भोपाल: 70 एकड़ वन भूमि में अवैध निर्माण को लेकर मैहर अल्ट्राटेक सीमेंट संस्था के संचालकों के खिलाफ करवाई करने में फॉरेस्ट मंत्रालय और शीर्ष अफसरों के पसीने छूट रहें हैं। वे इस बात को लेकर असमंजस में है कि बेदखली की कार्रवाई की जाए अथवा एफसीए के अंतर्गत अनुमति का प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा जाए। इस बात का निर्णय अब राज्य शासन को करना है। यदि एफसीए के तहत नियमितीकरण होता है तो संस्था को 3 करोड़ से अधिक की राशि पेनल्टी बतौर भरना पड़ेगी।
वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव ने यह प्रस्ताव अपर मुख्य सचिव वन जेएन कंसोटिया को भेजते हुए उनसे मार्गदर्शन मांगा है। दिलचस्प पहलू यह है कि शासन द्वारा मैहर के एसडीओ और रेंजर के खिलाफ की गई निलंबन की कार्यवाही पर हाई कोर्ट जबलपुर ने प्रतिकूल टिप्पणी की है।
वन मण्डल सतना के वन परिक्षेत्र मैहर के अंतर्गत मैहर सीमेंट औद्यौगिक संस्था हेतु 193.1867 हेक्टेयर वन भूमि वर्ष 1975 में 99 वर्ष की अवधि के लिये मध्यप्रदेश शासन द्वारा औद्यौगिक संस्था को स्वीकृत की गई है। संस्था द्वारा स्वीकृत भूखण्ड सीमा से बाहर वनभूमि के वन कक्ष पी-555 में रकबा 27.9 हेक्टेयर अर्थात् लगभग 70 एकड़ में संस्था द्वारा कॉलोनी, कॉलेज, आवासीय कॉलोनी, हॉस्पीटल, बाजार आदि का निर्माण कर वन भूमि अतिक्रमण किया है।
मैहर सीमेंट औद्यौगिक संस्था ने 70 एकड़ वन भूमि पर कब्जा कर 1981 से 2002 के बीच निर्माण कार्य कर लिया। सतना वन मंडल के लिए बने वर्किंग प्लान 2008 में भी वन कक्ष पी-555 पर अतिक्रमण दर्शाया गया है। इसके बाद 2019 के वर्किंग प्लान में भी अतिक्रमण अंकित किया गया है। इस बीच सतना में डॉ दिलीप कुमार, अजय कुमार यादव, पुरुषोत्तम धीमान, और मोहनलाल मीणा जैसे कई तेज-तर्रार डीएफओ आए और चले गए किसी ने भी मैहर सीमेंट औद्यौगिक संस्था के खिलाफ कार्यवाही करने की जहमत नहीं उठाई।
दुर्भाग्य जनक पहलू यह है कि किसी ने भी वर्किंग प्लान की किताब के उसे पन्ने को पढ़ने की कोशिश नहीं की जहां पर मैहर सीमेंट फैक्ट्री द्वारा वन भूमि पर अतिक्रमण किए जाने का उल्लेख किया गया था। यहां के मैदानी अमलों के बीच यह चर्चा है कि संस्था के प्रबंधकों द्वारा यहां के सीएफ रीवा और डीएफओ सतना को उपकृत किया जाता रहा है, इसलिए किसी ने भी कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटाई। सवाल यह भी उठना है कि जब एसडीओ रेंजर पर कार्रवाई हुई तो फिर इन्हें अभयदान क्यों दिया जा रहा है?
वन अधिनियम के तहत क्या हो सकती है कार्यवाही
वन भूमि पर कब्जा करने वाले आदिवासियों अथवा ग्रामीणों पर फॉरेस्ट ऑफिसर क्रूरता पूर्वक कार्रवाई करते हैं। औद्योगिक संस्था के खिलाफ भेजो कब्जा हटाने में हाथ-पैर फूलते दिखाई दे रहे हैं। शायद इसीलिए विभाग के मुखिया असीम श्रीवास्तव ने एक पत्र लिखकर राज्य शासन से मार्गदर्शन मांगा है। वन बल प्रमुख के पत्र पर अपर मुख्य सचिव की स्थिति किंकर्तव्यविमुढ़ जैसी बन गई है। एक सेवानिवृत वन बल प्रमुख का कहना है कि कार्यवाही करने के लिए वन अधिनियम में डीएफओ और विभाग प्रमुख अधिकार संपन्न होता है। यानी कार्रवाई करने के लिए शासन से अनुमति या अथवा मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती है।
मार्गदर्शन मांगने का मतलब यह है कि विभाग के मुखिया को वन अधिनियम अथवा फॉरेस्ट प्रोटेक्शन एक्ट के प्रावधानों की जानकारी नहीं है। एक वर्किंग एपीसीसीएफ का कहना है कि औद्योगिक संस्था द्वारा सट्टा रिकॉर्ड वन भूमि पर किए गए निर्माण को एफसीए के अंतर्गत भारत सरकार की सहमति के बाद नियमितीकरण किया जा सकता है। यदि प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा जाता है तब औद्योगिक संस्था को करीब 3 करोड रुपए से अधिक की राशि पेनल्टी देना होगी। एक सीनियर अधिकारी का कहना है कि यदि प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा तो उन अफसर पर भी गाज गिर सकती है, जो सतना डीएफओ के पद पर पदस्थ रहे हैं।
कैसे हुआ उजागर मामला
सत्तारूढ़ दल के विधायक श्रीकांत चतुर्वेदी ने फरवरी में संपन्न विधानसभा सत्य के दौरान मैहर सीमेंट फैक्ट्री द्वारा वनभूमि पर कब्जा कर उस पर निर्माण करने से संबंधित सवाल पूछे थे और उसी के उत्तर में 70 एकड़ वन भूमि पर कब्जा कर कॉलोनी, स्कूल, बाजार और खेल के मैदान बनाने का मामला प्रकाश में आया। विधानसभा में मामला प्रकाश में आते ही 24 फरवरी 24 को एसडीओ - रेंजर मैहर ने वन अपराध प्रकरण पंजीबद्ध किया गया है।
18 साल बाद बड़ी कार्रवाई करने पर अपर मुख्य सचिव जेएन कंसोटिया ने एसडीओ यशपाल मेहरा और रेंजर सतीश मिश्रा को पुरस्कृत करने के बजाय उन्हें निलंबित कर दिया। अब जब अल्ट्राटेक सीमेंट के खिलाफ करवाई करवाने के मुद्दे पर एसीएस कंसोटिया बैकफुट आ गए है।
एसीएस और विभाग प्रमुख को हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस
70 एकड़ वन भूमि पर मैहर सीमेंट फैक्ट्री के अवैध कब्जे का खुलासा करने वाले अधिकारियों को पुरस्कार की जगह निलंबन की सजा कैसे दे दी गई। यह उचित नहीं है।
यह प्रतिकूल टिप्पणी हाईकोर्ट ने गुरुवार को इस मामले में निलंबित किए गए एसडीओ वन और रेंजर के निलंबन के विरुद्ध दायर याचिका की सुनवाई के दौरान की। हाईकोर्ट ने कहा कि इतने साल पुराने (2002 के) अतिक्रमण में जिन अधिकारियों ने कार्रवाई की उन्हें रिवार्ड देने की जगह सजा दी गई है। यह उचित नहीं है। हाईकोर्ट ने इस आधार पर स्टे देते हुए शासन से जवाब-तलब किया है। हाई कोर्ट जबलपुर ने एसीएस वन, डिप्टी सेकेट्री, वन बल प्रमुख, सीसीएफ और डीएफओ को नोटिस भी जारी किया है।
अब पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं अफसर
अब सीमेंट प्लांट के अवैध निर्माण के प्रति वन विभाग आगे की कार्रवाई के लिए एक-दूसरे का हवाला देते हुए अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे है। विधानसभा सत्र में सवाल उठाए जाने के बाद मैहर रेंजर ने 24 फरवरी 24 को भारतीय वन अधिनियम के तहत वन भूमि कब्जा करने के अपराध में अल्ट्राटेक सीमेंट फैक्ट्री के संचालकों के खिलाफ पीओआर प्रकरण दर्ज कर वन अधिनियम 1927 की धारा 80ए के तहत अपनी रिपोर्ट एसडीओ के जरिए डीएफओ को भेज दिया।
वन अधिनियम की धारा 80ए के तहत कार्रवाई करने का अधिकार वन मंडलाधिकारी को है किंतु मौजूद डीएफओ ने अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक ( भू प्रबंध ) को 6 अप्रैल को पत्र लिखकर धारा 80ए के तहत कार्रवाई करने के लिए मार्गदर्शन मांगा। चूंकि मामला उद्योग से जुड़ा हुआ था, इसलिए डीएफओ अपने सीनियर अधिकारियों से मार्गदर्शन लेना उचित समझा। मुख्यालय में बैठे विभाग प्रमुख से लेकर जिम्मेदार अफसर ने डीएफओ के पत्र को संज्ञान में नहीं लिया। मामला तूल पकड़ने के बाद सोमवार को एसीएस भी वरिष्ठ अफसरों से चर्चा करने के बाद अल्ट्राटेक सीमेंट से अतिक्रमण हटाने के मामले में पीछे हट रहें है। अब ऐसी स्थिति में रेंजर और एसडीओ कहां कसूरवार है..?
बड़ो को बचाने छोटों को बनाते हैं बलि का बकरा
खासकर जंगल महकमें में यह प्रथा बन गई है कि बड़े अधिकारियों को बचाने में छोटे अधिकारियों को बली का बकरा बना दिया जाए। अपर मुख्य सचिव ने भी प्रचलित इसी परंपरा का निर्वाह किया। ऐसे में यह अहम सवाल है कि सीमेंट प्लांट के अवैध कब्जा- निर्माण में वन विभाग की क्या कार्रवाई होती है? सवाल यह भी है कि वन अधिकारियों को सस्पेंड करने में वन विभाग राज्य शासन ने जितनी फुर्ती दिखाई है, क्या उतना ही फुर्ती वन भूमि पर सीमेंट प्लांट के अवैध निर्माण ध्वस्त करने में विभाग या राज्य शासन दिखाएगा...?
एनजीटी जा सकते हैं कर्मचारी नेता
इस बीच मप्र कर्मचारी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मुनेंद्र सिंह परिहार ने भी राज्य शासन को पत्र लिखकर एसडीओ-रेंजर पर हुई कार्यवाई अपना कड़ा विरोध जताया है। परिहार का कहना है कि अब तो एसीएस और वन विभाग के मुखिया को वन भूमि से अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही करना होगी, वर्ना उनका संगठन इस मामले को एनजीटी में ले जाएगा।