संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान संविधान की 75वीं वर्षगांठ पर चर्चा हुई। इस दौरान कन्नौज से सपा सांसद अखिलेश यादव ने बीजेपी पर तंज कसते हुए एक कविता सुनाई।
सदन में अखिलेश ने सुनाई कविता "ना मेरा है ना तेरा है, ये हिंदुस्तान सबका है",
इस दौरान अखिलेश ने कहा कि चुनाव के दौरान वोट देने जा रहे लोगों को डराया-धमकाया गया। कई लोगों को वोट देने से रोका गया।
अखिलेश ने पूछा, क्या ये लोकतांत्रिक गणतंत्र है? कहा कि हमारी सीमाएं कई स्थानों पर सिकुड़ रही हैं। इस दौरान अखिलेश यादव ने कहा कि ये संविधान हमारी ढाल है, हमारी सुरक्षा है, समय-समय पर हमें ताकत देता है। संविधान शोषित, उपेक्षित, पीड़ित और वंचितों के अधिकारों का सच्चा संरक्षक है।
यह संरचना एक महान आधार है। हमारे जैसे लोगों और देश के कमजोर वर्गों, विशेषकर पीडीए के लिए, संविधान को बचाना जीवन और मृत्यु का सवाल है। इस दौरान अखिलेश यादव ने जातिगत गणना पर कहा कि यह होनी चाहिए। अगर हमें मौका मिला तो हम जातीय जनगणना कराएंगे। अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो हम जातीय जनगणना कराएंगे।'
संसद में बोलते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि 2014 के बाद से जिस तेजी से असमानता बढ़ी है वह अकल्पनीय है। देश के 140 करोड़ लोगों में से 82 करोड़ लोग सरकारी राशन पर गुजारा कर रहे हैं। जो लोग देश को बताते हैं कि हम दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन रहे हैं।
मैं उस सरकार को बताना चाहता हूं कि जब 82 करोड़ लोग सरकारी राशन पर जी रहे हैं और दूसरी ओर देश की 2/3 संपत्ति केवल कुछ परिवारों के कब्जे में है - अगर सरकार में हिम्मत है। जब सरकार समय-समय पर अपने आंकड़े प्रकाशित करती है, तो उसे गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की प्रति व्यक्ति आय पर भी डेटा प्रकाशित करना चाहिए।
अखिलेश ने आगे कहा कि डबल इंजन सरकार में अब डिब्बे भी टकराने लगे हैं। न्याय मांगने के लिए आत्महत्या करनी पड़ती है। हिरासत में मौत के मामले में यूपी नंबर वन बनता जा रहा है। अखिलेश ने कहा कि हम अग्निवीर योजना को कभी स्वीकार नहीं करेंगे। पहले की तरह भर्ती जारी रहेगी तो सीमाएं सुरक्षित रहेंगी।
इस सरकार में लोकतंत्र के साथ छेड़छाड़ की गई है। हालांकि, अब जनता ने 400 पार के नारे को नकार दिया है। इस दौरान अखिलेश ने संसद हमले में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी। कहा कि आज सीमाओं की रक्षा करना एक संप्रभु का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य है। लेकिन, हमारे मंत्रियों को यह भलीभांति जानना चाहिए कि हमारी सीमाएं कई जगहों पर सिकुड़ रही हैं।