प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूरोपीय देश साइप्रस की यात्रा पर हैं। पीएम मोदी की यह यात्रा कूटनीतिक तौर पर बेहद अहम मानी जा रही है, क्योंकि 1974 तक इस द्वीपीय देश का एक तिहाई हिस्सा तुर्की के कब्जे में था। ऐसे में 23 साल बाद भारतीय प्रधानमंत्री की साइप्रस यात्रा तुर्की को एक स्पष्ट संदेश देती है।
पीएम मोदी चार दिवसीय विदेश यात्रा के पहले चरण के लिए 15 जून को साइप्रस पहुंचे। उनका स्वागत राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस ने किया। साइप्रस ने ऑपरेशन इंडस में भारत का साथ दिया था, जिससे यह यात्रा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
साइप्रस का एक तिहाई हिस्सा तुर्की समर्थित सरकार के नियंत्रण में है, जबकि बाकी पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त ग्रीक साइप्रस सरकार का शासन है। साइप्रस अपनी प्राचीन सभ्यता के लिए भी जाना जाता है। दुनिया की सबसे पुरानी शराब और परफ्यूम यहीं पर बनते थे। एक दिलचस्प तथ्य यह है कि यहां बिल्लियों की संख्या इंसानों की आबादी से ज़्यादा है।
यात्रा भारत और साइप्रस के बीच संबंधों को मज़बूत करने में मददगार साबित होगी। हाल ही में पाकिस्तान में भारतीय सेना द्वारा किए गए ऑपरेशन सिंदूर के बाद उपजे तनाव के दौरान तुर्की ने दुश्मन देश का साथ दिया था। ऐसे में भारत-पाकिस्तान तनाव के बाद पीएम मोदी की पहली विदेश यात्रा काफी अहम है।
जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी साइप्रस, कनाडा और क्रोएशिया की यात्रा पर जाने वाले हैं। क्रोएशिया की यात्रा भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा होने जा रही है। साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस के विशेष आमंत्रण पर पीएम मोदी वहां पहुंचे हैं।
इस दौरान पीएम के साथ करीब 100 अधिकारियों का एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल भी पहुंचा है। साइप्रस की यात्रा भारत के नजरिए से कई मायनों में अहम है। जिसमें भू-राजनीतिक, आर्थिक, वैश्विक, सामरिक और कूटनीतिक रूप से अहम है।
पिछले 40 सालों में सिर्फ दो भारतीय प्रधानमंत्री साइप्रस गए हैं। इंदिरा गांधी ने 1982 में और अटल बिहारी वाजपेयी ने 2002 में साइप्रस का दौरा किया था। ऐसे में दो दशक बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री वहां पहुंचा है। ऐसे में यह यात्रा दोनों देशों के बीच संबंधों और रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने का संकेत दे रही है।