रहस्य और अंधेरे के संसार में रोशनी देती एक पुस्तक जिज्ञासा: युवा और धर्म


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स्टोरी हाइलाइट्स

युवा धर्म और परंपराओं के प्रति आकर्षित तो हैं, लेकिन आधे-अधूरे ज्ञान और पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही भ्रांतियों के कारण उनसे दूर होते जा रहे हैं..!!

“जिज्ञासा: युवा और धर्म” केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि आज के महानगरीय युवाओं के भीतर दबी उन अनकही जिज्ञासाओं की आवाज़ है, जो अपने अस्तित्व, संस्कृति और धर्म के मर्म को जानने के लिए बेचैन हैं। लेखक दिनेश मालवीय ने इस पुस्तक में वही प्रश्न उठाए हैं, जो हर संवेदनशील युवा मन के भीतर गूंजते हैं – और उन प्रश्नों के उत्तर भी खोजने का ईमानदार प्रयास किया है।

उनका मानना है कि युवा धर्म और परंपराओं के प्रति आकर्षित तो हैं, लेकिन आधे-अधूरे ज्ञान और पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही भ्रांतियों के कारण उनसे दूर होते जा रहे हैं। इस पुस्तक में लेखक ने ज्ञान के उसी खोए हुए सेतु को फिर से जोड़ने का साहसिक प्रयास किया है।

पुस्तक का उद्देश्य और विशेषताएँ..

यह कृति केवल धार्मिक उपदेश नहीं, बल्कि धर्म की आत्मा को समझने की एक यात्रा है। लेखक स्वयं स्वीकार करते हैं कि आज की पीढ़ी के पास धर्म के प्रति जिज्ञासा तो है, परंतु सही मार्गदर्शन के अभाव में वे अंधविश्वास या सतही परंपराओं में उलझ जाते हैं। इस पुस्तक का उद्देश्य है युवाओं को धर्म की सतह से गहराई तक ले जाना – जहां आस्था और विवेक का सुंदर संगम हो।

रामचरितमानस और महाभारत जैसे कालजयी ग्रंथों के पात्रों और प्रसंगों के माध्यम से लेखक ने यह दर्शाया है कि धर्म केवल पूजा-पाठ की परंपरा नहीं, बल्कि मनुष्य के व्यावहारिक जीवन में सच्चा संतुलन, धैर्य और विवेक सिखाने वाला दीपस्तंभ है।

विशेष बात यह है कि लेखक ने साहसपूर्वक उन मिथकों को भी तोड़ा है जो लंबे समय से युवाओं की चेतना पर पर्दा डाले हुए थे – जैसे देवताओं के सोने-जागने की कथाएँ, रावण के दस सिर की अवधारणा, सहस्त्रबाहु के हजार हाथ। इन्हें उन्होंने तर्क और व्यावहारिक दृष्टि से समझाते हुए युवा मन को नया दृष्टिकोण दिया है।

देवताओं के सोने के समय भोजन न करने जैसे रीति-रिवाजों के पीछे छिपे वैज्ञानिक कारणों को भी लेखक ने सरल शब्दों में उजागर किया, जिससे यह पुस्तक केवल पौराणिक व्याख्या नहीं, बल्कि जीवन के वैज्ञानिक और सामाजिक पक्ष को भी स्पर्श करती है।

दिनेश जी की लेखन शैली का सबसे बड़ा आकर्षण है – 

उसकी सजीवता और संवादधर्मी प्रवाह। उन्होंने पुस्तक में ‘विवेक’ नामक पात्र के माध्यम से युवाओं के प्रश्नों का उत्तर दिया है, जिससे पाठक को यह अहसास होता है कि वह भी उसी संवाद का हिस्सा है।

भाषा में अनावश्यक जटिलता नहीं, बल्कि सहजता, सरलता और शब्दों का सौंदर्य है, जो पढ़ने वाले को बाँधे रखता है। लेखक की पूर्व कविताओं, ग़ज़लों और अनुवादों से उपजे शब्द-संवेदन और गहराई यहाँ स्पष्ट झलकती है, जिससे पुस्तक की प्रत्येक पंक्ति जीवंत हो उठती है।

मुख्य विषय-वस्तु और विश्लेषण..

लेखक ने स्थापित किया है कि धार्मिक अनुष्ठान तभी सार्थक हैं, जब उनके मूल अर्थ और भावना को समझा जाए। महाभारत की द्रौपदी के प्रसंग को लेकर उन्होंने प्रचलित भ्रांतियों का खंडन करते हुए स्पष्ट किया कि युद्ध का कारण द्रौपदी नहीं, बल्कि दुर्योधन और कर्ण की ईर्ष्या तथा भीष्म की प्रतिज्ञा थी।

भगवान राम के चरित्र में लेखक ने दिखाया कि सच्चा बड़प्पन अपने छोटे या कमजोर पर विजय पाने में नहीं, बल्कि उन्हें साथ लेकर चलने और उनके कल्याण का मार्ग खोजने में है।

पुस्तक में उज्जैन यात्रा के दौरान भगवान कृष्ण और महाभारत से जुड़े प्रसंग भी युवाओं को अपने भविष्य की दिशा चुनने में मददगार बनते हैं। लेखक ने धार्मिक ग्रंथों को केवल पौराणिक गाथा नहीं, बल्कि जीवन में प्रेरणा और विवेक के स्रोत के रूप में प्रस्तुत किया है।

वर्तमान समाज में प्रासंगिकता..

यह पुस्तक केवल अतीत की चर्चा नहीं करती, बल्कि वर्तमान की समस्याओं का समाधान खोजने की प्रेरणा देती है। जब समाज में विखंडन, परिवारों में अलगाव और जाति के नाम पर विभाजन जैसी चुनौतियाँ सामने हों, तब धर्म की सच्ची समझ ही युवाओं को अपने मूल से जोड़ सकती है।

लेखक का मानना है कि धर्म का सार किसी भी विकृति से बचाकर युवा को प्रकृति और संस्कृति की ओर लौटा सकता है – जहाँ करुणा, विवेक और मानवीय मूल्य जीवित रहते हैं।

पुस्तक की भूमिका में मनोज श्रीवास्तव ने भी लिखा है कि दिनेश मालवीय स्वयं एक पात्र बनकर युवाओं के मन में उठते सवालों के उत्तर बने हैं – और यही इसे केवल पाठ नहीं, बल्कि संवाद की पुस्तक बनाता है।

"जिज्ञासा: युवा और धर्म" एक आईना है, जिसमें युवा अपने सवालों और उनके उत्तर देख सकते हैं। यह पुस्तक पाठक को धर्म के जड़ स्वरूप से हटाकर उसकी जीवंतता, प्रासंगिकता और गहराई से जोड़ती है।

भाषा की सहजता, विषय की व्यापकता और प्रस्तुति की रोचकता इसे विशेष बनाती है। यह पुस्तक युवा मन को विकृति से बचाकर विवेक और सत्य की ओर ले जाने का काम करती है – और यही इसे आज के समय में अत्यंत आवश्यक और सार्थक बनाता है।

यदि इसे शैक्षणिक पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए, तो यह न केवल ज्ञान बढ़ाएगी, बल्कि युवा पीढ़ी को धर्म, संस्कृति और जीवन के मर्म को समझने की दिशा भी देगी। कुल मिलाकर, यह पुस्तक उन सभी के लिए अनमोल है, जो धर्म को केवल मानने नहीं, बल्कि समझने की चाह रखते हैं – और जो अपनी जिज्ञासा को विवेक से उत्तर दिलाना चाहते हैं।

पुस्तक: जिज्ञासा: युवा और धर्म

लेखक: दिनेश मालवीय

भूमिका: मनोज श्रीवास्तव (मप्र के पूर्व प्रशासनिक अधिकारी)

मूल्य  250/-

प्रकाशक माय मिरर पब्लिशिंग हाउस, पुणे।