महाकाल की सवारी में इस्लामिक शब्द- 'शाही' के इस्तेमाल पर आपत्ति से बढ़ा बवाल


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स्टोरी हाइलाइट्स

विद्वानों, संस्कृत विद्वानों, अखाड़ों के साधुओं और सनातन धर्म के अनुयायियों का मानना ​​है कि 'शाही' शब्द इस्लामी आक्रमणकारियों और राजशाही को संदर्भित करता है..!!

महाकाल नगरी उज्जैन में इन दिनों आक्रोश फैला हुआ है। यह गुस्सा सड़कों पर उतरने के लिए नहीं बल्कि विद्वानों के बीच चर्चा के जरिए व्यवस्था में बदलाव के लिए है। ऐसा इसलिए क्योंकि उज्जैन के राजा और ब्रह्मांड के अधिपति महाकाल की सवारी को 'शाही सवारी' कहा जाता है। विद्वानों, संस्कृत विद्वानों, अखाड़ों के साधुओं और सनातन धर्म के अनुयायियों का मानना ​​है कि 'शाही' शब्द इस्लामी आक्रमणकारियों और राजशाही को संदर्भित करता है।

इसलिए महाकाल की सवारी को 'शाही सवारी' न कहा जाए। इसके स्थान पर संस्कृत या हिन्दी का कोई उपयुक्त शब्द लाया जाना चाहिए। विद्वानों का यह भी कहना है कि इस बदलाव के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को आगे आना होगा, तभी सरकारी दस्तावेजों और आम लोगों की जिंदगी से 'शाही' शब्द हटाया जाएगा।

आपको बता दें कि इस बार सावन-भादौ की आखिरी सवारी (सोमवार, 2 सितंबर) निकलेगी। यह साल की आखिरी और भव्य महाकाल की सवारी होगी, जिसके दर्शन के लिए देशभर से हजारों श्रद्धालु आएंगे। इस आखिरी सवारी से पहले पंडित उसे 'शाही' कहने से नाराज हैं।

हर साल श्रावण-भादो माह के प्रत्येक सोमवार को महाकाल की सवारी निकलती है। इसमें महाकाल पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं और प्रजा का हाल जानते हैं। महाकाल की अंतिम सवारी सबसे भव्य होती है इसलिए इसे 'शाही सवारी' कहा जाता है। लेकिन 'शाही' कहे जाने पर उज्जैन के अखाड़ों के संतों, विद्वानों और साधुओं में असहमति और गुस्सा है।

उनका कहना है कि इस्लाम के 'शाही' शब्द को महाकाल की सवारी के साथ जोड़ना गलत है, वही महाकालेश्वर मंदिर जिस पर 1234 में क्रूर इस्लामिक शासक इल्तुतमिश ने हमला किया और कत्लेआं किया। इसलिए इसे तुरंत हटाकर संस्कृत या हिंदी में एक शब्द जोड़ा जाना चाहिए, जो सही मायने में सवारी की पवित्रता और भव्यता को व्यक्त कर सके।

कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन के निदेशक डॉ. गोविंद गांधी कहते हैं-महाकाल की सवारी को शाही बताना अपमान है। शाही मुगलों और यवनों का शब्द है। यह पराधीनता के प्रभाव से प्रचलन में आया होगा। तब जब लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया तो धर्मग्रंथों ने भी इसमें हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन अब इसे हटाना होगा। इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।

महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जैन के पूर्व कुलपति डॉ. मोहन गुप्ता कहते हैं-शाही शब्द सामंती परंपरा का प्रतीक है। महाकालेश्वर कोई राजा या सामंत नहीं बल्कि भगवान हैं। अतः शाही शब्द हटा दिया जाना चाहिए।

ऋषि संस्कृति गुरुकुल के परमाचार्य डॉ. देवकरण शर्मा कहते हैं- शाही शब्द दबाव और प्रभाव के कारण सवारी से जुड़ा होगा, जो एक अन्य मानसिकता के कारण लोकप्रिय प्रयोग में आया। इस्लामिक रंगत वाले इस शब्द को तुरंत हटाया जाना चाहिए। शाही का अर्थ है शासक, जबकि महाकाल शाश्वत देवता हैं।