पहली बार कमिश्नर ने किया रेंजर को निलंबित


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स्टोरी हाइलाइट्स

निलंबन की प्रक्रिया और सीएफ की क्षमता पर उठते सवाल..!!

भोपाल: जंगल महकमे में ऐसा पहली बार हुआ, जब एक संभाग आयुक्त ने रेंजर के निलंबन का फरमान जारी कर दिया। नियमानुसार तो संभाग आयुक्त रेंजर के निलंबन का प्रस्ताव अपर मुख्य सचिव वन को भेज सकता है. संभाग आयुक्त के निलंबन के बाद वन संरक्षक एवं  प्रमोटी आईएफएस मस्तराम बघेल क्षमता पर सवाल खड़े होने लगे। सवाल उठाने वाले आईएफएस अफसरों का तर्क है कि यदि वन संरक्षक अपने संभाग आयुक्त को ब्रीफ किया होता कमिश्नर की ओर से निलंबन की कार्रवाई रुक जाती। फिलहाल वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव कमिश्नर के निलंबन को लेकर परीक्षण कर रहे हैं और अपनी रिपोर्ट एसीएस को भेजेंगे।

संभाग आयुक्त उज्जैन संजय गुप्ता ने नीमच वन मंडल में पदस्थ रेंजर विपुल प्रभात करौरिया को इस बात को लेकर निलंबन आदेश जारी कर दिया कि नीमच में वन विभाग के वर्किंग प्लान में दर्ज 18 हेक्टेयर के लगभग वन भूमि को उद्योग विभाग द्वारा सनलाईट एवं एल्कोलाईट प्राईवेट लिमिटेड कम्पनी को आवंटित भूमि पर निर्माण कार्य जाकर रुकवा दिया।

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रेंजर की इस कार्यवाही से एसडीएम और कलेक्टर नाराज हुए और उन्होंने संभाग आयुक्त संजय गुप्ता को रिपोर्ट भेजी कि डीएफओ और रेंजर आवंटित भूमि को वन भूमि बता रहें है, वह राजस्व भूमि है। कलेक्टर की रिपोर्ट के अनुसार रेंजर ने निर्माण कार्य रोकने के साथ-साथ कम्पनी के कुछ कर्मचारियों के मोबाईल छिनकर ले गए तथा उनके वाहनों के गाड़ियों की चाबी छिनकर ले गए तथा उनपर जबरदस्ती दबाव बनाकर दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवा लिए। रेंजर के कृत्य को वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशों के प्रतिकुल तथा कदाचरण की श्रेणी में आता होने से इनके विरूद्ध म. प्र. सिविल सेवा (वर्गीकरण नियंत्रण तथा अपील) नियम 1966 के तहत कठोर दण्डात्मक कार्यवाही करते हुए निलंबित कर दिया गए।

मैहर के एसडीओ और रेंजर का मिला स्टे

हाई कोर्ट जबलपुर ने राज्य शासन द्वारा मैहर एसडीओ यशपाल मेहरा और रेंजर सतीश चंद्र मिश्रा को निलंबित किए जाने पर स्टे दे दिया है। उल्लेखनीय है कि मैहर अल्ट्रा ट्रेक सीमेंट फैक्ट्री द्वारा 70 एकड़ जमीन पर कब्जा किए जाने के खिलाफ एसडीओ और रेंजर मैहर द्वारा कार्रवाई करने पर राज्य शासन ने उन्हें निलंबित कर दिया था। शासन की इस निर्णय के खिलाफ  मुख्यालय से लेकर मैदान तक जबरदस्त असंतोष था। दरअसल, 1982 से 24फरवरी 20 24 के पहले किसी भी डीएफओ, एसडीओ और रेंजर ने मैहर सीमेंट फैक्ट्री के खिलाफ अतिक्रमण संबंधित आपराधिक  दर्ज नहीं किया था। पहली बार प्रकरण दर्ज हुआ और शासन द्वारा उन्हें पुरस्कृत करने के बजाय निलंबित कर दिया।