1 जून को भोपाल गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है। शहर में कई जगहों पर आजादी का जश्न जारी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश की आजादी के ढाई साल बाद भी भोपाल की नवाबी रियासत गुलाम थी।
वैसे तो भोपाल दुनियाभर में झीलों के शहर के नाम से ही जाना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि रियासतकालीन नवाबी संस्कृति और संस्कृति वाला यह शहर 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के बाद भी ढाई साल तक भी गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा।
इसका देश में विलय 1 जून 1949 को हुआ। यही वह दिन था जब भोपाल को गुलामी से आजादी मिली थी और इसी दिन से देश का तिरंगा यहां शान से लहराया। खास बात यह है कि तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की सख्ती के बाद 1 जून 1949 को भोपाल रियासत का भारत में विलय हो सका।
1947 में यानी जब भारत आज़ाद हुआ तो भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्लाह थे। वह नेहरू और जिन्ना के साथ-साथ अंग्रेजों के भी बहुत अच्छे दोस्त थे। जब भारत को स्वतंत्र करने का निर्णय लिया गया तो यह भी निर्णय लिया गया कि पूरे देश से शाही शासन हटा दिया जायेगा। अंग्रेज़ नवाब हमीदुल्लाह भोपाल के भारत में विलय के पक्ष में नहीं थे। क्योंकि वह भोपाल पर राज करना चाहते थे।
भोपाल में विलय के विरोध का दौर शुरू हो गया। तीव्र आंदोलन तीन महीने तक चला। जब नवाब हमीदुल्ला बुरी तरह हार गए तो उन्होंने 30 अप्रैल 1949 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। इसके बाद 1 जून 1949 को भोपाल रियासत भारत का हिस्सा बन गई।
केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त मुख्य आयुक्त एनबी बनर्जी ने भोपाल का कार्यभार संभाला और नवाब को प्रति वर्ष 11 लाख रुपये का विशेषाधिकार दिया गया और अधिकार की सभी शक्तियां छीन ली गईं।