भोपाल: टाइगर स्टेट मप्र में 3 साल में 34 बाघ की मौत को लेकर शनिवार की रात में आईएफएस फ्रेटेर्निटी व्हाट्सएप ग्रुप भारतीय वन सेवा के अधिकारियों के बीच घमासान मच गया। टाइगर की मौत पर मप्र चीता प्रोजेक्ट के मुखिया उत्तम शर्मा ने आंकड़ों और वैज्ञानिक पहलुओं के आधार पर पोस्ट की। इस पोस्ट पर उल्लेख किया है कि यदि 3 वर्षों में 34 बाघ मरते हैं यानी प्रति वर्ष लगभग 11 बाघ, तो भी यह जनसंख्या के 10% की राष्ट्रीय औसत मृत्यु दर से कम है।तो फिर बीटीआर में बाघ की मौत के बारे में यह हल्ला-बुल्ला क्या है..?
उनके इस पोस्ट पर लघु वनोपज संघ के एमडी विभाष ठाकुर ने पोस्ट किया कि बाघों को खोने का मुद्दा कौन बना रहा है..?
रिपोर्ट में क्या खामियां हैं? हमारे अधिकारी SIT रिपोर्ट से पहले इन खामियों का पता क्यों नहीं लगा सके? इन खामियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
फ़िलहाल क्या कार्यवाही की जा रही है? उनके इस पोस्ट का करारा जवाब सेवानिवृत्ति पीसीसीएफ वन्य प्राणी ने विभाष ठाकुर का नाम का उल्लेख नहीं करते हुए पोस्ट किया कि जो लोग खुद वहां काम नहीं किया है, उनको अप्रिशिएट करने में बहुत प्रॉब्लम है। इस घमासान में फेडरेशन के एमडी अकेले नजर आए जबकि उत्तम शर्मा की पोस्ट का समर्थन करने वालों में आलोक कुमार के अलावा पेंच टाइगर रिजर्व और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टरों ने किया।
आईएफएस फ्रेटेर्निटी व्हाट्सएप ग्रुप में सेवानिवृत्ति आईएफएस एके बरोनिया की पोस्ट से घमासान की शुरुआत हुई। बरोनिया ने मध्य प्रदेश में 3 साल में 34 बाघों की मौत को लेकर अखबारों में छपी खबरों को पोस्ट किया। इस पोस्ट को सिंह परियोजना के मुखिया उत्तम शर्मा ने विधवा विलाप के रूप में लिया और उसका लंबा सा जवाब में बेहतर तर्कों के साथ ग्रुप पर शेयर किया। ग्रुप में शेयर किए गए उत्तम शर्मा के तर्कों में मुख्य फोकस बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में हुए बाघों की मौत पर रहा। शर्मा ने लिखा कि वर्ष 2020 से 2023 तक बीटीआर में बाघों की अनुमानित आबादी लगभग 120 थी।
प्रजनन करने वाली बाघिनों की संख्या लगभग 40 होगी, जो प्रति वर्ष 40 शावकों को जोड़ेगी (प्रत्येक दो साल में कूड़े का आकार 2 होगा)। शावकों की जीवित रहने की दर को 65% पर लेते हुए, प्रति वर्ष जोड़े गए बाघों की संख्या 26 होगी। यदि 3 वर्षों में 34 बाघ मरते हैं, यानी प्रति वर्ष लगभग 11 बाघ, तो यह अभी भी आबादी के 10% की राष्ट्रीय औसत मृत्यु दर से कम है। तो फिर बीटीआर में बाघ की मौत के बारे में यह हल्ला-बुल्ला क्या है?
हमारे अधिकारी SITY रिपोर्ट से पहले खामियों का पता क्यों नहीं लगा सके ?
इस पर फेडरेशन के एमडी विभाष ठाकुर ने पोस्ट किया कि हां, मैं सहमत हूं। हमें इसे मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। लेकिन बाघों को खोने को मुद्दा कौन बना रहा है..? रिपोर्ट में क्या खामियां हैं? हमारे अधिकारी SITY रिपोर्ट से पहले इन खामियों का पता क्यों नहीं लगा सके ? इन खामियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई ?
फ़िलहाल क्या कार्यवाही की जा रही है.? ये वो सवाल हैं, जो हर कोई पूछ रहा है..। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए हमें जल्द से जल्द जवाब देना चाहिए। हर दिन, बाघों की चिंताजनक मौतों, इन घटनाओं की रिपोर्टिंग में चूक और समय पर घटनाओं का पता लगाने और समय पर कार्रवाई करने में एमपी वन विभाग के अधिकारियों की विफलता के बारे में समाचार रिपोर्टें सामने आती हैं। बढ़ती चिंताओं के बावजूद हम समय रहते उचित कदम उठाने से झिझक रहे हैं।
वन्यजीव प्रबंधन के लिए हमेशा होती है प्रशंसा
फेडरेशन के एमडी ठाकुर सीनियर आईएफएस होने के नाते उत्तम शर्मा ने पोस्ट किया कि महोदय, मैं विनम्रतापूर्वक अपनी राय अलग रखना चाहता हूं। वन प्रबंधन, विशेषकर वन्यजीव प्रबंधन के लिए वन विभाग मप्र की आलोचना से अधिक प्रशंसा की जाती है। यह हम ही हैं जो कभी-कभी नकारात्मक बातों पर केंद्रित हो जाते हैं। 15-20 साल पहले से वन विभाग आगे बढ़ा है। ग्रुप पर मचे घमासान के बीच पेंच नेशनल पार्क के डिप्टी डायरेक्टर रजनीश सिंह और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर प्रकाश वर्मा ने भी अपने-अपने तर्क पोस्ट किए। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की डिप्टी डायरेक्टर ने तो उपलब्धियों का उल्लेख कर ठाकुर के आलोचनात्मक तर्क पर ब्रेक लगा दिया।
यह गंभीर मुद्दा है, बयान देने से बचे
विवाद आगे बढ़ता, इसके पहले पीसीसीएफ वन्य प्राणी वीएन अंबाड़े ने ग्रुप में उत्तम शर्मा को संबोधित करते हुए पोस्ट किया कि यह चर्चा करने का प्लेटफॉर्म नहीं है। ऐसे गंभीर मुद्दे पर कोई भी बयान देने से बचे। अगर किसी को कुछ लिखना है तो सी डब्ल्यू एल डब्ल्यू को लिखें। अब इस पर कोई चर्चा नहीं होगी। इस मुद्दे को यहीं विराम दे।