मैं शनी हूं मैं ऐसे प्रसन्न होता हूँ और तुम्हारे इन इन कामों से मुझे क्रोध आ जाता है..


स्टोरी हाइलाइट्स

शनि महाराज कहते हैं- संसार में आकर प्राणी (मनुष्य) अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर मेरे न्याय की पहले तो अवहेलना करता है, बाद में मुझे बदनाम करता है

शनि की कृपा कैसे प्राप्त करें,

शनि क्यों क्रोधित होते हैं,

शनि की नजर में पाप पुण्य क्या है,

बिना किसी योग के विश्व में कोई भी मेरी शक्ति को प्राप्त नहीं कर सकता। योग का यहाँ मतलब पवित्रता से है कि तुम्हारा हर पल-हर क्षण पवित्र भावना से जुड़ा हो, पवित्र कर्मों की विचारधारा हो, पवित्र न्याय हो, क्योंकि मेरा काम संसार में केवल न्याय करना है और यह जीवन चेतना शक्ति का नाम है जो कि परमात्मा (शिव) का स्वरूप है। शिव संसार के कण-कण में विद्यमान है। 

शरीर (दर्शन) एवं चेतना शक्ति (परमात्मा का स्वरूप) जब मिलते हैं, तब जीव का निर्माण होता है, जिसमें चौरासी लाख योनियां हैं, जिनका मैं कर्मानुसार न्याय करता हूँ। मानव मात्र को अन्य जीवों की अपेक्षा श्रेष्ठता इसलिए प्रदान की गई है, ताकि निकृष्ट पापों को कर्मों की पवित्रता से बदल कर परमात्मा के चरणों में स्थान (मोक्ष) पा सके।

शनि महाराज कहते हैं- संसार में आकर प्राणी (मनुष्य) अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर मेरे न्याय की पहले तो अवहेलना करता है, बाद में मुझे बदनाम करता है, मैं सदैव सत्य का आधार बनाकर न्याय करता हूँ। तुम्हारा शरीर जो ईश्वरीय कृपा से दुर्ग की तरह है। जिसकी रक्षा माँ दुर्गा कर रही हैं फिर भी तुम मांग पर मांग किए जा रहे हो, प्रार्थना की जगह मांग लेकर जा रहे हो। 

ईश्वरीय विधान को बाजार का रूप प्रदान कर रहे हो। फिर मेरे न्याय को दोष देकर अपनी झोली में और भी पश्चाताप के आँसू भर रहे हो। मैं तुम्हें सचेत करना चाहता हूँ कि यह तुम्हारा शरीर जिसमें परमात्मा शिव स्वयं विराजमान हैं तुमने उसे शव बना दिया है और अब दूषित विचारों से परिपूर्ण काया से सकारात्मक परिणाम की आशा कर रहे हो ऐसा असम्भव है।

जीवन, कल्पनाओं को साकार करने का नाम है, मगर अपने अन्दर बैठे शिव को जागृत करना होगा।

तुम अपने शरीर को पोषित करने के लिए अच्छे-अच्छे व्यंजन खा रहे हो और सोच रहे हो कि हमारा शरीर बहुत स्वस्थ है, मगर मत भूलो कि जब चेतना शक्ति ही शव के रूप में होगी, तो तुम्हारा जीवन असक्त सा हो, बीतता जाएगा। जीवन को सशक्त देखना हो, तो मानवता की सेवा, प्रेम, विश्वास, सद्भावना, कर्तव्यनिष्ठा, सहायता से अपनी शवमय स्थिति से उबरकर ऊपर आओ, तभी तुम मेरे न्याय को स्वीकार कर पाओंगे।

परमात्मा शिव को अपने हृदय में विराजमान करो। तुमने तो अपनी माँग माँगकर (मन्नत) परमात्मा शिव को अपने मंदिर से भगा दिया है, तो तुम मेरे न्याय से कैसे बच पाओगे। पुनः परमात्मा शिव का प्रतिस्थापन करो, तभी तुम्हारा जीवन संसार के कठोर दण्डों से बच पायेगा। मैं तो बार-बार तुम्हें सचेत भी नहीं करूँगा कि तुम शिवमय की जगह शवमय जीवन जी रहे हो। परमात्मा शिव तुम्हें सद्बुद्धि दे और तुम्हें अपने जीवन को सफल एवं सार्थक बनाने के लिए शक्ति सम्बल और विश्वास दें।