भोपाल: वन विभाग की महुआ क्रांति के विफल होने की संकेत मिलने लगे हैं। यूके की जिस कंपनी ने 2000 क्विंटल महुआ खरीदने का समझौता किया था, अब वही फर्म राज्य से महुआ यूके ले जाने में आनाकानी कर रही है। यहीं नहीं, कंपनी द्वारा क्रय किया गया महुआ नागपुर के गोडाउन में डंप है।
महुआ व्यापार को लेकर लघु वनोपज संघ का विदेशी फर्म से हुआ व्यापारिक अनुबंध टूटता नजर आ रहा है। यही कारण है कि 2024 के लिए होने वाला अनुबंध भी नहीं हो पाया है। उल्लेखनीय है कि यूके की कंपनी ओ फॉरेस्ट ने लघु वनोपज संघ से 2000 क्विंटल महुआ ₹100 प्रति किलोग्राम की दर से खरीदने का समझौता किया था। इनमें से 680 क्विंटल महुआ ओ फॉरेस्ट ने 110 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से भुगतान कर उमरिया जिला यूनियन और अलीराजपुर जिला यूनियन से परिवहन कर नागपुर के गोदाम में स्टोर कर दिया है। उमरिया और अलीराजपुर के जिला यूनियन के प्रबंध संचालक और डीएफओ ने ओ फॉरेस्ट से प्राप्त राशि महुआ संग्राहकों में बांट दिए है।
बताया जा रहा है कि वहां की बिजनेस पॉलिसी के तहत अब कंपनी को महुआ को यूके ले जाने के लिए कुछ प्रमाण पत्र की आवश्यकता पड़ रही है। कंपनी महुआ के ऑर्गेनिक होने, केमिकल रहित और भारत में महुआ को खाने के लिए उपयोग करते है। यानी महुआ के फूड ग्रेड होने का सर्टिफिकेट की मांग संघ के अधिकारियों से की जा रही है। लघु वनोपज संघ के प्रबंध संचालक ने कंपनी के प्रतिनिधियों से क्या-क्या दस्तावेज चाहिए लिखकर भेज दीजिए। अभी तक संघ और ओ फॉरेस्ट के बीच बात नहीं बन पाई है।
महुआ की ब्रांडिंग पर लाखों किए खर्च संघ ने महुआ की ब्रांडिंग पर लाखों रुपए खर्च कर दिए थे। इसके लिए एक दिन का वर्कशॉप किया गया। इसमें गोवा, गुजरात सहित एनआरआई बिजनेसमैन और व्यापारियों ने हिस्सा लिया था। वर्कशॉप में बताया गया कि महुआ के अंतरराष्ट्रीय बाजार में जाने से जनजातीय परिवारों को अच्छी कीमत मिलेगी।
प्रदेश में महुआ का समर्थन मूल्य 35 रुपये किलो है। जबकि यूरोप में महुआ की खपत होने से उन्हें 100 से 110 रुपये प्रति किलो का मूल्य मिलेगा। प्रदेश में महुआ बहुतायत में होता है। एक मौसम में करीब 7 लाख 55 हजार क्विंटल तक मिल जाता है। महुआ जनजातीय समाज के लिए अमृत फल है. महुआ लड्डू और महुआ से बनी देशी हेरिटेज मदिरा उनके पारंपरिक व्यंजन हैं।
प्रदेश में कितना पैदा होता है महुआ
साल में औसतन दो क्विंटल तक महुआ बीना जाता है। महुआ संग्रहण का 50 प्रतिशत उमरिया, अलीराजपुर, सीधी, सिंगरौली, डिंडोरी, मंडला, शहडोल और बैतूल जिलों से होता है।
इनका कहना
ओ फॉरेस्ट फर्म ने संघ से कुछ सर्टिफिकेट मांगे हैं। हमने उनके प्रतिनिधि से कहा है कि जो भी दस्तावेज चाहिए वह लिखित में संघ को भेजें। हम उन्हें उपलब्ध कराने की कोशिश करेंगे। वैसे यह जिम्मेदारी क्रेता फर्म की ही है।
बिभाष ठाकुर, एमडी लघु वनोपज संघ