वन कानूनों का उल्लंघन कर 18 हेक्टेयर वन भूमि पर हो रहे फैक्टी निर्माण का मामला लोकायुक्त पहुंचा


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स्टोरी हाइलाइट्स

मुद्दे को लेकर एनजीटी में सुनवाई चल रही है और अगली सुनवाई की तारीख 21 अक्टूबर है। यहां यह उल्लेखनीय है कि वन भूमि से संबंधित दस्तावेज को खुर्द-बुर्द कर राजस्व अधिकारियों ने वन भूमि का आवंटन फैक्ट्री निर्माण के लिए कर दिया है..!!

भोपालः नीमच जिले के जावद तहसील में फैक्ट्री के निर्माण के लिए भारतीय वन अधिनियम 1927 और वन संरक्षण अधिनियम 1980 के प्रावधानों को धता बताते हुए 18 हेक्टेयर वन भूमि को राजस्व भूमि आवंटन के मामले की शिकायत लोकायुक्त संगठन की गई है। लोकायुक्त संगठन ने कलेक्टर, डीएफओ और नायब तहसीलदार को पत्र लिख आवंटन से संबंधित सभी दस्तावेज मांगे हैं। इसी मुद्दे को लेकर एनजीटी में सुनवाई चल रही है और अगली सुनवाई की तारीख 21 अक्टूबर है। यहां यह उल्लेखनीय है कि  वन भूमि से संबंधित दस्तावेज को खुर्द-बुर्द कर राजस्व अधिकारियों ने वन भूमि का आवंटन फैक्ट्री निर्माण के लिए कर दिया है। जबकि एफसीए के अंतर्गत वन भूमि को बिना भारत सरकार पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति के आवंटन नहीं किया जा सकता। 

लोकायुक्त संगठन की ओर से मांगे गए दस्तावेज को लेकर वन और राजस्व विभाग के अधिकारियों में हड़कंप है। वन विभाग के मैदानी अमला कथित रूप से वन कानून का उल्लंघन करने वालों में कलेक्टर दिनेश जैन, नायब तहसीलदार सुश्री सलोनी पटवा राजस्व निरीक्षक विनोद राठौर और पटवारी तुलसीराम खराडीया का नाम लिया जा रहा है। दिलचस्प पहलू यह है कि डीएफओ नीमच एस के अटोदे ने पहले तो राजस्व अधिकारियों के नियम विरुद्ध कदम की मुखालफत की किन्तु जब उन्हें पता चला कि एनवल अप्रेजल रिपोर्ट में कलेक्टर की टिप्पणी महत्वपूर्ण हो गई है तब वे बैक फुट पर आ गए। डीएफओ नीमच द्वारा एफसीए का स्पष्ट उलंघन पाये जाने पर भी कोई कार्यवाही नहीं की। सनद रहे कि इसी प्रकरण में कलेक्टर नीमच के गलत प्रतिवेदन पर कमिश्नर उज्जैन ने बिना जांच किये एक तरफा कार्यवाही करते हुये रेंजर को निलंबित कर दिया था किंतु बाद में जांच उपरांत अपना आदेश वापस लेते हुये रेंजर को बहाल कर दिया।

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क्या है मामला?

वन भूमि को उद्योग को हस्तांतरित करने का मामला भी बड़ा दिलचस्प है। मप्र राजपत्र दिनांक 25 जुलाई 1985 को पारित अधिसूचना में वनखण्ड लासूर को ग्राम जनकपुर में कुल 176.932 हेक्टेयर भूमि आरक्षित वन घोषित की गई जो वन परिक्षेत्र जावद के बीट बसेडीभाटी के कक्ष क. 89 में स्थित आरक्षित वन भूमि है। राजस्व अधिकारियों ने मनमाने ढंग से 124 हेक्टेयर भूमि को ही आरक्षित वन मानकर राजस्व रिकार्ड में दर्ज की एवं शेष भूमि को राजस्य भूमि बताकर उस भूमि में से लगभग 18 हेक्टेयर भूमि औद्योगिक विभाग को हस्तांतरित कर फैक्ट्री का निर्माण करवाया जा रहा है। पहली बार राजस्व अधिकारियों ने विशेष दिलचस्पी लेते हुए हस्तांतरण कर दिया। यानी 15 दिसंबर 23 को भूमि हस्तांतरण की विज्ञप्ति जारी की गई और 16 दिसंबर 23 को वन विभाग से अभिमत प्रस्तुत करने हेतु पत्र लिखा गया। इस पर अभिमत हेतु वन विभाग एवं राजस्व विभाग द्वारा 21 दिसंबर 23 को संयुक्त पंचनामा बनाया गया। 

पंचनामे में वन विभाग द्वारा बताया गया कि हस्तांतरित भूमि आरक्षित वनभूमि हैं। पंचनामें पर राजस्व निरीक्षक विनोद राठौर, पटवारी तुलसीराम खराडीया एवं वन विभाग के कर्मचारियों द्वारा संयुक्त हस्ताक्षर किए। लेकिन नायब तहसीलदार सुश्री सलोनी पटवा ने मौके पर पंचनामे पर हस्ताक्षर नहीं किया। हालांकि वन कर्मचारियों ने पंचनामा का मोबाइल पर फोटो क्लिक कर लिया था।

संयुक्त पंचनामे में हुई छेड़छाड़

नायब तहसीलदार सलोनी पटवा ने पंचनामा लेकर आई और औद्योगिक विभाग के अधिनस्थ कम्पनी को लाभ पंहुचाने लेने के उददेश्य से पंचनामें में छेडछाड कर "मौके पर कोई विवाद नहीं हुआ" वाक्य जोड़ दिया। पंचनामा में छेड़छाड़ करने के बाद नायब तहसीलदार सुश्री पटवा ने एसडीओ राजस्व राजकुमार हलदार से मिलकर गलत तथ्यों के साथ रिपोर्ट कलेक्टर दिनेश जैन के पास भेज दिए। नीमच कलेक्टर ने भी बिना जांच पड़ताल और वन विभाग की आपत्तियों का निराकरण किया बिना ही वन भूमि का हस्तांतरण आदेश पारित कर दिया। यानी वन अधिनियम का उल्लंघन कर फैक्ट्री को वन भूमि आवंटित करने के मामले में कलेक्टर नीमच ने राजस्व विभाग की कार्रवाई को उचित बताते हुए फैक्ट्री निर्माण कार्य को जारी रखवाया।