बीजेपी ने गुजरात के सूरत वाला खेला एमपी में भी दोहराया है। इंदौर से कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय बम ने अपना नामांकन वापस ले लिया है। अब बीजेपी के शंकर लालवानी की राह आसान हो गई है। इंदौर सीट पर इस घटना की पूरी स्क्रिप्ट एमपी बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले कैलाश विजयवर्गीय ने लिखी। सूरत के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद ही उन्होंने तैयारी शुरू कर दी थी। उन्होंने सभी प्रत्याशियों से बात की और लालवानी के लिए रास्ता साफ कर दिया।
MP के कांग्रेस उम्मीदवार अक्षय बम की कैलाश विजयवर्गीय के साथ सोशल मीडिया पर एक तस्वीर भी वायरल हो रही है, जिसमें वे कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला के साथ कार में बैठे नज़र आ रहे हैं।
मोहन सरकार में शहरी आवास एवं विकास और संसदीय कार्य मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने सारी गोटियां फिट करने के बाद केंद्रीय नेतृत्व को जानकारी दी। वहां से हरी झंडी मिलते इसे अंजाम दिया गया।पूरी प्लानिंग इतनी गुपचुप तरीके से की गई कि कांग्रेस को इसकी भनक तक नहीं लगी। सूत्रों के मुताबिक इस योजना को एक होटल में अंजाम दिया गया। अक्षय बम को डर है कि अगर उन्होंने अपना नामांकन वापस लिया तो उनके साथ कुछ बुरा हो सकता है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेता हंगामा करेंगे। इसके बाद विधायक रमेश मेंदोला घटना स्थल पर पहुंचे। अक्षय बम को आश्वासन दिया गया कि सब ठीक हो जाएगा। इसके साथ ही कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय बम अपना नामांकन वापस लेने को तैयार हो गये। अब अन्य अभ्यर्थियों से संपर्क कर उन्हें भी समझाया गया। ऐसी संभावना है कि अन्य पार्टियों के साथ-साथ निर्दलीय उम्मीदवार भी अपना नाम वापस ले सकते हैं। एक भी रुका तो लालवानी की रिकॉर्ड जीत तय है।
इंदौर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए 26 उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र जमा किया। जांच के बाद, कलेक्टर और जिला निर्वाचन अधिकारी आशीष सिंह ने तीन उम्मीदवारों सुनील तिवारी (निर्दलीय), रवींद्र लोखंडे (निर्दलीय) और मोती सिंह (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) के नामांकन रद्द कर दिए। इसके बाद 23 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। आपको बता दें कि इंदौर में 13 मई को वोटिंग होनी है।
ऑपरेशन लोटस मप्र कांग्रेस के लिए अब तक का सबसे बड़ा झटका है। कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय बम पीसीसी चीफ जीतू पटवारी के करीबी माने जाते हैं। पटवारी की पैरवी के बाद ही अक्षय को टिकट मिला। ऑपरेशन लोटस ने एक बार फिर कांग्रेस खेमे में चिंता पैदा कर दी है। इंदौर में हुए बवाल के बाद जीतू पटवारी के नेतृत्व पर भी सवाल उठ रहे हैं।