।। डाकू जो भक्षक की जगह बन गए "रक्षक"।। "चम्बल के मंदिरों के कर्णधार"।।


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।। डाकू जो भक्षक की जगह बन गए "रक्षक"।। "चम्बल के मंदिरों के कर्णधार"।।

 

चंबल का इतिहास वैसे तो खून-खराबे से भरा हुआ है, लेकिन यहाँ कभी खूंखार माने जाने वाले डकैतों ने इतिहास के संरक्षण के लिये बहुत बड़ा काम भी किया है।

चंबल के बीहड़ जो कभी डाकुओं के आतंक का केन्द्र थे, एक तरह से पुरातन मंदिरों के बचाने में अहम् भूमिका भी निभा रहे थे राजस्थान और मध्यप्रदेश के बीच बहने वाली चंबल नदी के दोनों ओर फैले बीहड़ों में आम आदमी तो क्या पुलिस भी आने से कतराती थी।

21वीं सदी की शुरूआत में यहां डाकुओं के कई गैंग सक्रिय थे। लेकिन एक डाकू का गैंग ऐसा था जिसकी वजह से भारत के इतिहास का एक सुनहरा पन्ना खुल कर सामने गया।

इतिहास का यह पन्ना जुड़ा था ग्वालियर के बटेश्वर में खंडहर हो चुके 200 ऐतिहासिक मंदिरों से, जिसे 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच बनवाया गया था। बटेश्वर के ये मंदिर मुख्य रूप से भगवान शिव, विष्णु और माता शक्ति को समर्पित थे इसके अलावा यहां हिन्दू धर्म के अन्य देवी देवताओं के मंदिर भी हैं। कहा जाता है कि ये मंदिर खजुराहो की विश्व धरोहर से भी पहले के हैं।

चंबल नदी के किनारे जाने कितनी घाटियां फैली हैं। इन घाटियों में डकैत छिपने की जगह तलाशते थे। इन डकैतों में से एक था निर्भय सिंह गुर्जर। ये चम्बल के सब खूंखार डाकुओं में से एक था। इसका प्रभाव मुरैना और नजदीक के इलाकों में बहुत ज्यादा था। निर्भय एक खास जगह पर छिपता था। एक प्राचीन मंदिर का खंडहर, जो कभी गुर्जर राजाओं का ऐतिहासिक केंद्र था।

चंबल घाटी में सबसे पुराने और प्रसिद्ध मंदिर हैं बाबा बटेश्वर के मंदिर ये नाम भूतेश्वर से आया है जिसका मतलब है संहार करने वाला। ये मंदिरों का समूह है जो बेहद प्राचीन और विस्तृत है। बलुआ पत्थर से बने इन मंदिरों की संख्या 200 के लगभग है। इतने मंदिर एक ही जगह पर भारत में और कहीं नहीं मिलते।

सबसे पहला मंदिर लगभग 1300 वर्ष पहले बना था। इसे बनाया था गुर्जर प्रतिहार वंश के राजाओं ने इसके बाद करीब 200 साल तक दूसरे मंदिर बने उस ज़माने में गुर्जर-प्रतिहार गुजरात से लेकर उत्तर बंगाल तक पहुंच गये थे। ग्वालियर के करीब बटेश्वर मंदिर का निर्माण इन्होंने ही करवाया था।

१३वीं शताब्दी में एक भयानक भूकंप आया जिसमें बटेश्वर के मंदिर खंडहर में तब्दील हो गये और बेहद डरावने लगने लगे थे। लोगों के साथ-साथ पुलिस को भी यहां आने में डर लगता था। इस वजह से यहाँ डकैतों ने अपना डेरा जमा लिया। डाकू यहाँ बेखौफ आते थे।

एक वक़्त यहाँ डाकू निर्भर सिंह गुर्जर का ठिकाना था।  निर्भय डाकू जरूर था, मगर देवी माँ का भक्त भी था। उसकी आस्था भगवान शिव में भी थी। इसी आस्था ने इन मंदिरों को बचा लिया। 

मंदिरों में कई पुरातन देवी- देवताओं की मूर्तियां थीं डकैतों की मौजूदगी ने इन मूर्तियों को मूर्ति तस्करों से बचाए रखा। बटेश्वर के मंदिर एक जलकुंड के चारों ओर बने हैं। मंदिर भिन्न आकार वाले, पांच से 50 फीट तक ऊंचे हैं मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी (एएसआई) ने पहले सर्वे किया। मंदिरों का जीर्णोद्धार खतरे से भरा था।

किसी तरह से नवंबर 2005 में एएसआई के अफसर मंदिर तक पहुंचे। टीम का नेतृत्व कर रहे थे ASI के सुपरिटेंडिंग आर्किटेक्ट, पद्मश्री केके मोहम्मद।

मोहम्मद साहब डाकू निर्भय से नहीं मिले थे। वे मंदिर के काम में व्यस्त थे तभी उन्होंने पहाड़ी के ऊपर मंदिर में एक व्यक्ति को बीड़ी पीते हुए देखा। ये देखकर केके साहब को गुस्सा गया और उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, “तुम्हें पता है कि ये मंदिर है और तुम यहां बैठकर बीड़ी पी रहे हो?”  केके डाकू की ओर बढ़े ही थे तभी विभाग के एक अधिकारी ने उन्हें पीछे से आकर रोक लिया और बताया कि वो आदमी निर्भय सिंह है।

इस पर केके मोहम्मद समझ गए कि वो शख्स  कितना खूंखार है और उसका ही आतंक आसपास के इलाकों में किस तरह फैला है। एक चैनल को दिए इंटरव्यू में केके ने इस घटना के बारे में बताया, “मैं उसके पैर के पास बैठ गया और उसे समझाने लगा कि एक समय था जब आपके ही पूर्वजों, गुर्जर-प्रतिहार राजाओं ने इन मंदिरों को बनवाया था। मंदिर की रक्षा करने के लिए उन्हें भगवान ने भेजा है। आप इसमें अपना सहयोग कर आपके पूर्वजों की अनमोल धरोहर को बचा सकते हैं। निर्भय गुर्जर को केके की बात अच्छी लगी और उसने इसे बनवाने में अपना सहयोग दिया। जब-जब डाकू निर्भय उस इलाके में मौजूद रहता, मंदिरों की तरफ किसी की आँख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं पड़ती इस तरह बटेश्वर के मंदिरों को नया जीवन मिला।

केके मोहम्मद बताते हैं कि, मंदिर को बनवाने के पीछे डाकुओं की भी अपनी एक मंशा थी। वो अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहते थे। कुछ साल बाद डाकुओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया या मुठभेड़ में मार गिराया। लेकिन डाकुओं के मरने का दुख हमारी पूरी टीम को हुआ क्योंकि उनके कारण ही हम इस अनमोल धरोहर को बचाने का काम कर सके

आज बटेश्वर के मंदिर बेस्ट टूरिस्ट स्पॉट बन गए हैं। 200 मंदिरों में से 80 से ज्यादा मंदिरों के रेनोवेशन का काम हो चुका है और अभी भी आसपास का काम जारी है। डाकुओं के सहयोग से इतिहास के ये प्राचीन मंदिर आज फिर से उठ खड़े हुए हैं।