मध्य प्रदेश के लोकनाट्य 3 : शाजापुर की कंस लीला, इस कला के देश विदेश में हैं मुरीद.. 


स्टोरी हाइलाइट्स

यह लीला दीपावली के बाद आने वाली दशमी के दिन रात्रि में नो बजे से आरंभ की जाती है और आधी रात तक चलती है।

कई बार एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा कर के लोक नाट्य की परंपरा अपना एक विशिष्ट रूप ग्रहण कर लेती है। इसका बहुत रोचक उदाहरण शाजापुर की कंस लीला है। यह लीला पिछले 155 वर्षों से नियत तिथि पर साल में एक बार शाजापुर में आयोजित होती है। शाजापुर के सोमवारिया बाजार में पुष्टिमार्ग संप्रदाय का गोवर्धन नाथ मंदिर है। इस मंदिर के मुखिया स्व. मोतीराम मेहता मथुरा से करीब डेढ़ सौ साल पहले कंसंबधोत्सव की परंपरा यहाँ लेकर आये। 

मथुरा में कंस बंध का उत्सव मनाया जाता है। शाजापुर शहर की जनता ने इस परंपरा को स्वीकार करके इसमें पारसी शैली का पोल मिलाकर इसे एक दिलचस्प लीला नाटक का रूप दे दिया। यह लीला दीपावली के बाद आने वाली दशमी के दिन रात्रि में नो बजे से आरंभ की जाती है और आधी रात तक चलती है। आरंभ में लीला गोवर्धन नाथ मंदिर के अहाते में ही खेली जाती थी। बाद में नागरिकों की व्यापक भागीदारी के कारण इसे मंदिर के बाहर सड़क पर किया जाने लगा। 

अब यह सोमवारिया बाजार में लगभग आधे किलोमीटर के क्षेत्र में होती है। शाजापुर के नागरिकों का इसके लिये उत्साह अपूर्व है। महीनों पहले से इसके पात्र अपनी वेशभूषा की अवस्था में लग जाते हैं। वेशभूषा पारगी नाटक की महकीली शैली के अनुरूप तड़क भड़क वाली होती है और सजावट के लिए रंग बिरंगी पत्तियों का भरपूर उपयोग किया जाता है। 

पोशाकों के साथ तरह तरह के हविवारों, मुखौटों और अलंकरणों का भी खूब प्रयोग होता है। संवादों की अदायगी बहुत जोश खरोश से होती है। लीला आरंभ होने के पहले इसके पात्रों की सवारी निकलती है। इसकी सेना में दानवों की भूमिका करने वाले कलाकारों का जोश देखते ही बनता है, और कई दिवंगत कलाकारों को इन भूमिकाओं के लिये आज भी लोग याद करते हैं। 

कृष्ण की भूमिका करने वाले पात्रों में जमकर नोकझोंक होती है, बाद में कृष्ण बस बनने वाले कलाकार के स्थान पर कंस के पुतले को धरती पर गिरा कर उसका वध करते हैं। इसके साथ नाटक समाप्त होता है।

कार्यक्रम का आयोजन उत्सव समिति करती है। मथुरा को छोड़ कर उत्तर भारत में ऐसी लीला शायद और कहीं नहीं होती। शाजापुर ने इसकी परंपरा को न केवल संजोया, बल्कि उसे पारसी शैली के एक रोचक नाटक का रूप दे कर अपनी एक अलग विरासत बना लिया है।