लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ की 8 सीटों पर 13 मई को मतदान हो रहा है। मौजूदा स्थिति पर नजर डालें तो सभी 8 सीटों पर बीजेपी मजबूत दिख रही है, लेकिन इनमें से तीन सीटों पर हवा बदल गई है।
सबसे चर्चित सीटें इंदौर, खरगोन और रतलाम हैं। इंदौर में माहौल तो नहीं बदला, लेकिन नोटा ने मुद्दा बदल दिया है। खरगोन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी के दौरे के बाद हालात बदल गए हैं। अगर कांग्रेस यहां के आदिवासी मतदाताओं में सेंध लगाने में सफल रही तो उसे फायदा हो सकता है। साथ ही रतलाम में मोदी की गारंटी और स्थानीय मुद्दों को लेकर भी लड़ाई चल रही है।
RSS के जनसंपर्क का असर इस क्षेत्र की तीन आरक्षित सीटों पर भी देखने को मिल रहा है। बीजेपी पीएम मोदी के चेहरे और विकास के मुद्दे पर मैदान में है। साथ ही कांग्रेस संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने जैसे मुद्दे उठा रही है, लेकिन इसका असर होता नहीं दिख रहा है।
इंदौर: कांग्रेस के मैदान छोड़ते ही ऐसा लग रहा है कि बीजेपी सांसद शंकर लालवानी के लिए रास्ता साफ हो गया है। लेकिन, इस पूरे घटनाक्रम के बाद पार्टी में सवाल ये है कि आखिर इस दलबदल की जरूरत क्या थी? पहली बार बीजेपी को इससे नुकसान का डर है। यही वजह है कि बीजेपी प्रत्याशी शंकर लालवानी ने अपना प्रचार अभियान तेज कर दिया है। हालांकि नोटा का समर्थन करने के बावजूद कांग्रेस मुकाबले में नहीं है।
उज्जैन: अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर कांग्रेस को ज्यादा उम्मीद नहीं है। ये मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का गृहनगर भी है। चुनाव से कुछ दिन पहले कांग्रेस प्रत्याशी महेश परमार ने शिप्रा नदी में प्रदूषण का मुद्दा उठाकर सुर्खियां बटोरी थीं। हालाँकि, वह इसे मुद्दा नहीं बना सके। यहां बीजेपी का कैडर सबसे मजबूत है। दलित बहुल इलाकों में आरक्षण-संविधान पर चर्चा तो चल ही रही है।
रतलाम: इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। भील और भिलाला के बीच लड़ाई तो है ही, दो पत्नियों वाले बयान से भूरिया एक बार फिर सुर्खियों में हैं, वे किसी भी कीमत पर चुनाव को स्थानीय फैक्टर पर रखना चाहते हैं। बीजेपी यहां मोदी की गारंटी पर भरोसा कर रही है और उसने तीन मंत्रियों चेतन कश्यप, नागर सिंह चौहान और निर्मला भूरिया को इसे जनता तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी है।
खंडवा: कांग्रेस के नरेंद्र पटेल की गुर्जर मुहिम सफल होती नजर नहीं आ रही है। उनके लिए पूर्व मंत्री अरुण यादव और पूर्व विधायक राजनारायण सिंह सक्रिय हैं। बुरहानपुर में मुस्लिम मतदाताओं का रुझान कांग्रेस की ओर नजर आ रहा है। वहीं राम मंदिर और 370 जैसे मुद्दे सीधे तौर पर बीजेपी को फायदा पहुंचा रहे हैं। उन्होंने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है।
खरगांव: बीजेपी सांसद गजेंद्र पटेल के खिलाफ कांग्रेस ने पोरल खराटे को टिकट देकर झटका दिया। यदि पोरालाल बड़वानी-सेंधवा के आदिवासी मतदाताओं में पैठ बनाते हैं तो नतीजे चौंकाने वाले भी हो सकते हैं। हाल ही में यहां पीएम मोदी और राहुल गांधी के दौरे हुए थे। इसका असर इलाके में देखने को मिल रहा है। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में भी अच्छा प्रदर्शन किया है, इसलिए उसे काफी उम्मीदें हैं।
देवास: यहां भी वोटों का ध्रुवीकरण देखने को मिल रहा है। भाजपा प्रत्याशी महेंद्रसिंह सोलंकी कट्टर हिंदुत्व के एजेंडे पर हैं। रैलियों में पोस्टरों पर 'जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे' जरूर दिखता है। कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन वर्मा और बीजेपी के दीपक जोशी जैसे नेता देवास, सोनकच्छ, खातेगांव, हाटपिपल्या जैसे इलाकों में कोशिश कर चुके हैं लेकिन माहौल जस का तस है।
मंदसौर: राजस्थान से सटी इस सीट पर बीजेपी मजबूत दिख रही है। यहां से मुस्लिम लोगों के धर्म परिवर्तन की खबरें आने लगीं और यह क्रम चुनाव के दौरान भी हुआ। बीजेपी इसे भुनाने की कोशिश कर रही है और उसे फायदा भी हो रहा है। कांग्रेस ने यहां आखिरी बार 2009 में चुनाव जीता था।
धार: भोजशाला मंदिर हो या मस्जिद, ये मुद्दा आखिरकार चुनावी मुद्दा बन गया है। इसका जिक्र खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विधानसभा में कर चुके हैं। मालवा-निमाड़ में वोटबैंक के लिहाज से कांग्रेस सबसे मजबूत है, हालांकि राष्ट्रीय मुद्दे के चलते उसे विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन दोहराने में दिक्कत आ रही है। यहां 8 में से 5 सीटों पर कांग्रेस मजबूत थी लेकिन बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे ने स्थिति बदल दी है।