कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुरेश पचौरी और उनके समर्थक बीजेपी में शामिल


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स्टोरी हाइलाइट्स

पचौरी के बीजेपी में जाने पर कांग्रेस के चुनावी समीकरण में कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि प्रदेश कांग्रेस के ऐसे नेता हैं, जिन्होंने कभी लोकसभा और विधानसभा का चुनाव नहीं जीता है। चाहे भले ही राजनीतिक माहौल कांग्रेस के अनुकूल क्यों ना हो..!!

भोपाल: चुनावी मौसम में अवसरवादी नेता दल-बदल करने में कोई गुरेज नहीं करते है। कांग्रेस की राजनीति में अप्रासंगिक हो चुके पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी अपने समर्थकों सहित भाजपा में शामिल हो गए हैं। पचौरी के बीजेपी में जाने पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने अजब बयान दिया है। पटवारी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि भार उतरा। यह बात भी सच है कि पचौरी के बीजेपी में जाने पर कांग्रेस के चुनावी समीकरण में कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि प्रदेश कांग्रेस के ऐसे नेता हैं, जिन्होंने कभी लोकसभा और विधानसभा का चुनाव नहीं जीता है। चाहे भले ही राजनीतिक माहौल कांग्रेस के अनुकूल क्यों ना हो।

शनिवार को भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, धार से पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह कालूखेड़ी, पूर्व विधायक संजय शुक्ला, पूर्व विधायक विशाल पटेल, पिपरिया से पूर्व विधायक अर्जुन पलिया, एनएसयूआई के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अतुल शर्मा, भोपाल शहर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष कैलाश मिश्रा, डॉ आलोक चंसोरिया, योगेश शर्मा, सुभाष यादव, दिनेश ढिमोले और सीहोर जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष जसपाल सिंह अरोरा प्रमुख हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के अध्यक्ष बनने के बाद से ही पार्टी में भगदड़ मचने लगी है। एक के बाद एक नेता पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। इसके पहले जबलपुर महापौर जगत बहादुर सिंह ‘अन्नू’,  डिण्डौरी जिला पंचायत अध्यक्ष, उपाध्यक्ष अंजू ब्यौहार, सिंगरौली जिला पंचायत उपाध्यक्ष अर्चना, डिण्डौरी के पूर्व जिला अध्यक्ष, जिला पंचायत सदस्य, पार्षद, जनपद पंचायत उपाध्यक्ष, जनपद सदस्य, पूर्व जनपद सदस्य, यूथ कांग्रेस के जिला उपाध्यक्ष, ब्लॉक प्रभारी सहित समाज सेवियों ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की।

कांग्रेस में पटवारी की स्वीकार्यता नहीं

पार्टी हाई कमान ने विधानसभा में पराजित नेता जीतू पटवारी को संगठन की बागडोर तो सौंप दी है किन्तु नेता और कार्यकर्ताओं के बीच उनकी स्वीकार्यता नहीं है। पार्टी के नेता और कार्यकर्ता उन्हें भी कांग्रेस कमलनाथ की तरह ही संगठन चलाने का आरोप लगा रहे हैं। यानी दूर-दराज से आए पार्टी नेताओं से मुलाकात का समय नहीं है। किसी से मिलते भी हैं तो चंद मिनट बात करके उन्हें रुखसत कर देते हैं। अब तक जितने भी  छोड़ी है, उन सभी ने पटवारी के नेतृत्व पर सवाल खड़े किए हैं। प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से कांग्रेस में कोई बदलाव नहीं हो रहा है। इसके कारण भी पार्टी के नेता हार की हताशा से उबार नहीं पा रहे हैं। कमलनाथ से बागडोर सीने पर पार्टी के नेता और कार्यकर्ता है जितने खुश नजर आ रहे थे अब पटवारी की नेतृत्व में उतने ही दुखी नजर आ रहे हैं। 

मीडिया विभाग में भी आंतरिक कलह

कांग्रेस के मीडिया विभाग में भी आंतरिक कलह की कोलाहल सुनाई दे रही है। मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा और प्रवक्ताओं के बीच से और मौत का खेल चल रहा है। यही कारण है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या प्रिंट मीडिया पार्टी हर मुद्दे पर कांग्रेस का पक्ष रखने में असफल नजर आती है। सरकार और भाजपा को घेरने की कोई रणनीति नजर नहीं आता जबकि लोकसभा चुनाव की घोषणा कभी भी हो सकती है। आईटी सेल के प्रभारी अभय तिवारी पर हमेशा बीजेपी के साथ साठगांठ के आरोप लगाते रहे हैं। यही नहीं, तिवारी एक आरोप आम है कि वह किसी भी कांग्रेस नेता का फोन नहीं उठाते हैं। जबकि भाजपा का मुकाबला करने के लिए अभय तिवारी को मुद्दे और उससे संबंधित कंटेंट उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी है। कांग्रेस के एक प्रवक्ता पर तो यह भी आरोप है कि वे भाजपा के एक दबंग मंत्री के पैरोल पर काम कर रहे हैं।