भोपाल। राज्य सरकार 21 साल पुराने एक एक्ट मप्र जानकारी की स्वतंत्रता का अधिनियम 2002 का अब तक निरसन नहीं कर पाया है तथा यह अभी भी प्रदेश में लागू है। यह एक्ट भी सूचना का अधिकार कानून की तरह था परन्तु इसमें मप्र विधानसभा, लोकायुक्त संगठन, धार्मिक संगठनों, कोर्ट, राज्यपाल सचिवालय को मुक्त रखा गया था।
इस एक्ट के बाद वर्ष 2005 में केंद्र सरकार का सूचना का अधिकार कानून पूरे देश में लागू हो गया था जिसमें सरकारी सहायता प्राप्त निकायों को सूचना के अधिकार के दायरे में रखा गया था।
दरअसल, मप्र जानकारी की स्वतंत्रता का विधेयक वर्ष 1998 में बना था और उस समय तत्कालीन राज्यपाल ने इसे लौटा दिया था। इसके बाद 14 नवम्बर 2002 को तत्कालीन जन शिकायत निवारण विभाग के राज्य मंत्री पूरन सिंह बेडिय़ा ने इसे पुन: विधानसभा में प्रस्तुत किया था और यह पारित हो गया था।
राज्यपाल की अनुमति मिलने पर 31 जनवरी 2003 को विधि विभाग ने इसे अधिसूचित कर पूरे प्रदेश में लागू कर दिया था। मजेदार बात यह है कि 9 मई 2017 को सामान्य प्रशासन विभाग ने कार्य आवंटन नियमों में संशोधन कर जन शिकायत निवारण विभाग को खत्म कर दिया था लेकिन इस विभाग के अधिनियम किस विभाग में जायेंगे इसका उल्लेख अधिसूचना में नहीं किया।
विधि विभाग के अंतर्गत राज्य विधि आयोग भी बना था जिसने अनेक अनुपयोगी कानूनों को खत्म करने की सिफारिश की थी और इनका विधानसभा में बिल लाकर निरसन भी किया गया परन्तु आयोग को मप्र जानकारी की स्वतंत्रता का अधिनियम के बारे में नहीं बताया गया जिससे यह अब तक निरसित नहीं हो पाया है और इसके प्रावधान अभी भी लागू हैं।
विधि विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि मप्र जानकारी की स्वतंत्रता का अधिनियम 2002 अभी भी अस्तित्व में है तथा इसका निरसन नहीं हुआ है। निरसन का प्रस्ताव सामान्य प्रशासन विभाग को भेजना होगा।
सामान्य प्रशासन विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि मप्र जानकारी की स्वतंत्रता का अधिनियम क्यों अब तक निरसित नहीं हुआ है, इसकी जानकारी ली जायेगी।