ब्यूरोक्रेसी के विरोध में फिर टला पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने का प्रस्ताव


स्टोरी हाइलाइट्स

मध्यप्रदेश में भोपाल इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने पर फिर असमंजस के बादल हैं| इससे मुख्यमंत्री की इच्छाशक्ति पर सवाल खड़े हो गए हैं। आखिर मामला क्या है खोल रहे हैं पुलिस आयुक्त प्रणाली का "पुराण" Ganesh Pandey.

भोपाल. प्रदेश के भोपाल और इंदौर महानगरों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने के प्रस्ताव पर धुंध छाने लगी है. सूत्रों की माने तो ब्यूरोक्रेसी का आंतरिक तौर पर विरोध है. पिछले तीन दशकों से राज्य में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने का प्रस्ताव राजनीतिक और प्रशासनिक विथिकाओं की सुर्खियों में रहता है और फिर शांत हो जाता है. पिछले महीने रविवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल और इंदौर महानगरों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने का ऐलान किया. मुख्यमंत्री की इस घोषणा के बाद से आईएएस लॉबी ने विरोध शुरू कर दिया है. विरोध के चलते पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने पर सवाल खड़े होने लगे हैं.

पुलिस के चरित्र में परिवर्तन आईपीएस बनाम आईएएस के द्वंद्व एवं अहंकार टकराव के चलते भी नहीं हो पा रहा है. पुलिस की कार्यप्रणाली प्रजातांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक अधिकारों के प्रति उदार, खरी व जवाबदेह हो, इस नजरिये से सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकारों को मौजूदा पुलिस व्यवस्था में फेरबदल के कुछ सुझाव दिए थे, इन पर अमल के लिए कुछ राज्य सरकारों ने आयोग और समितियों का गठन भी किया. लेकिन किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले ये कोशिशें आईएएस बनाम आईपीएस के बीच वर्चस्व के सवाल और अहम के टकराव में उलझकर रह गई.

सुधार की बजाय अधिकारों के बंदरबांट की यह लड़ाई है. आयुक्त प्रणाली के तहत पुलिस को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) तहत कुछ धाराओं पर कार्रवाई के अधिकार मिल जाते हैं. धारा-107 व 116 के तहत पुलिस को किसी व्यक्ति को प्रतिबंधित करने के साथ-साथ सार्वजनिक मार्ग पर हुए अतिक्रमण को खाली करने का अधिकार मिल जाता है. शांति बनाए रखने के लिए धारा-144 लागू करने और शांतिभंग की आशंका में किसी व्यक्ति को धारा-151 के तहत गिरफ्तार कर चालान पेश करने का अधिकार भी पुलिस के कार्य क्षेत्र में आ जाते हैं. ये अधिकार वैसे एसडीएम के पास सुरक्षित होते हैं. पुलिस आयुक्त जेल का निरीक्षण भी स्वतंत्र रूप से कर सकते हैं. साथ ही किसी बंदी को एक सप्ताह तक की अवधि के लिए पेरोल की मंजूरी देने का अधिकार भी मिल जाता है. शस्त्र लाइसेंस पुलिस आयुक्त के अधिकार क्षेत्र में आ जाता है, जो अमूमन कलेक्टर के अधिकार क्षेत्र में होता है. साफ है, यह व्यवस्था सुधार की बजाय अधिकारों को कलेक्टर या एसडीएम से हस्तगत करने की प्रणाली है.

कई संगठनों ने सीएम को पत्र लिखकर किया विरोध

मध्य प्रदेश प्रशासनिक सेवा संघ, मध्य प्रदेश राजस्व अधिकारी (कनिष्ठ प्रशासनिक सेवा) संघ और राजस्व अधिवक्ता प्रकोष्ठ ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है. मध्य प्रदेश प्रशासनिक सेवा संघ की महासचिव मल्लिका निगम नागर ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि प्रदेश में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू किए जाने की घोषणा की गई है लेकिन इसे लागू करने के पहले वे अपना पक्ष रखना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री से चर्चा के लिए समय मांगा है. प्रदेश राजस्व अधिकारी के प्रांतीय अध्यक्ष नरेंद्र सिंह ठाकुर ने कहा कि पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने का सीधा असर जनता पर पड़ेगा. इसलिए इस पर फैसला लेने के पहले मंत्रिमंडलीय समूह, सचिव स्तरीय समूह, अधिवक्ता परिषद, जन प्रतिनिधियों और नागरिक संगठनों से चर्चा की जाना उचित होगा.

कमलनाथ भी पुलिस एक्ट प्रणाली के पक्ष में नहीं रहे

 प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ जब  मुख्यमंत्री थे तब   पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा था कि आयुक्त प्रणाली जनता से जुड़ा मुद्दा नहीं है. कमलनाथ ने प्रणाली पर कटाक्ष करते हुए कहा कि इस प्रणाली को लागू करने अथवा नहीं करने से परेशान सिर्फ वे लोग हैं, जो इससे सीधे जुड़े हैं. दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने तार्किक बात कही है, यदि यह व्यवस्था प्रदेश में लागू होती है तो कुछ आईपीएस के अधिकारों का दायरा बढ़ जाएगा और कुछ आईएएस का दायरा घट जाएगा.