भोपाल: बड़े ठेकेदारों की लाबी के दबाव में आकर शासन ने वन विभाग में डेढ़ सौ साल पुरानी स्थापित व्यवस्था को बदलते हुए ठेके पर बंद की कर करने का फरमान जारी किया है। आदेश जारी होने के साथ ही विरोध के श्वर सुनाई देने लगे हैं। मुख्यालय में पदस्थ प्रधान मुख्य वन संरक्षक से लेकर रेंजर्स एसोसिएशन ने शासन के नए फरमान को जंगल और वनवासियों के खिलाफ बताया है। रेंजर्स एसोसिएशन ने अपनी तीखी प्रक्रिया में कहा है कि सरकार का यह फरमान गरीब मजदूरों और जंगल में रहने वाले आदिवासियों के अधिकारों पर डाका डालने जैसा है। उल्लेखनीय है कि वन क्षेत्रों में किये जाने वाले कार्य ठेके से कराने का विचार गुजरात से लिया गया है जहां ठेके से सभी कार्य होते हैं।
वन विभाग ने 27 मार्च को एक आदेश जारी कर समस्त वनमंडलों एवं वन्यप्राणी क्षेत्रों में (कोर क्षेत्र छोड़कर) फेंसिंग कार्य, वायरवैड फेंसिंग, चेनलिंक फेंसिंग, पशु अवरोधक खंती एवं पशु अवरोधक दीवार का निर्माण कार्य ठेके पर कराने के निर्देश दिए हैं। आदेश में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि 2 लाख से अधिक लागत के समस्त भवन निर्माण एवं मरम्मत कार्य निविदा के जरिए कराया जाए। इसके अलावा नर्सरी में क्षेत्र तैयारी/गढ्ढा खुदाई कार्य पौधा रोपण लगवाई एवं अधोसंरचना विकास अंतर्गत पॉली हाउस/मिस्ट चेम्बर का निर्माण के कार्य भी ठेके से कराया जाय।
मुख्यालय में पदस्थ अधिकारी भी हतप्रभ रहे
ठेकेदारी से काम करने का प्रस्ताव 2023 में पूर्व बनमनखी विजय शाह ने रखा था। तब प्रधान मुख्य वन संरक्षक और अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक स्तर के अधिकारियों ने एक स्वर में विरोध किया था। विरोध के साथ तत्कालीन पीसीसीएफ विकास चितरंजन त्यागी ने तर्क दिया गया था कि यह सामुदायिक संसाधन है। स्थानीय लोगों को रोजगार प्राप्त होता है और उनका जंगलों से जुड़ाव रहता है। ठेकेदारी लागू होने से वन विभाग में स्थापित इकोसिस्टम धुस्त हो जाएगा।
अधिकारियों का यह तर्क भी रहा कि ठेकेदार समयबद्धता के साथ काम नहीं कर पाएगा। जंगल महकमा वनग्रामों में रहा रहे वनवासियों को रोजगार उपलब्ध कराता है। सुदूर जंगल और नक्सलाइट एरिया में ठेकेदार कैसे काम करेगा वहां तो विभाग के लोगों से ही काम कराना होगा।
वन ग्रामों से होगा आदिवासियों का पलायन
वन विभाग के नए आदेश के लागू होने पर जंगल क्षेत्र के आसपास रहने वाले गरीब मजदूरों और आदिवासियों खासतौर पर वन ग्रामों के रहवासियों के पलायन की संभावना बढ़ जायगी। इसके अलावा वन विभाग में जो भी काम होते हैं वो एक निश्चित समय-सीमा में स्थानीय मजदूरों और वन क्षेत्र में रहने वाले ट्राइब्स से उनके तकनीकी और कोशलीय ज्ञान और एक्सपीरियंस के आधार पर कराए जाते हैं। ठेके से कराए जाने पर जहां समय-सीमा पर कार्य नहीं हो पाएंगे, वही ठेकेदार अपने मजदूरों और मशीनों से काम कराएगा न कि स्थानीय लेबर को रोजगार देगा। इसके अलावा ठेकेदारी प्रथा से लागत बढ़ेगी क्योंकि इसमें ठेकेदार का कमीशन भी जुड़ेगा।
ये कार्य जो विभागीय स्तर पर कराये जाने हैं
- रोपणियों में पौधा तैयारी एवं रख-रखाव कार्य।
- वन्यप्राणी क्षेत्रों में कोर एरिया के समस्त कार्य।
- मुनारा, फायर लाईन कटाई/रख-रखाव कार्य।
- वनमार्ग उन्नयन/सुदृढ़ीकरण कार्य।
- अन्य प्रतिदिन के कार्य जैसे प्रशिक्षण, कार्यशाला, अनुभूति जो वित्तीय अधिकार पुस्तिका के प्रावधानों के अनुसार सम्पन्न होंगे।