन्य तत्वों की कमी कर देगा दाल भी अधिक मात्रा खाने से नुकसान करने लगेगी, भोजन में जिस तरह सभी तत्वों का समावेश सम मात्रा में होता है, उसी तरह योग में समस्त विधियों का उचित मात्रा में समावेश करना होता है । अतुल विनोद