भोपाल: वनबल प्रमुख असीम श्रीवास्तव ने डीएफओ-सीएफ और सप्लायर्स के बीच बने नेक्सेस को तोड़ने की मंशा से कड़ा फैसला लिया है। वनबल प्रमुख ने बुधवार को एक आदेश जारी कर फील्ड के अफसरों को सख्त निर्देश दिए हैं कि टेंडर की नई शर्ते बनने तक पूर्व में किए गए खरीदी संबंधित निविदाएं निरस्त किए जाएं।
यही नहीं, विभाग के मुखिया ने खरीदी के कारोबार में पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा बढ़ाने की मंशा से पूरे प्रदेश में एक समान शर्तें लागू करने के लिए कमेटी बना दी है। इसके पहले भी श्रीवास्तव ने एक आदेश जारी कर सभी टेंडर विभागीय वेबसाइट पर अपलोड करने के निर्देश दिए हैं। हालांकि इस निर्देश का पालन कई डीएफओ नहीं कर रहे हैं।
जंगल महकमे में एक दशक से अधिक समय से फील्ड के अफसरों और सप्लायर्स के बीच एक नेक्सेस बना हुआ है। इस नेक्सेस को अभी तक कोई तोड़ नहीं पाया। नेक्सस से जुड़े 10-12 बड़े सप्लाययर्स ही वन विभाग में हर वित्तीय वर्ष में 90-100 करोड़ के करोड़ के कारोबार करते आएं है। उनके इस कारोबारी साम्राज्य में कोई और घुसपैठ न कर सके, इसके लिए फील्ड के अफसर से खरीदी संबंधित निविदाओं में नई-नई शर्तों जुड़वाते आ रहे थे। इन निविदाओं की जानकारी भी उन्हें ही लगती थी, जो नेक्सेस से जुड़े होते हैं।
वनबल प्रमुख बनने के बाद से असीम श्रीवास्तव को लगातार शिकायतें मिल रही थी कि टेरिटोरियल में बैठे डीएफओ और सीएफ कमीशन बाजी का खेल खेलने के लिए मनमानी शर्तें जोड़ रहे हैं। इसके कारण मध्य और लघु कारोबारी प्रतिस्पर्धा से बाहर होते जा रहे हैं।
इन शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए सबसे पहले वनबल प्रमुख ने एक आदेश जारी किया जिसमें सभी को निर्देशित किया है कि निविदा चाहे जेम्स (Gem) के जरिये हो या फिर अखबार में प्रकाशित की गई हो, उन्हें विभाग के साइट पर भी अपलोड कराया जाएं। हालांकि इस आदेश के बाद मॉनिटरिंग की व्यवस्था मुख्यालय स्तर पर नहीं की गई है जिसके कारण डीएफओ और सीएफ अभी भी नफरमानी कर रहे हैं। लेकिन 14 अगस्त को जारी आदेश से अधिकारियों और नेक्सेस से जुड़े सप्लायर्स में हड़कंप है।
क्या खरीदी होती है..
वन विभाग में हर साल चैन लिंक, वायरवेड, टिम्बर पोल्स, रूट ट्रेनर्स, मिट्टी, गोबर एवं रासायनिक खाद की खरीदी में बड़े पैमाने पर खरीदी होती है। सबसे अधिक खरीदी कैंपा फंड से की जा रही है। इसके अलावा विकास और सामाजिक वानिकी (अनुसंधान एवं विस्तार ) शाखा से भी खरीदी होती है।
विभाग के उच्च स्तरीय सूत्रों की माने तो कुल रिलीज बजट की 18 से 20% धनराशि कमीशन के रूप में टॉप -टू - बॉटम बंटती है। यानि सप्लायर्स को हर साल लगभग 10-12 करोड़ कमीशन में बांटने पड़ते हैं।
चहेती फर्म को उपकृत करने जोड़ देते हैं ये शर्तें..
** 10 प्रकार के आईएसओ सर्टिफिकेट। वैसे यह सर्टिफिकेट केवल ऑफिस मैनेजमेंट के लिए जारी किया जाता है। इसका प्रोडक्ट से कोई लेना-देना नहीं रहता।
** 50 लाख तक के वर्क आर्डर पर 3 से 6 करोड़ रुपए का टर्नओवर मांगा जा रहा है। जो कि लघु एवं मध्यम उद्यमी कैसे पूरी कर सकता है?
** इपीएफओ का प्रमाण पत्र तब जारी किया जाता है जब किसी भी संस्था में 20 से अधिक कर्मचारी काम करते हो और उनका प्रोविडेंट फंड कटता हो। छोटे और मध्यम सप्लायर इसे कैसे पूरी कर सकते हैं?
राजनीतिक दबाव में बदल की जाती है शर्तें..
मैनेजमेंट कोटे से फील्ड में पदस्थ आईएफएस अधिकारी राजनीतिक दबाव के आगे झुक जाते हैं। इसके बाद वे सप्लायर्स के अनुसार शर्तें जोड़-घटा कर कमीशनबाजी के खेल से जुड़ हैं। इस खेल में उन्हें तब अफसोस होने लगता है जब उनके खिलाफ जांच शुरू होने हो जाती है।
इसी खेल से जुड़े तत्कालीन छतरपुर डीएफओ एवं वर्तमान अवर सचिव वन अनुराग कुमार के खिलाफ लोकायुक्त संगठन कर रहा है। बालाघाट मुख्य वन संरक्षक अरविंद प्रताप सिंह सेंगर के खिलाफ विभागीय जांच चल रही है। सूत्रों की माने तो एक दर्जन से अधिक डीएफओ के खिलाफ शिकायतें विभागीय विजिलेंस में लंबित है।
सीनियर अधिकारियों ने की है तारीफ..
वनबल प्रमुख असीम श्रीवास्तव द्वारा बुधवार को किए गए आदेश की तारीफ की है। एक सीनियर अधिकारी ने कहा है कि इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और लघु एवं मध्यम कारोबारी भी प्रतिस्पर्धा से जुड़ जाएंगे। यही राज्य शासन की भी मंशा है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक स्तर के एक अधिकारी का कहना है कि इससे फील्ड के अधिकारी अनावश्यक जांच और सप्लायर्स के दबाव से मुक्त रहेंगे।