भोपाल: मध्य प्रदेश के दो विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव आगामी 13 नवंबर को किए जाने की घोषणा हो गई है। बेशक भाजपा प्रदेश की सत्ता पर काबिज है मगर ग्वालियर चंबल क्षेत्र की विजयपुर विधानसभा के उपचुनाव को लेकर भाजपा के संदर्भ में यह कहा जा रहा है कि यहां बहुत कठिन है डगर पनघट की। हालांकि कांग्रेस ने चुनावी तारीख घोषित कर दिए जाने के बाद भी अभी तक प्रत्याशी को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं। मगर विजयपुर में कांग्रेस से भाजपा में आए वर्तमान वन मंत्री रामनिवास रावत ही भाजपा के उम्मीदवार होंगे यह घोषित हो चुका है।
मध्य प्रदेश में विजयपुर और बुधनी के विस उपचुनाव को लेकर भाजपा संगठन और सत्ता में गहमागहमी का दौर है। फ़िलहाल बुधनी और विजयपुर के उप चुनाव 13 नवंबर को होना तय है। ग्वालियर चंबल की विजयपुर सीट से जो कि कांग्रेस से भाजपा में आयातित और तत्काल ही वन मंत्री के ओहदे से नवाजे गए रामनिवास रावत को भाजपा की ओर से उम्मीदवार घोषित कर दिया गया हैं। इसके पूर्व वह इसी सीट से कांग्रेसी विधायक थे और इस सीट से उन्होंने भाजपा में आने के बाद इस्तीफा दिया है। उन्होंने पूर्व विधायक और चुनाव सहप्रभारी नरेंद्र बिरथरे के साथ क्षेत्र को दो माह पूर्व से ही नापना शुरू कर दिया था। मगर कांग्रेस ने अभी तक कौन होगा उसका प्रत्याशी इसको लेकर पत्ते नहीं खोले हैं।
विजयपुर के सियासी इतिहास को टटोलें तो रामनिवास छह बार विधायक रहे हैं और स्वर्गीय माधव सिंधिया ही उन्हें राजनीति में लाए थे। यह स्वर्गीय माधव सिंधिया की न केवल विश्वासपात्र रहे बल्कि उन्हें की कृपा से इन्होंने पंचायत मंत्री का सुख भी भोगा था। रामनिवास इस क्षेत्र के बड़े और कद्दावर नेता रहे मगर पूरे चंबल में उनका प्रभाव हो ऐसा नहीं है।
भाजपा के सीताराम आदिवासी से एकबार चुनाव हार भी चुके हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सीताराम आदिवासी ने पूर्व मंत्री रामनिवास रावत को धूल चटाई थी। मगर 2023 की चुनाव में भाजपा जनता का मिजाज समझ नहीं पाई और पुराने नेता बाबूलाल मेवरा को टिकट दिया।
नतीजा बाबूलाल चुनाव हार गए और कांग्रेस के रामनिवास रावत ने एक बार फिर से जीत दर्ज की। इस चुनाव में चौंकाने वाली बात यह है कि रामनिवास को 69646 वोट मिले थे वहीं भाजपा के बाबूलाल को 51589 वोट हाथ लगे थे। जबकि निर्दलीय आदिवासी नेता मुकेश मल्होत्रा ने 44128 वोट हासिल करके जबरदस्त सिक्का जमाया तो बीएसपी के खाते में 34346 वोट आए। यानी यदि मुकेश मल्होत्रा और बीएसपी के वोट मिला दिया जाए तो कुल वोट 78000 से अधिक होते हैं जो भाजपा और कांग्रेस दोनों के कुल मिले वोट से ज्यादा होते हैं। और इन्हीं दोनों वोटो के समीकरण में इस उपचुनाव की जीत का सीक्रेट छिपा हुआ है।
दरअसल यह भाजपा की पहले परंपरागत सीट थी और इस मिथक को रामनिवास रावत ने ही तोड़ा था खास बात यह है कि इस क्षेत्र में रामनिवास के रावत समाज के कुल 17 से 18 हजार वोटर बताए जाते हैं। जबकि ओबीसी 35000 से अधिक और आदिवासी तो 55000 से अधिक वोटर हैं। यानी यहां का भाग्य विधाता आदिवासी वोटर ही है और जीत की दिशा वही तय करता है।
भाजपा ने अपनी चुनावी बिसात रामनिवास के भाजपा में आने के समय से ही बिछाना शुरू कर दी थी और फिल वक्त वह कांग्रेस से कोसों आगे है और यह सच है। भाजपा के प्रत्याशी रामनिवास रावत ही घोषित है और 13 नवंबर को वोटिंग भी है पर कांग्रेस के प्रत्याशी अभी तक घोषित नहीं है।
चर्चा थी कि पहले कांग्रेस भाजपा के आदिवासी नेता और पूर्व विधायक सीताराम पर दांव खेल रही है मगर भाजपा ने हाल ही में उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा देकर कांग्रेस के इस वार की धार को भौंथरा कर दिया। सूत्रों का दावा है कि भाजपा की बूथ स्तर तक की सारी तैयारी पूर्ण हो चुकी है और चुनाव प्रभारी नरेंद्र बिरथरे प्रत्याशी रामनिवास के साथ दो महा पूर्व से ही इलाके में फील्डिंग और जमाने में लगे थे।
मगर ऐसा नहीं है की भाजपा के लिए विजयपुर में चुनौतियां खारिज हो गई हो सबसे बड़ी समस्या है आदिवासी नेता मुकेश मल्होत्रा जो इस बार के चुनाव में निर्दलीय लड़े थे और 44000 से अधिक वोट पाकर उन्होंने अपना दम खम बता दिया था। खुदा न खास्ता यदि कांग्रेस ने उन पर दाव लगा दिया तो यह भाजपा के लिए बड़ी परेशानी का सबब बनेगा। क्योंकि 55000 के आसपास का आदिवासी वोटर जाहिर सी बात है मल्होत्रा की ओर झुकेगा जो नतीजे को उलट ने पलटने की सामर्थ रखता है।
यदि इन वोटो के साथ राजपूत गुर्जर और दलित वोटर साथ में हो लिए तो फिर भाजपा की मुश्किलें इसलिए बढ़ जाएगी क्योंकि यह वोट गेम चेंजर साबित हो सकते हैं। इधर एक और समस्या से भाजपा को रूबरू होना पड़ रहा है और वह यह की रावत समाज के कुछ लोगों का विवाद अन्य समाज से हो गया है और कांग्रेस इसी को मुद्दा बनाने का पूरा प्रयास करेगी। यानी कांग्रेस एंटी रावत पिच पर इस चुनाव को ले जाने का पूरा प्रयास करेगी सवाल यह है की भाजपा के पास इसकी काट क्या है। इधर इलाके में राजपूत बेहद प्रभावशाली वर्ग है जो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी नीटू सिकरवार के प्रभाव में कहीं ना कहीं है और नीतू सिकरवार लोकसभा में अपनी हार का सबसे बड़ा कारण रावत को ही मानते हैं और उन्हें बख्शने के मूड में नहीं है। राजपूतों का झुकाव भी समीकरणों को उल्टा-पुल्टा करने में बड़ा फैक्टर बनेगा।
मगर कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या यह है कि रामनिवास के भाजपा में जाने के बाद विजयपुर का पूरा संगठन चौपट हो गया। कांग्रेस के पास इलाके में ना तो संगठन है नहीं नेटवर्क और नहीं कार्य करता वह केवल और केवल आदिवासियों के नाम पर ही चुनाव खेलने की फिराक में है।
सवाल यह है कि आदिवासी भी सीताराम, मुकेश मल्होत्रा और तुर्रासनपाल शिवा के तीन खेमो में बांटा हुआ है। वही आदिवासियों का एक फिरका जो तकरीबन 5000 के आसपास है मुकेश मल्होत्रा के साथ नहीं है ऐसी भी जन चर्चा है। बरहाल मुकाबला कशमकश भरा है और कांग्रेस ने अभी तक प्रत्याशी तय नहीं किया है इस कारण राजनीतिक धुंध अभी बाकी है क्योंकि प्रत्याशी घोषित होने के बाद तात्कालिक रूप से राजनीतिक समीकरण कुछ-कुछ समझ में आने लगती है।
मगर एक बात दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ है कि यह चुनाव रामनिवास रावत नहीं बल्कि उन्हें भाजपा में लाने वाले नरेंद्र सिंह तोमर लड़ रहे हैं जिन्हें चाणक्य माना जाता है। जिस तरह से उन्होंने लोकसभा में ग्वालियर और मुरैना की लगभग हारी हुई सीटों में अपने प्रत्याशी जिताये उसका लोहा सब मानते हैं। सवाल यह है कि क्या वे रामनिवास का बेड़ा पार नहीं कर पाएंगे ? जिस तरह उन्होंने इलाके में मुख्यमंत्री यादव के लगातार दौरे करवा कर कई विकास कार्य शुरू करवाए वह बिना कहे ही सारी कहानी चुपचाप कह रहा है।
वैसे भी यह मुख्यमंत्री मोहन यादव के नेतृत्व में चुनाव हो रहा है तो जाहिर सी बात है कि वह कोई भी कोर कसर जीतने के लिए बाकी नहीं छोड़ेंगे। खास बात यह है और वह यह की विजयपुर विधानसभा का जंगल से गहरा नाता है जो यहां के जीवन को चलाता है। इलाके के लोगों का सर्वाधिक काम जंगल महकमे से पड़ता है। अब इन हालातो में वे वन विभाग के कैबिनेट मंत्री रामनिवास से भला कैसे मुंह मोड़ पाएंगे ? मगर इन सब के बाद भी चुनाव चुनाव है अब मतदाता 13 नवंबर को मशीन पर कौन सा बटन दबाता है, किसको चुनता हे, किसको खारिज करता हे नतीजा वही तय करेंगे।