चंबल इलाके की अहम लोकसभा सीट मुरैना। एक वक्त ऐसा भी था जब इलाका बागियों की बंदूकों की आवाज से थर्राता था। करीब डेढ़ दशक से चंबल के बीहड़ों और चुनावों में डकैतों का कोई खौफ नहीं है। पिछले दो लोकसभा और तीन विधानसभा चुनावों में गोलीबारी, हत्या, बूथ कैप्चरिंग आदि की घटनाएं नगण्य हैं।
मुरैना का क्षेत्र, जिसने बीहड़ों में बंदूकों की "खेती" देखी और देश को कृषि मंत्री भी दिया। साल 2019 में यहां से सांसद चुने गए नरेंद्र सिंह तोमर देश के कृषि मंत्री रहे। अब वह एमपी विधानसभा अध्यक्ष हैं। मुरैना ग्वालियर से 39 किमी दूर है। यह जिले की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर चंबल घाटी की सीमा पर स्थित है। मुरैना ज़िला राम प्रसाद बिस्मिल, नरेंद्र सिंह तोमर, रुस्तम सिंह, अशोक अर्गल और खिलाड़ी पान सिंह तोमर जैसे कई प्रसिद्ध लोगों का गढ़ है।
लोकसभा क्षेत्र में दो जिले शामिल हैं। मुरैना जहां अपने बगावती तेवरों के लिए जाना जाता है, वहीं श्योपुर को शांति का टापू कहा जाता है। वर्ष 1952 में हुए प्रथम आम चुनाव के दौरान यह क्षेत्र भिण्ड जिले से जुड़ा हुआ था। 1957 के परिसीमन में मुरैना को ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र में शामिल कर दिया गया। वर्ष 1967 से श्योपुर जिले को मुरैना में मिलाकर एक नया संसदीय क्षेत्र बनाया गया।
42 साल तक मुरैना सीट एससी के लिए आरक्षित रही, साल 1967 में मुरैना लोकसभा सीट एससी के लिए आरक्षित हो गई। वर्ष 2009 में मुरैना संसदीय क्षेत्र को सामान्य सीट घोषित किया गया। मुरैना लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ है। पिछले 33 साल और सात चुनावों से बीजेपी यहां एकतरफा जीत दर्ज करती आ रही है। अब तक हुए 17 चुनावों में से 10 जनसंघ-बीजेपी के नाम रहे हैं, छह चुनाव कांग्रेस ने जीते हैं। आखिरी बार कांग्रेस ने यह सीट 1991 में जीती थी।
मुरैना लोकसभा सीट पर दलित और ठाकुर जाति के मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। यहां के चुनाव में किसी भी प्रत्याशी की जीत में ब्राह्मण मतदाता भी अहम भूमिका निभाते हैं। मुरैना संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत 8 विधानसभा सीटें हैं। इसमें माधवपुर, विजयपुर, सबलगढ़, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह विधानसभा सीटें शामिल हैं। यहां की 8 विधानसभा सीटों में से 7 पर कांग्रेस का कब्जा है, जबकि एक सीट बीजेपी के पास है।
2019 के जनादेश में बीजेपी के नरेंद्र सिंह तोमर को जीत हासिल हुई। उन्हें 541,689 वोट मिले कांग्रेस के रामनिवास रावत को 4,28,348 वोट मिले। बसपा के करतार सिंह भड़ाना को 1,29,380 वोट मिले।
मुरैना-श्योपुर लोकसभा सीट पर इस बार चुनाव कड़ा हो गया है। दस साल बाद हालात ऐसे हैं कि बसपा ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। कांग्रेस जहां 33 साल बाद इस सीट को जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है, वहीं बीजेपी अपना गढ़ बचाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है।
बीजेपी प्रत्याशी शिवमंगल सिंह तोमर विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के बेहद करीबी माने जाते हैं। उन्होंने भाजपा के आदेश पर दिमनी विधानसभा सीट से पहली बार 2008 का विधानसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में वह अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी रवींद्र सिंह तोमर को मात्र 256 वोटों से हराकर पहली बार विधायक बने। हालांकि, 2013 के विधानसभा चुनाव में उन्हें बसपा उम्मीदवार और 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार गिर्राज दंडोतिया के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा। इससे पहले वह जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन भी रह चुके हैं।
वहीं कांग्रेस उम्मीदवार सत्यपाल सिंह सिकरवार (नीतू) मुरैना जिले की सुमावली सीट से बीजेपी विधायक रह चुके हैं। उमंग सिंघार नीतू की पैरवी कर रहे थे। जबकि जीतू पटवारी जाखड़ा विधायक पंकज उपाध्याय की पैरवी कर रहे थे। नीटू को टिकट देकर कांग्रेस ने मुरैना लोकसभा में ठाकुर मतदाताओं के उत्साह को बढ़ाने और उन्हें लुभाने की कोशिश की है। अब बीजेपी और कांग्रेस से एक ही समुदाय के उम्मीदवार आमने-सामने होंगे। इस सीट पर बसपा प्रत्याशी अहम गेम चेंजर साबित हो सकते हैं।