युवा ना नकारें बुर्जुर्गों को...


स्टोरी हाइलाइट्स

बुजुर्ग पीढ़ी को मोटा पहनना मोटा खाना  भाता  था, वे “सादा जीवन उच्च विचार” जैसे आदर्शो को लेकर जीते थे, उन्हें संघर्ष करना ही नहीं आता था, अतः वे अपने जीव...

युवा ना नकारें बुर्जुर्गों को...  “बुजुर्ग पीढ़ी को मोटा पहनना मोटा खाना  भाता  था, वे “सादा जीवन उच्च विचार” जैसे आदर्शो को लेकर जीते थे, उन्हें संघर्ष करना ही नहीं आता था, अतः वे अपने जीवन का विकास नहीं कर पाए. उनके  अनुसार वर्तमान युवा पीढ़ी अधिक बुद्धिमान,योग्य और समझदार है इसलिए वे पुरानी पीढ़ी को उपेक्षित कर देना उचित समझते हैं ताकि वे अपने जीवन को तनाव मुक्त और आनंदमय जी सकें.   वर्तमान युवा पीढ़ी को अक्सर देखा जा सकता है की वह अपनी बुजुर्ग पीढ़ी को प्रत्येक स्तर पर नकारती है,उनकी प्रत्येक सलाह या उपदेश को सिरे से ख़ारिज कर देती है,उन्हें हेय दृष्टि से देखती है, क्योंकि उनकी योग्यता, आधुनिक परायणता के मुकाबले बुजुर्ग पीढ़ी बहुत पिछड़ चुकी है. “ युवा पीढ़ी को आज साइकिल पर चलने वाला व्यक्ति पिछड़े वर्ग का लगता है.उसे लगता है की बुजुर्गों ने पूरी जिन्दगी गरीबी में काट दी, उन्हें कमाना ही नहीं आता था. इसलिए आजीवन गरीब बने रहे, शायद उनकी सोच छोटी थी, इसलिए निम्न स्तरीय बने रहे, बड़ी सोच रखते तो जीवन की ऊंचाईयों को प्राप्त कर सकते थे. मोटा पहनना मोटा खाना उन्हें भाता था, “सादा जीवन उच्च विचार” जैसे आदर्शो को लेकर जीते थे. उन्हें संघर्ष करना ही नहीं आता था, अतः वे अपने जीवन का विकास नहीं कर पाए. उनके अनुसार वर्तमान युवा पीढ़ी अधिक बुद्धिमान,योग्य और समझदार है इसलिए वे पुरानी पीढ़ी को उपेक्षित कर देना उचित समझते हैं ताकि वे अपने जीवन को तनाव मुक्त और आनंदमय जी सकें. नयी पीढ़ी के अनुसार  पुरानी  पीढ़ी हमेशा उपदेश देती रहती है, उसे लगता है की उनकी प्रत्येक  पसंद के विरुद्ध रहती है. हमें आनंदित होने से रोकती रहती है. और इसी कारण वह पुरानी  पीढ़ी की प्रत्येक सही या गलत बात के विरोध में खड़े रहना अपनी आदत में ढाल लिया है. युवा पीढ़ी की यह सोच उनके भावी जीवन के लिए सही नहीं है. अपने बुजुर्गों की कही प्रत्येक सलाह या उपदेश का निष्पक्ष  रूप से विश्लेषण करना आवश्यक है, यदि उनकी कोई बात तर्क संगत लगे उसे अपनाने में हिचकना नहीं चाहिए. कुछ बाते आज के सन्दर्भ में भी सटीक हो सकती है, अतः आवश्यकता है वे अपनी  तर्क शक्ति का प्रयोग कर उचित और अनुचित का विश्लेषण करें तत्पश्चात अपनी प्रतिक्रिया दें. युवा भूल जाते हैं की यदि पुरानी पीढ़ी के लोग अपने लिए सुविधाओं पर ध्यान केन्द्रित करते तो तुम आज यहाँ तक नहीं पहुँच पाते. तुम्हारे विकास के जिम्मेदार भी वही हैं. स्वयं अनपढ़ होते हुए या बहुत कम पढ़े होते हुए भी तुम्हे उच्च शिक्षा प्रदान करने का बीड़ा उठाया. तमाम अभावों में जीते हुए भी तुम्हारे लिए यथा संभव सभी सुविधाएँ जुटाने के प्रयास किये. स्वयं बैल गाड़ी से सफ़र करके ही वे तुम्हे बस और हवाई जहाज तक पहुंचा पाए. हैण्ड पम्प से पानी खींच कर जीवन यापन करने के बाद ही सबमर्सिबल पम्प तक तुम्हे पहुंचा पाए. साइकिल पर चलने के पश्चात् ही तुम्हे कार में चलने योग्य बना सके. वर्तमान संचार साधन अर्थात मोबाइल,कम्प्यूटर टेलीविज़न इत्यदि उनकी पीढी के प्रयासों से ही विकसित हो पाए है. फिर वे कैसे असफल माने  जा सकते हैं. जिन्होंने तुम्हारी पीढी के लिए इतनी  विकसित दुनिया उपलब्ध करायी तो फिर वे नकारने योग्य क्यों होने चाहिए. क्या इसलिए कि वे आज तुम्हे अपने जीवन स्तर के मुकाबले कहीं अधिक उच्च स्तर पर पहुंचा पाने में सफल हुए? आज के बुजुर्गों के बाल्यकाल में उन्हें अक्सर बिजली,पंखे,कूलर जैसी सुविधाएँ नहीं मिलीं.उन्हें ज्ञान प्राप्त करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था, ट्यूशन पढने के लिए धन का अभाव रहता था. गाँव या मोहल्ले में बहुत कम पढ़े लिखे लोग होते थे जिनसे किसी भी प्रश्न के उत्तर की संभावना नहीं होती थी. गूगल बाबा जैसे ज्ञान दाता उन दिनों नहीं होते थे. अतः विद्यार्थी की जिज्ञासा पूर्ण करने का कोई साधन नहीं था. स्नातक व्यक्ति बहुत ढूँढने पर ही मिल पाता था. स्कूल जाने के लिए साइकिल ही उपलब्ध थी अक्सर विद्यार्थी पैदल चल कर स्कूल जाते थे.मनोरंजन के नाम पर सिर्फ त्यौहार या गाँव शहर में लगने वाले मेले होते थे.सिनेमा भी उनके जीवन में देर से ही आये थे. रेडियो टी.वी.जैसे इलेक्ट्रॉनिक साधन उनके बाल्यकाल और यौवन काल में उपलब्ध नहीं थे. आज की भांति सहज टेलीफोन मोबाइल जैसी सुविधाएँ नहीं थी टेलीफोन अपनी  प्रारंभिक अवस्था में थे अतः उच्च आय वर्ग के  व्यक्तियों तक सीमित होते थे. कुल मिला कर पुरानी पीढ़ी अपनी प्राथमिक आवश्यक्ताओं के लिए ही जूझती रही,और उनके संघर्ष के परिणाम स्वरूप तुम्हे वर्तमान ऊंचाईयां मिल सकीं.जब इन्सान नून-तेल-लकड़ी के लिए संघर्ष करता है तो उसका विकास भी सीमित ही रह जाता है. अतः नयी पीढ़ी द्वारा पुरानी पीढ़ी को अयोग्य,अप्रासंगिक,एवं कम प्रयत्न शील पीढ़ी मानना युवा पीढ़ी की नादानी और ना समझी ही है.यदि वे अपने को उस स्थिति में रख  कर आंकलन करें तो वे अपने बुजुर्गों के प्रति श्रद्धा से नत मस्तक हो जायंगे. सत्यशील अग्रवाल