भोपाल: मैहर अल्ट्राटेक सीमेंट प्लांट द्वारा 70 एकड़ वन भूमि में अवैध निर्माण का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। जहां एक ओर 18 साल बाद बड़ी कार्रवाई करने की बजाय अपर मुख्य सचिव जेएन कंसोटिया ने एसडीओ यशपाल मेहरा और रेंजर सतीश मिश्रा को निलंबित कर उन्हें बलि का बकरा बना दिया गया। यानि जब अल्ट्राटेक सीमेंट के खिलाफ करवाई करवाने के मुद्दे पर एसीएस कंसोटिया बैकफुट आ गए है।
जबकि आईएफएस अफसर को बख्श दिया गया। विभाग में चर्चा यह भी है कि जहां तक कार्रवाई की बात है तो फिर रिटायर हुए अफसर को छोड़कर सीनियर आईएफएस अधिकारी डॉ दिलीप कुमार, अजय कुमार यादव, पुरुषोत्तम धीमान, मोहनलाल मीणा, और राजेश कुमार राय इन सभी पर कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके अलावा कलेक्टर और नगर पालिका मैहर के अधिकारियों की भूमिका की भी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। विभाग के अधिकांश बड़े अफसर एसीएस की कार्रवाई को अनुचित बता रहे हैं।
अब सीमेंट प्लांट के अवैध निर्माण के प्रति वन विभाग आगे की कार्रवाई के लिए एक-दूसरे का हवाला देते हुए अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे है। विधानसभा सत्र में सवाल उठाए जाने के बाद मैहर रेंजर ने 24 फरवरी 24 को भारतीय वन अधिनियम के तहत वन भूमि कब्जा करने के अपराध में अल्ट्राटेक सीमेंट फैक्ट्री के संचालकों के खिलाफ पीओआर प्रकरण दर्ज कर वन अधिनियम 1927 की धारा 80ए के तहत अपनी रिपोर्ट एसडीओ के जरिए डीएफओ को भेज दिया। वन अधिनियम की धारा 80ए के तहत कार्रवाई करने का अधिकार वन मंडलाधिकारी का है किंतु मौजूद डीएफओ ने अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक ( भू प्रबंध ) को 6 अप्रैल को पत्र लिखकर धारा 80ए के तहत कार्रवाई करने के लिए मार्गदर्शन मांगा।
चूंकि मामला उद्योग से जुड़ा हुआ था, इसलिए डीएफओ अपने सीनियर अधिकारियों से मार्गदर्शन लेना उचित समझा। मुख्यालय में बैठे विभाग प्रमुख से लेकर जिम्मेदार अफसर ने डीएफओ के पत्र को संज्ञान में नहीं लिया। मामला तूल पकड़ने के बाद सोमवार को एसीएस भी वरिष्ठ अफसरों से चर्चा करने के बाद अल्ट्राटेक सीमेंट से अतिक्रमण हटाने के मामले में पीछे हट रहें है। अब ऐसी स्थिति में रेंजर और एसडीओ कहां कसूरवार है..?
बड़ो को बचाने छोटों को बनाते हैं बलि का बकरा
खासकर जंगल महकमें में यह प्रथा बन गई है कि बड़े अधिकारियों को बचाने में छोटे अधिकारियों को बली का बकरा बना दिया जाए। अपर मुख्य सचिव ने भी प्रचलित इसी परंपरा का निर्वाह किया। ऐसे में यह अहम सवाल है कि सीमेंट प्लांट के अवैध कब्जा- निर्माण में वन विभाग की क्या कार्रवाई होती है? सवाल यह भी है कि वन अधिकारियों को सस्पेंड करने में वन विभाग राज्य शासन ने जितनी फुर्ती दिखाई है, क्या उतना ही फुर्ती वन भूमि पर सीमेंट प्लांट के अवैध निर्माण ध्वस्त करने में विभाग या राज्य शासन दिखाएगा...?
किसी ने भी कब्जा हटाने की सुध नहीं ली
वन विभाग की गूगल मैप की माने तो यह कब्जा बीते 18 सालों यानि वर्ष 2002 से अनवरत रहा आया। इस बीच कितने अधिकारी आए और गए किसी ने इस कब्जे की सुध लेना भी उचित नहीं समझा और अब जिनके द्वारा वन भूमि में अवैध कब्जा करने पर मैहर अल्ट्राटेक लिमिटेड के खिलाफ अपराध दर्ज कर वन भूमि मुक्त कराने का प्रयास किया उन्हें ही वन विभाग राज्य शासन ने वहां के अधिकार से हटा दिया। जिसके बाद वन विभाग राज्य शासन की इस कार्रवाई पर सवाल उठने लगे है। सवाल यह भी है कि आगे क्या कार्रवाई विभाग द्वारा की जाएगी या फैक्ट्री कल्चर के दबाव में मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा...?
अतिक्रमण हटाने को लेकर एनजीटी जा सकते हैं कर्मचारी नेता
इस बीच मप्र कर्मचारी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मुनेंद्र सिंह परिहार ने भी राज्य शासन को पत्र लिखकर एसडीओ-रेंजर पर हुई कार्यवाई अपना कड़ा विरोध जताया है। परिहार का कहना है कि अब तो एसीएस और वन विभाग के मुखिया को वन भूमि से अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही करना होगी, वर्ना उनका संगठन इस मामले को एनजीटी में ले जाएगा।