भोपाल: जंगल महकमे में ठेकेदारी प्रथा को लेकर असमंजस की स्थिति बरकरार है। ऊहापोह की स्थिति में वन मंत्रालय ने दो अलग-अलग आदेश जारी कर 31 जुलाई तक वृक्षारोपण एवं अन्य विभागीय कार्य कराए जाने के लिए कहा गया है।
4 जून को जारी आदेश में कहा गया है कि वर्षा ऋतु में वृक्षारोपण एवं अन्य विभागीय कार्य की समय-सीमा को दृष्टिगत रखते हुये आगामी माहों में वर्षा ऋतु के पूर्व जो वृक्षारोपण से संबंधित विभागीय कार्य किए जाने हैं वे पूर्व प्रचलित प्रथा के अनुसार ही 31 जुलाई तक संपादित किए जावें। इसके पश्चात होने वाले कार्य विभागीय आदेश अथवा निर्देश 19 अक्टूबर 23 व 27 मार्च 24 के अनुसार ही किए जायें।
6 जून को जारी निर्देश में अतिरिक्त विदोहन के लिये पिछले वर्ष काटे गये कूपों में पुनरुत्पादन के कार्य कराये जाने की आवश्यकता को देखते हुये SCI (चयन-सह-सुधार वृत) तथा IWC (सुधार कार्य वृत) कार्य वृत्तों से संबंधित कार्य विभागीय रूप से प्रचलित प्रथा अनुसार संपादित किए जाएं। वैसे भी बासों के भिर्रो की सफाई हो या फिर पेड़ों की कटाई के मार्किंग का काम विभाग के अधिकारी ही बखूबी से कर सकते हैं। ठेकेदार को टेक्निकल नॉलेज नहीं होगा। यदि ठेकेदारों को दे दिया गया तो जंगल के साथ-साथ बासों के जंगल भी बर्बाद हो जाएंगे।
मंत्री पहले ही 31 जुलाई तक स्थगित रखने की नोटशीट लिखी है
वन मंत्री नागर सिंह चौहान ने पहले ही अपर मुख्य सचिव वन जेएन कंसोटिया के ठेके पर वानिकी कार्य कराने जाने संबंधित जारी आदेश को 31 जुलाई तक स्थगित करने के लिए नोटशीट लिख चुके है। वन विभाग के सीनियर अधिकारियों का एक ग्रुप अपने मंत्री से मुलाक़ात कर ठेके से वानिकी कार्य कराए जाने के दुष्परिणामों से अवगत कराएगा। साथ ही उनसे यह भी मांग करेगा कि जिन राज्यों में यह प्रथा लागू है, वहां का अध्ययन करने के बाद ही इस पर निर्णय ले। यदि जरुरी हो तो उसे पहले पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में कुछ वन मण्डलों में किया जाय। उसके बाद गुण-दोष के आधार पर निर्णय लिया जाय।