MP News: धार भोजशाला सर्वे रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंपे जाने के लिए ASI को 2 हफ्ते का समय और दिया गया है। अब एएसआई 15 जुलाई तक रिपोर्ट सौंप सकता है। रिपोर्ट मिलने के बाद हाईकोर्ट मामले की अगली सुनवाई 22 जुलाई को करेगा। भोजशाला सुनवाई को लेकर यह दिन हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस के लिए बड़ा दिन बनता जा रहा है।
भोजशाला में 22 मार्च से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा शुरू किया गया सर्वेक्षण 98 दिनों के बाद 27 जून को समाप्त हुआ। सर्वे के बाद एएसआई को 2 जुलाई को हाई कोर्ट की इंदौर बेंच के सामने रिपोर्ट पेश करनी थी, जिस पर 4 जुलाई को सुनवाई होनी थी।
लेकिन सर्वे पूरा होने के बाद एएसआई ने जीपीएस और जीपीआर रिपोर्ट तैयार करने के लिए 2 जुलाई को आवेदन किया और रिपोर्ट सौंपने के लिए 4 हफ्ते का और समय मांगा। गुरुवार 4 जुलाई को होने वाली सुनवाई में हाई कोर्ट की डबल बेंच ने एएसआई को रिपोर्ट पेश करने के लिए दो हफ्ते का समय दिया और 15 जुलाई तक सर्वे रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया और मामले की अगली सुनवाई 22 जुलाई को तय की।
भोजशाला पर अधिकार को लेकर हिंदू और मुस्लिम गुटों के बीच चल रहे विवाद में जैन समुदाय भी कूद पड़ा है। सर्वेक्षण के दौरान खुदाई में तीर्थंकर नेमिनाथ की दो मूर्तियां और जैन समुदाय के कुछ प्रतीक चिन्ह मिलने के बाद विश्व जैन एसोसिएशन के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सलेकचंद जैन की ओर से भोजशाला पर दावा करते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी।
लेकिन इस याचिका के विरोध में धार का जैन समाज खुद अपनी संस्था के खिलाफ खड़ा हो गया है। पिछले मंगलवार को पूरा जैन समुदाय इकट्ठा हुआ और दावा किया कि भोजशाला हिंदू समुदाय की है।
आपको बता दें, कि एएसआई सर्वे में शामिल भोजशाला मुक्ति मंच के संयोजक गोपाल शर्मा के मुताबिक मौजूदा सर्वे में 1000 से ज्यादा अवशेष मिले हैं। जिसमें सनातन धर्म के तमाम अवशेष मिले हैं।
भगवान कृष्ण की मूर्तियाँ, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, हनुमान की पूर्ण मूर्तियां, पशुपतिनाथ की 70 से अधिक ऐसी पूर्ण मूर्तियां और नेमिनाथ की दो मूर्तियां भी मिली हैं। 1000 से अधिक ऐसे अवशेष मिले हैं जो भोजशाला की महिमा और मुगल आतंक की कहानी कहते हैं।
1902 में अंग्रेजों ने पहला सर्वेक्षण कराया। राजा भोज ने जब इसे बनवाया था, तब उसे सरस्वती कंथावरण कहा जाता था। अंग्रेजों द्वारा सर्वेक्षण कराने के बाद इसका नाम भोजशाला रखा गया। जैसे ही आप भोजशाला में प्रवेश करते हैं, बाईं ओर दो शिलालेख दिखाई देते हैं, एक शिलालेख की पहली पंक्ति में सरस्वतीये नमः लिखा है जबकि दूसरे शिलालेख में ओम नमः शिवाय लिखा है।
बसंत लीला और राम प्राचीन भाषा में लिखे गए हैं। 13वीं शताब्दी में कवि मदन ने राजभोज की विजय गाथा नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने लगभग 17 शिलालेख लिखे, जिनमें से 2 शिलालेख विद्यमान हैं।