वन्यजीवों के शिकार पर आरोपी को जमानत न मिले, इस हेतु जारी हुई एडवाईजरी


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स्टोरी हाइलाइट्स

एडवाईजरी में बताया गया है कि उच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत जमानत देने के मानदंड, भारतीय दंड संहिता (भारतीय न्याय संहिता) के तहत अन्य अपराधों की तुलना में अधिक कठोर हैं..!!

भोपाल: राज्य के वन मुख्यालय के पीसीसीएफ वन्यजीव व्हीएन अम्बाडे ने वन्यजीवों खासकर बाघ के शिकार करने पर आरोपी को जमानत न मिल सके, इसके लिये सभी वन इकाईयों को एडवाईजरी जारी की है। एडवाईजरी में बताया गया है कि उच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत जमानत देने के मानदंड, भारतीय दंड संहिता (भारतीय न्याय संहिता) के तहत अन्य अपराधों की तुलना में अधिक कठोर हैं। यह नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के प्रावधानों के समानांतर है, जो जमानत के लिए सख्त शर्तें भी लगाता है।

एडवाईजरी में बताया गया है कि वन्य जीव अपराधों में जमानत याचिकाओं को गंभीरता पूर्वक लेना चाहिए और माननीय न्यायालय के समक्ष एकत्रित साक्ष्य को सारभर्गित तरीके से प्रस्तुत कर कर जमानत का विरोध अनिवार्य रूप से करना चाहिए। हाल ही में प्रदेश में दर्ज कुछ वन्जीव अपराध प्रकरण की सुनवाई के दौरान माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय को, भविष्य में समान प्रकृति के वन अपराधों में शासनहित में जमानत याचिकाओं के निरस्तीकरण के लिए उपयोग किया जा सकता है। 

एडवाईजरी में दो मामलों का उदाहरण दिया गया है। एक, सुनील खंडाते एवं अन्य विरुद्ध मप्र के प्रकरण में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा एमसीआरसी नंबर 26937/2024 दिनांक 29 जुलाई 2024 को द्वारा आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी गई। सिवनी कटंगी रोड पर संदिग्ध व्यक्ति सुनील खंडाते को पकड़ा गया था और उसकी तलाशी लेने पर उसके पास से बाघ की 49 हड्डियां, 14 नाखून और 31 मूंछ के बाल थे, जिन्हें सबूत के तौर पर विधिवत जप्त किया गया। 

आरोपी सुनील खंडाते द्वारा चौथी बार माननीय उच्च न्यायालय में यह जमानत याचिका दायर की गई थी जिस पर आदेश पारित करते हुए माननीय न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि जिस वन्य प्राणी का शिकार किया गया है, वह वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 यथा संशोधित 2022 के अनुसूची एक का वन्य प्राणी है। माननीय न्यायालय ने कहा कि बाघ जैसे वन्य प्राणी के शिकार की घटना को सामान्य अपराधों के समान नहीं माना जा सकता क्योंकि ऐसा अपराध प्रकृति और वन के लिए खतरा है। 

दो, साईटिस प्रजातियो की अवैध व्यापार से संबंधित प्रकरण पंजीबद्ध किया गया था जिसकी विवेचना के दौरान कुछ आरोपी गिरफ्तार किए गए जो अभी जेल में हैं तथा एक फरार आरोपी उत्कर्ष अग्रवाल निवासी बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) द्वारा माननीय उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ के समक्ष अग्रिम जमानत याचिका दायर की गई जिसे माननीय न्यायालय द्वारा दिनांक 9 अगस्त 2024 को निरस्त कर दिया गया।

उक्त दोनों मामलों में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेशों को समान प्रकृति के वन्य जीव अपराधों में आरोपियों की जमानत याचिकाओं को निरस्त निरस्त करवाने हेतु संदर्भ के रूप में उपयोग किया जा सकता है।