सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी से उत्पन्न अपशिष्ट को धार के पीथमपुर में निपटाने के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर केंद्र, मध्य प्रदेश सरकार और मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया है कि यह कचरा क्षेत्र के लिए विकिरण खतरा पैदा कर सकता है। इस मामले की अगली सुनवाई 24 फरवरी को होगी।
आवेदन के अनुसार, अपशिष्ट निपटान स्थल से एक किलोमीटर के दायरे में चार से पांच गांव हैं और एक गांव स्थल से 250 मीटर के दायरे में है। ग्रामीणों को अभी तक बाहर नहीं निकाला गया है, जिससे इन गांवों में रहने वाले लोगों के जीवन और स्वास्थ्य को बड़ा खतरा पैदा हो गया है।
याचिका में कहा गया है कि इंदौर शहर पीथमपुर से 30 किलोमीटर दूर है, जो मध्य प्रदेश का घनी आबादी वाला शहर है। निपटान की शर्तों के अनुसार, न तो कोई एसओपी है और न ही ऐसी कोई रिपोर्ट है जो यह दर्शाती हो कि कोई सफल परीक्षण किया गया है। इसके अलावा, जल और मृदा प्रदूषण की निगरानी के लिए कोई समिति गठित नहीं की गई है और प्रदूषित जल के लिए कोई उपचार संयंत्र प्रस्तावित नहीं है।
इसके अलावा, इंदौर शहर को जलापूर्ति करने वाली नदी के पास अपशिष्ट निपटान का निर्णय लिया गया है। इसके अलावा इस क्षेत्र में आपदा प्रबंधन, जागरूकता और चिकित्सा सुविधाएं भी स्थापित नहीं की गई हैं।
2023 में सीपीसीबी की निगरानी में सुरक्षा उपायों और परीक्षण के लिए केंद्र द्वारा 126 करोड़ रुपये मंजूर किए गए, फिर भी जमीन पर कुछ नहीं किया गया। यह राज्य सरकार की लापरवाही है और बताया गया है कि 337 मीट्रिक टन कचरे को बिना उचित सुरक्षा और पुनर्वास उपायों के पीथमपुर ले जाया जा रहा है।
दरअसल, भोपाल गैस त्रासदी से उत्पन्न हजारों टन जहरीले कचरे का अभी तक निपटान नहीं किया जा सका है। हालांकि, इस कचरे के निपटान के लिए मध्य प्रदेश सरकार और पर्यावरण मंत्रालय ने पीथमपुर को निपटान स्थल के रूप में चुना और इसके लिए आदेश उच्च न्यायालय को हाल की रिपोर्ट के बजाय 2015 में किए गए परीक्षणों की रिपोर्ट दिखाकर प्राप्त किया गया।
इस अपील से पहले, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका दायर करके मामला उठाया गया था, जिस पर SC ने उन्हें उच्च न्यायालय के समक्ष अपना मामला प्रस्तुत करने को कहा था। जबकि यह याचिका मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के निपटान आदेश को चुनौती देते हुए SC में दायर की गई।