827 वन ग्राम अब नहीं बन पाएंगे राजस्व ग्राम, अब सुविधाएं देने का हुआ निर्णय


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स्टोरी हाइलाइट्स

मंडला के दो और डिंडोरी के एक गांव राजस्व ग्राम के लिए राजी नहीं ..!

भोपाल: मिशन-2023 में आदिवासियों के वोट बैंक पुनः हासिल करने के लिए राज्य सरकार ने वन ग्रामों को राजस्व गांव बनाने की घोषणा की है. लेकिन इस घोषणा का आमलीजामा में कई कानूनन अड़चनें हैं. यानि अब राजस्व ग्राम बनाने का खटाई में पड़ गया है. इस वजह से अब राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि वन ग्रामों में सुविधाएं राजस्व गांव जैसी मिलेगी पर लीगल स्टेटस वन ग्राम ही रहेगा. वन ग्रामों के आदिवासी न तो उसे बेंच सकेंगे और न ही बेटों के बीच वन भूमि का बंटवारा कर सकेंगे. दिलचस्प पहलू यह है कि  राज्य सरकार के आधे-अधूरे फैसले से नाराज मंडला के 2 गांव और डिंडोरी के वन ग्राम के लोगों ने राजस्व ग्राम के स्टेटस से नाराज हैं और वे वन ग्राम में रहकर ही खुश हैं.

20 जुलाई 23 को राजभवन में हुई उच्च स्तरीय बैठक में  जंगल महकमे के सीनियर अधिकारियों से चर्चा के बाद यह निष्कर्ष निकला कि 827 वन ग्रामों को राजस्व गांव बदलने के लिए 240431 हेक्टेयर वन भूमि को डिनोटिफाई करना होगा. डिनोटिफाई करने से पहले राज्य सरकार को इतनी ही राजस्व भूमि वन विभाग को स्थानांतरित करनी होगी. यही नहीं, वन संरक्षण एक्ट के अंतर्गत वन भूमि को डिनोटिफाई करने से पहले राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट से अनुमति भी लेनी होगी. वन भूमि को डिनोटिफाई के लिए कई मामले सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. यही कारण है कि मामला 2018 से लंबित है.

राजस्व गांव की सुविधाएं देने में नहीं होगी कोई अड़चन

कानूनी पेंचदगियों से बचने के लिए राज्य शासन में वन ग्रामों में ही राजस्व सुविधा उपलब्ध कराने का फैसला लिया है. इसके तहत वन ग्रामों में सड़क, बिजली और पानी जैसी जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जा सकेंगी. इसके अलावा पट्टे की वन भूमि को बैंक में गिरवी रखकर कर्जा लेने की सुविधाएं भी दी जा रही है. बस सरकारी दस्तावेज में यह सभी गांव वनग्राम ही कहलाएंगे. अधिकारियों के अनुसार वन भूमि का भूस्वामी आधिपत्य भूमि का नामांतरण नहीं करा पाएगा. यानी वह  अपने बेटों के बीच भूमि का बंटवारा नहीं कर सकेगा. भूस्वामी के निधन के बाद उसके बड़े बेटे के नाम ही वन भूमि रहेगी. इस प्रावधान से वन ग्रामों में अतिक्रमण का दायरा बढ़ेगा.

303 वन ग्रामों को लेकर ऊहापौह की स्थिति

बैठक में जंगल महकमे के सीनियर अधिकारियों ने अपने प्रजेन्टेशन में बताया कि वन विभाग के प्रबंधन एवं नियंत्रण के 925 वन ग्रामों में से राष्ट्रीय उद्यानों, सेंचुरी विस्थापित कुल 98 वन ग्रामों को छोड़कर शेष 827 वन ग्रामों को राजस्व गांव बनाए जाने संबंधी प्रस्ताव वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 के प्रावधानों के तहत वर्ष 2002 से 2004 के बीच भारत सरकार, पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय नई दिल्ली को भेजे गए थे. इनमें से 310 वन ग्रामों को राजस्व गांव बनाए जाने की सैद्धांतिक स्वीकृति भी प्राप्त हुई. लेकिन स्वीकृति की शर्तें अव्यावहारिक होने के कारण उसका पालन प्रतिवेदन तब समय भारत सरकार को प्रेषित नहीं किया जा सका. वह स्वीकृति के आदेश भी भारत सरकार ने 2004 में स्थगित कर दिए.

सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश का पालन करना जरूरी

अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम 2006 की धारा-3 (1) (ज) में भी वन ग्रामों को परिवर्तन करने के अधिकार का उल्लेख है. लेकिन विधि विभाग ने 12 दिसंबर 16 को अपनी अभिमत दी कि वन संरक्षण अधिनियम 1980 के अंतर्गत बिना भारत सरकार के पूर्व अनुमति के वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. अधिनियम में वर्णित प्रावधानों एवं सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देश का अनुपालन किया जाना उचित होगा.