मप्र सरकार ने लोक निर्माण विभाग को हर तरह से ‘हल्का’बनाने का अभियान चला रखा है, कभी बजट के नाम पर अत्यधिक कंजूसी तो कभी योजनाओं की बंदरबांट व जूनियर अफसरों को सीनियर्स के सिर पर बैठाने की परंपरा ने विभाग के अभियंताओं के मनोबल तोड़ रखा है। हाल के दिनों में खास तौर के अफसरों को नवाजने के अभियान से विभाग के हर अफसर हैरान है। इस बार 'सरकार' ने अधीक्षण यंत्री शालिगराम बघेल को इंजीनियर इन चीफ बनाकर बड़ा झटका दे दिया है।
विभागीय स्तर पर इसे लेकर जमकर कानाफूसी चल रही है और बघेल का 'चैनल' तलाशा जा रहा है। माना जाता है कि इसमें राजनीतिक तौर पर भी गुणाभाग लगाया गया है। ईऐनसी का पद दो दिन से खाली था, दक्ष इंजीनियर माने जाने वाले नरेंद्र कुमार के रिटायर होने के बाद अटकलें यह थीं कि सरकार उन्हें छह महीने संविदा नियुक्ति देगी या आरके मेहरा, जीपी मेहरा, संजय खांडे का नंबर लगेगा।
लेकिन सरकार ने पहली बार अधीक्षण यंत्री को विभाग के मुखिया का प्रभार दे दिया और ईएनसी स्तर के बघेल के ही कई सीनियर उनके अधीन हो गये हैं। सूत्र बताते हैं कि विभाग में पहले ही खास किस्म के अफसरों की तूती से बहुत सारे अन्य 'आम अफसर' परेशान व कई बार 'प्रताड़ित' तक थे, लेकिन बघेल के मामले में न तो विभागीय मंत्री कुछ समझ पाये और न ही अन्य दावेदार खास बात यह है कि जिस अधीक्षण अभियंता स्तर के बघेल को ईएनसी का प्रभार दे दिया गया है, उनसे भी सीनियर अधीक्षण अभियंता दीपक असाई व रूपसिंह भी पिछड़ गये हैं, यानि जूनियर एसई को सीनियर मोस्ट पद के काबिल माना गया।