भोपाल: जंगल महकमे के एक सीनियर आईएफएस अधिकारी के पुत्र का पर्यटन शौक पार्क प्रबंधन में जुटे अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए भारी पड़ रहा है। अफसर पुत्र टाइगर रिजर्व में आलीशान प्राइवेट रिशॉर्ट में रुकते और उसका भुगतान अमले को करना पड़ रहा है।
पार्क प्रबंधन का अमला अब उन्हें युवराज के नाम से संबोधित करता है, क्योंकि उनके शौक पुरानी रियासतों के युवराज से कम नहीं है। अफसर पुत्र अभी तक बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व, पेंच टाइगर रिजर्व, कान्हा टाइगर रिजर्व और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के पचमढ़ी और मड़ई के प्राकृतिक सुंदरता और वन्य प्राणियों के दीदार कर चुके हैं।
जंगल की युवराज जब पर्यटन दौरे पर होते हैं तो एसडीओ से लेकर वनरक्षक तक उनकी जी हुजूरी में लगे रहते हैं भले ही वे प्राइवेट रिसोर्ट में ही रुके हो। जंगल के युवराज बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 18 अक्टूबर से 24 अक्टूबर तक टाइगर डेन रिजॉर्ट में रुके। प्राकृतिक सुंदरता और वन - प्राणियों के दीदार किए। वे जब सफारी पर निकले तो जंगल का किंग टाइगर भी उनके सामने चहल कदमी करते हुए जंगल की ओर लौट गए।
सेल्फी और फोटोग्राफी का लुफ्त उठाया। युवराज का दिल जब बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से भर गया तब उन्हें एक एसडीओ अपनी थार जीप से कान्हा तक छोड़कर आए। कान्हा टाइगर रिजर्व में चार दिन रुके और उसके बाद पेंच नेशनल पार्क पहुंचे। कान्हा और पेंच नेशनल पार्क प्रबंधन से जुड़े अफसर युवराज की पर्यटन यात्रा को अत्यंत गोपनीय रखने का प्रयास कर रहा है।
इसकी वजह भी है कि वन्य प्राणी मुखिया के मेहरबानी से ही दोनों पार्कों के डिप्टी डायरेक्टर टाइगर रिजर्व में एकक्षत्र राज कर रहे हैं।सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के पचमढ़ी और मड़ई में भी तीन दिन रुके। मड़ई के डेनवर बैक वाटर रिसोर्ट में रुके थे। इस रिसोर्ट का खर्चा भी मैदानी अमले के रेंजर से लेकर बीट गार्ड तक नहीं उठाया।