बच्चों को अनुशासन सिखाना जरूरी लेकिन ध्यान रखें ये बात


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स्टोरी हाइलाइट्स

चीजों को लेकर आपकी जैसी प्रतिक्रिया होगी बच्चे भी वैसा ही सीखेंगे..!

हममें से हर एक ने कभी न कभी ये भी महसूस किया होगा, कि हम भी कहीं न कहीं अपने मां-बाप के एक्सटेंशन ही हैं। कई बार मां-बाप ने अपने बचपन में जो सपना देखा होता है, अगर वे उसे पूरा नहीं कर पाते तो वे अपने बच्चों के माध्यम से उस सपने को पूरा करने की कोशिश करने लगते हैं, बिना ये जाने कि उस बच्चे का अपना क्या इंटरेस्ट है। बच्चे को अपनी पसंद के हिसाब से अपने जीवन के खास निर्णय लेने दें। उनको सलाह ज़रूर दें, लेकिन अपनी इच्छा उन पर थोपें नहीं।

बच्चों को अनुशासन सिखाना बहुत जरूरी होता है। अनुशासन से बच्चों की आदतों में सुधार आता है। अनुशासन का मतलब बच्चों को डराना या धमकाना नहीं होता है बल्कि उन्हें अच्छा बर्ताव सिखाना होता है। लेकिन कई बार लोग अनुशासन के मतलब को गलत समझ बैठते हैं। जीवन में अनुशासन काफी जरूरी होता है लेकिन बहुत से लोग बच्चों पर अनुशासन को थोपने लगते हैं जिससे बच्चे समझदार बनने की बजाय और भी ज्यादा बिगड़ने लगते हैं।  बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए डर या नियंत्रण की तकनीक सही नहीं है। ऐसे में बच्चों को अनुशासित करने के लिए कोई बेहतर तरीका होना चाहिए।

बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए माता-पिता को खुद भी कुछ बातों को जानना और इनका ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। इसके लिए माता-पिता का जागरुक होना बहुत जरूरी है। माता पिता के लिए जरूरी है कि वह पहले खुद की आदतों को बदलें। दूसरों को बदलने से पहले खुद को बदलना ज़रूरी है।

सेल्फ कंट्रोल और भावनाओं को काबू करना इंसान की अपनी ग्रोथ के लिए काफी सही माना जाता है। इसके जरिए दूसरों पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। बच्चे वही सीखते हैं जो वह देखते हैं, ऐसे में चीजों को लेकर आपकी जैसी प्रतिक्रिया होगी बच्चे भी वैसा ही सीखेंगे। तो अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा खुद पर नियंत्रण करना सीखें तो पहले आपको खुद में यह बदलाव लाना होगा।

माता-पिता और बच्चों के बीच के गैप को दूर करने में ये तरीका कारगर है जो है "देखना, मार्गदर्शन करना, विश्वास करना"। जब बच्चा आपको देखेगा या आपकी बात पर ध्यान देगा तभी आप उसका मार्गदर्शन कर सकते हैं। और आखिर में आता है भरोसा करना।ये भी उतना ही ज़रूरी है कि आप बच्चे के मन में विश्वास पैदा करें कि वह अपने ज्ञान और काबिलियत के अनुसार जो भी कर रहा है, बहुत अच्छा है।

कुछ मामलों में, माता-पिता अपने बच्चे की भावनाओं को चोट पहुंचाते हैं या सजा के रूप में अपने बच्चों को डांटते हैं, ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनके अपने माता-पिता ने अनुशासन सिखाने के नाम पर कभी उनके साथ ऐसा व्यवहार किया है।

माता-पिता कई बार अपने बुरे व्यवहार और विचारों को बच्चों पर थोपते हैं। सा विहेवियर कई बार माता-पिता की नजरों में सही होता है लेकिन बच्चों पर इसका कुछ उलटा ही असर पड़ता है।

हमें बच्चों की भावनाओं का ख्याल रखना चाहिए और उनसे जुड़ना चाहिए। क्योंकि जब आप किसी बच्चे की भावनाओं का ख्याल नहीं रखते है तो बाहरी तौर पर इसका कोई असर नहीं पड़ता लेकिन कहीं ना कहीं उनके मन में ये चीज अटकी रहती है और बार-बार भावनाओं को चोट पहुंचाने से इसका असर बच्चों की सेहत पर पड़ने लगता है।

एक अच्छे पेरेंट्स बनने के लिए जरूरी नहीं आप एकदम परफेक्ट हों। पेरेंट्स को किसी और से अपनी तुलना न करके अपने और बच्चे के संपूर्ण विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। खुद पर भरोसा करें कि आप जो कर रहे हैं, वह सही है। जो भी करें सबसे पहले अपने बच्चे को उसके केंद्र में रखकर ही करें।